मां के हाथ के पराठे और पिताजी के खर्राटें
मुझे आज भी याद आते हैं ,
जब-जब फेरता हूं अपनी उंगलियां मुस्कुराती तस्वीर पर
मैं अनाथ से
ज़िन्दा लाश बन जाता हूं |-
ख्वाबों की बस्ती से हूं, कुछ कर गुजरने को ,
आंखो में चमक है, लेकिन, खाने को दाना नहीं ।
रूठ गई है, मंज़िल , मगर! हमें किसी ने पाला नहीं ,
कड़वा सच है, साहब! हम अनाथों का कोई ठीकाना नहीं ।-
सुनाे...जिन बतॆनाें के आवाज़ सुन
आप बे-वज़ह ही परेशान हाे,रहें हाे साहब.!
सच...इसी बतॆनाें कि खनक़ सुन
मासूम चेहरें पर मुस्कान आ,जातें हैं साहब..!-
मैं वो मेले में भटकता हुआ इक बच्चा हूँ
जिस के माँ बाप को रोते हुए मर जाना है !!
मुनव्वर राना-
हे जगन्नाथ,
थाम मेरा हाथ,
अपने रथ में
ले चल मुझे साथ।
लुभाये न मुझको अब कोई पदार्थ
मेरा तो बस अब एक ही स्वार्थ
धर्म युद्ध हो या कर्म युद्ध हो
तू बने सारथि, मैं बनूँ पार्थ ।
मैं हूँ अनाथ
बन के मेरा नाथ
अपने रथ में
ले चल मुझे साथ।-
माँ-बाप का साया
रहा न सर पे
आँखें खोलते ही मैंने
अपनों को खो दिया,
ग़मों का सैलाब़
मेरा क्या बिगाड़ लेगा यारों
मैंने तो पैदा होते ही
अपना बचपन खो दिया।-
अनाथ शब्द
जैसे सूखी डाली के टूटे बिखरे पत्ते।
ऐसे होते है मासूम अनाथ बच्चे।
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भूख से तड़पता हुआ
वो मासूम मर रहा था😐
अनाथ था ना साहब
खुद में सिमट रहा था
मौत आई आव़ाज लगाई
बोला, मैं ना जाऊंगा
इस खूबसूरत दुनिया में
अपना भी घर बनाऊंगा
तुम आना मुझे लेने
जब मैं महलों का राजा बन जाऊंगा
किसी अनाथ को 😢अनाथालय से उठाकर
जब अपने घर में जगह दिलाऊंगा.
तब तुम आना लेने
जब मैं महलों का राजा बन जाऊंगा🙏-
इक मासूम तिफ्ल बोला , मुझे सम्भालेगा कौन
माँ बाप तो हैं नहीं , इस अनाथ को पालेगा कौन-