Srivastava Vikram   ("पागल")
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Joined 5 February 2017


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28 NOV 2018 AT 14:55

अबके बरस एग्जाम न लाना भग्गू जी
मेरी नइया पार लगाना भग्गू जी

याद करो भग्गू जी तुम भी बच्चे थे
याद करो तुम ही कब कितने अच्छे थे
खेल कब्बड्डी मक्खन चोरी याद करो
और मइया के डंडे खाना भग्गू जी
अबके बरस...

बीजगणित के खेल मुझे नइ आते हैं
सपनो में सइन कॉस अर टैन डराते हैं
सिंगिंग का एग्जाम लें बोलो मास्टर से
और सुनो फिर मेरा गाना भग्गू जी
अबके बरस...

न्यूटन आर्किमिडीज तो मेरे दुश्मन हैं
वो क्या जानें दुनिया में क्या क्या फ़न हैं
तुम तो वंशीधर हो समझ रहे होगे
मम्मी पापा को समझाना भग्गू जी

अबके बरस एग्जाम न लाना भग्गू जी
मेरी नइया पार लगाना भग्गू जी

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19 FEB 2018 AT 11:51

प्यासे को पानी बरसाना पड़ता है
सागर को बादल बन जाना पड़ता है

जिनके पास न हो मरने की ख़ातिर कुछ
उनको जीते जी मर जाना पड़ता है

दुनिया में दर यूँ ही नही खुलते प्यारे
दीवारों से सर टकराना पड़ता है

नद्दी से जितना चाहे लड़ ले पत्थर
मिट्टी बन उसको बह जाना पड़ता है

एक जुनूँ का पेड़ सींचने की खातिर
कुछ ख़्वाबों का खून बहाना पड़ता है

बुनियादें मजबूत यूँ भी हो जाती हैं
उनको घर का बोझ उठाना पड़ता है

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28 APR 2017 AT 17:45

हम तो ठहरे हिंदी-उर्दू वाले, हमारे यहाँ इरोटिका नहीं होता। प्रेमकाव्य होता है।

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22 APR 2017 AT 1:40

मुझे दिल की दीवारों पर तुम्हारी प्रीत लिखने दो
अपनी पायल की धुन पर मुझे इक गीत लिखने दो
मेरे उस गीत के हर छंद में बस ज़िक्र तुम्हारा हो
मेरे शब्दों के आईने में अपनी तस्वीर दिखने दो
मुझे दिल की ........

कि मेरे प्रेम औ पूजा में न कोई भेद रह जाए
मेरा दिल प्रेम की देवी तेरा मंदिर ही बन जाए
तुम्हारी प्रेम सरिता में मैं कुछ यूँ उतर जाऊँ
न तो डूबूं कहीं उसमे, न तो उसमे मैं तिर पाऊँ
मुझे लहरों की ही मानिंद अपने संग बहने दो
मुझे दिल की.......

असर हो प्रेम का तेरे की मैं खुद मैं न रह जाऊँ
टूट के चूर हो जाऊँ और तुम में ही मिल जाऊँ
मुझे न चाहिए ये जिस्म मिटता है तो मिट जाए
बस मेरी रूह को जन्नत में तेरी रूह मिल जाए
बनाने को दास्ताँ-ए-इश्क मेरा वजूद मिटने दो

मुझे दिल की दीवारों पर तुम्हारी प्रीत लिखने दो
अपनी पायल की धुन पर मुझे इक गीत लिखने दो

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6 APR 2017 AT 3:34

"अच्छा एक बात बताओ"

" क्या?"

"तुम्हारी सारी कहानियों के नायक नायिका दूर क्यों हो जाते हैं ? मिल क्यों नहीं पाते कभी?"

"हाहाहा..."

"हँस क्या रहे हो?...बताओ ... That is a serious question?"

"क्या बताऊँ यार?"

"ये कि तुम्हारी कहानियों में नायक नायिका मिलते क्यूँ नहीं ?"

"क्यूंकि अभी हम और तुम नहीं मिलें हैं "

"अच्छा जी....और जब हम तुम मिल जायेंगे तब? तब लिखोगे मिलन की कहानियाँ?"

"तब वो मिलन की कहानियाँ तुम लिखना"

"और तुम?"

"मैं?... मैं जियूँगा उन कहानियों को"

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5 APR 2017 AT 1:55

उस रात तुमने अपनी ऊँगली से
चांदनी को रोशनाई बनाकर
जो महाकाव्य रच दिया था
मेरे दिल के कागज़ पर
मैं आज भी चुरा लेता हूँ
उसमे से कुछ शब्द 
और गढ़ता हूँ एक मायाजाल
फैलाता हूँ एक स्वांग
स्वयं के कवित्व का ।
मगर सच क्या है 
ये तो जानते हैं 
बस हम और तुम ।
और मैं यह भी जानता हूँ
कि तुम आज फिर 
छुपा लोगी मेरा हर सच 
और मैं फिर भरूँगा दंभ
कवि होने का...

हाँ मैं कवि हूँ !

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2 APR 2017 AT 4:06

"क्यूँ करते हो इतना प्यार?"
"पता नहीं"
"बताओ ना"
"नही पता सच में। पता होता तो शायद प्यार न होता"
"अब इसका क्या मतलब है?"
"वजह पता होती तो उस वजह से प्यार होता तुमसे नहीं"
"तो जाने क्यूँ दिया? रोका क्यों नहीं?"
"तुम तब उसकी भी वज़ह पूछती"


(इश्क़ करने की कोई वज़ह नहीं होती। इश्क़ बस यूँ ही बेवजह हो जाता है।)

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29 MAR 2017 AT 14:39

बनारसीपन और बनारसी पान अपना रंग छोड़ ही जाते है।

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23 MAR 2017 AT 2:55

बस आप दिखे और कोई ना दिखाई दे

ख़्वाबों में सिर्फ आपका चेहरा दिखाई दे

मुस्का दें एक बार मेरे जान-ए-दिल अगर

महफ़िल में आठ सम्त उजाला दिखाई दें

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18 MAR 2017 AT 3:48

चुपचाप उतर कर आँखों में
कुछ कह लेना कुछ सुन लेना
इस बार जो मिलना जान-ए-मन
मेरे गीतों को इक धुन देना

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