अंदर है
समंदर है
खामोश सा
बवंडर है
धोके का
ख़ंजर है
दर्द का
मंज़र है
हो चुका
खंडहर है
दिल अभी
बंजर है
ना कोई
रहबर है
ख़्वाब भी
बेघर है
खामोश रहूँ
बेहतर है
जो हुआ
मुक़द्दर है ©भिमेश भित्रे-
हवा में जब घुला ज़हर यहां मुझे महक याद आई
तुम छोड़ गए ऐसे तब तुम्हारी एहमियत याद आई
फ़ासलों ने बताया मुझे तुम कितने करीब रहे मेरे
तुम्हारी ग़ज़लें पढ़कर तुम्हारी आदमियत याद आई
सुकून और आज़ादी पाने को छोड़ा था गांव मैंने
चकाचौंध में उलझकर तुम्हारी शहरियत याद आई
तन्हाइयों ने डेरा डाला पूछने वाला नहीं कोई मुझे
गुज़रे थे तुम इस दौर से तुम्हारी ख़ैरियत याद आई
बारहां मिले मुझे भटकाने वाले नशेमन ज़माने में
तहज़ीब से छूट कर ही तुम्हारी तरबियत याद आई
ढोंग छोड़ो जो कहना है खुल कर कहो न मेरे यारों
बातों में छली गई तो तुम्हारी मासूमियत याद आई
बिछड़ कर जाने वाले हमदम तुम्हारी गुनहगार हूँ मैं
हो कर लापता खुदसे तुम्हारी शख्सियत याद आई
साथ छोड़ गए हैं सब मुझे अपना कहने वाले मेरे
यूँही नहीं 'जोयस्ती' को तुम्हारी एहमियत याद आई-
मोहब्बत भूल जाऊं गर तो तुम क्या हाल करोगी।
भुला दोगी मुझे तुम या थोड़ा बवाल करोगी।
मेरी तपिश में जल कर अज़ाबों को सह कर तुम,
अदा से दिल तोड़ने का सबसे अर्ज़-ए-हाल करोगी।
मिलोगी कभी तो शिद्दत-ए-एहसास बचाये रखना।
लिपट कर रोएँगे दोनों या तब भी सवाल करोगी।
तह-ए-ख़ाक में तुम दफ़न रखना मिरे सारे राज को,
वादा करो कि मेरे बाद भी खुद की देखभाल करोगी।
दर्द बनकर तुम्हारी सिसकियों में रहूँगा मैं ताउम्र,
मुझे नहीं पाने का तुम कभी नहीं मलाल करोगी।
फ़ुर्क़त का मत सोच , आ बैठ मिरे पास अभी के लिए,
इस ग़ज़ल को पढ़ कर अपना कितना बुरा हाल करोगी।-
दीवारे-ख़्वाब में कोई दर कर नहीं सके
हम लोग शब से आगे सफ़र कर नहीं सके
इक शाम के चले हुए पहुँचे मियाने-शब
भटके कुछ इस तरह कि सहर कर नहीं सके
शायद अभी रिहाई नहीं चाहते थे हम
सो उस को अपनी कोई ख़बर कर नहीं सके
हम कारे-ज़िन्दगी की तरह कारे-आशिक़ी
करना तो चाहते थे मगर कर नहीं सके
आँखों पे किस के ख़्वाब पर्दा पड़ा रहा
हम चाह कर भी ख़ुद पे नज़र कर नहीं सके
तुम से भी पहले कितनों ने खाई यहाँ शिकस्त!
