हम तो मस्त फकीर, हमारा कोई नहीं ठिकाना रे। जैसा अपना आना प्यारे, वैसा अपना जाना रे।
रामघाट पर सुबह गुजारी प्रेमघाट पर रात कटी बिना छावनी बिना छपरिया अपनी हर बरसात कटी देखे कितने महल दुमहले, उनमें ठहरा तो समझा कोई घर हो, भीतर से तो हर घर है वीराना रे।