और मैं सोचती हूं!
कोई अपनी ग़ैर-मौजूदगी में
इतना मौजूद कैसे हो सकता है!
(रचना अनुशीर्षक में)
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उसने कभी नहीं कहा कि तुम खयाल रखना अपना !
ना कभी कहा कि मैं हमेशा तुम्हारे लिए खड़ा हूं!
ना कभी वादा किया कि मैं साथ निभाऊंगा!
ना कभी महसूस कराया कि मैं आसपास हूं!
ना ही कभी खैरियत पूछता कि मैं जिंदा भी हूं!
उसने तो बस एक ही काम किया !!
मुझे खुद ही के करीब लाने के लिए
जितने दांव पेंच हो सकते हैं वो सब लगाए !!
और मुझे उस मुकाम पर ला दिया
कि ना तड़प किसी की,ना कमी किसी की!
बस एक पुरापन है जिसमें वो भी है और मैं भी हूं!
या यूं कहूं. . . . वो भी नहीं, मैं भी नहीं !!-
वो शख़्स मेरे बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानता
उस शख़्स से ज्यादा मुझे कोई नहीं जानता ।।
यूं तो पहले-पहल खूब लगता था कड़वा,
अब सिवा उसके मर्ज की कोई दवा नहीं जानता ।।
कोई नहीं वादा,इरादा, ना पकड़ कोई दर्मियां
आज़ादी के परे रिश्ते के मायने नहीं जानता ।।
हज़ारों मंजिलों की ख्वाहिश ही किसको है,
उसकी दस्तक के बाद दिल राह नहीं ताकता ।।
तारीफ़ में उसकी तो किताबें भी लिख दूं
हर्फ मगर मर्म की ज़ुबान नहीं जानता ।।
कहां तक चलेगा ये कारवां ख़ूबसूरती का,
मैं भी नहीं जानती,वो भी नहीं जानता ।।-
राख तो हर स्थिति में होना है!
क्यों ना जलने का चुनाव थोड़ा
मन-रूपी जाल को समझ कर करें !
(रचना अनुशीर्षक में)
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आँखों में अपनी जिंदा हैरानी रखिये
जिंदा होने की ये इक निशानी रखिये ।।
राहों में मोड़ और मोड़ पर राहें बनेंगी
बस चलने की दिल में रवानी रखिये ।।
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छोड़ दो परिंदों को खुले आसमाँ में . . .
पंखों की हिफाज़त ये उड़ान सीखा देगी !!
©Surbhi-
बुढ़ापा मतलब आपके जीवन का वो बिंदु
जहां अब आप चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते !
(पूरी रचना अनुशीर्षक में)
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