दुनिया को फ़त्ह तुम भी अगर कर नहीं सके?-
न साथ आएगा तू मेरे तो क्या सारा ज़हाँ होगा
अकेले मैं चलूँगा और पीछे कारवाँ होगा
यहाँ होगा वहाँ होगा न जाने कब कहाँ होगा
जहाँ में और अब कितना हमारा इम्तिहाँ होगा
जहाँ भी नक़्श-ए-पा मेरा मिटा सकता नहीं कोई
यहाँ होगा वहाँ होगा जहाँ चाहूँ वहाँ होगा
जहाँ अब हम मिलेंगे वो जगह कुछ इस तरह होगी
ज़मीं नीचे नहीं होगी न ऊपर आसमाँ होगा
अभी उम्मीद बाक़ी है बिछड़कर भी मुसाफ़िर को
किसी दिन साथ उनके फिर यक़ीनन कारवाँ होगा
मेरे मेहबूब की फ़ितरत भी मौसम-सी बदलती है
कभी तो सर्द वो होगा कभी आतिश-फ़िशाँ होगा
छुपाकर रख नहीं सकते किसी की चाह को 'सालिक'
लगी हो आग सीने में तो चेहरे से बयाँ होगा-
आधी नींद के अन्दर भी
मेरा ख़्वाब मुकम्मल था..
उस का दर्द न देख सके
उस की आँख में काजल था..
हम ने उस से प्यार किया
जिस का मैला आँचल था..
हम थे रेगिस्तान की रेत
वो भी प्यासा बादल था..
इक लम्हे का अपना वस्ल
और ख़ुमार मुसल्सल था..
तन्हाई को पी गयी रूह
किस का साथ हमें कल था..
'सानी' अपनी धुन में मस्त
जैसे कोई पागल था..-
फ़िर गिरा देना हमेशा की तरह,
मुझको उठ कर तो संभलने दे ज़रा।
©सालिक गणवीर
فیر گیرا دینا ہمیشہ کی طرح,
مجھکو اٹھ کر تو سنبھلنے دے زرا
© سالک گنویر
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जो भी कुछ था सारा गुम है
क्या बतलाएं क्या क्या गुम है
शाम से उसको ढूंढ रहा हूँ
मेरा अपना साया गुम है
वो गुम है अपनी दुनिया में
और हमारी दुनिया गुम है
शोर मिला है जैसे तैसे
अब देखो सन्नाटा गुम है
पहले उसको ढूंढ के लाओ
जो मुझसे भी ज़्यादा गुम है
हाय हमारी लापरवाही
दिल का आधा हिस्सा गुम है
कैसे खेल बढ़ाएं आगे
रानी गुम है प्यादा गुम है
'यार' तुम्हारी तस्वीरों में
सब कुछ है बस राधा गुम है-
प्यासे को पानी बरसाना पड़ता है
सागर को बादल बन जाना पड़ता है
जिनके पास न हो मरने की ख़ातिर कुछ
उनको जीते जी मर जाना पड़ता है
दुनिया में दर यूँ ही नही खुलते प्यारे
दीवारों से सर टकराना पड़ता है
नद्दी से जितना चाहे लड़ ले पत्थर
मिट्टी बन उसको बह जाना पड़ता है
एक जुनूँ का पेड़ सींचने की खातिर
कुछ ख़्वाबों का खून बहाना पड़ता है
बुनियादें मजबूत यूँ भी हो जाती हैं
उनको घर का बोझ उठाना पड़ता है-
खुशियाँ ऐसी हो कि अश्क़ों में भर आये,
ग़म ऐसा हो कि आदमी रक़्स करता नज़र आये ।।
ये कौन है आयने में जो यूँ देखता है मुझको,
हँसते-हँसते खामखाँ मेरे ज़ख्म उभर आये ।।
ये वक़्त कमबख़्त गुज़रता क्यों नहीं,
इंतिज़ार में तिरी हर इंतिहा से गुज़र आये ।।
तमन्नाएँ चल पड़ी सब अपने-अपने रस्ते हैं,
ए सुकूं! तू अब तो लौट कर मेरे घर आये ।।
हो गए बरी तुम दिल चुराने के ज़ुल्म से भी,
इल्ज़ाम सारे के सारे मिरी निग़ाहों के सर आये ।।
बड़ी मनमानी की तूने मेरे ख़यालों की राहों मे,
लिखूँ ग़र इश्क़ तो तेरा अक्स उतर आये ।।-