आतिश-ज़नो से कहो आग लगा आयें किसी महल में
सुना है ग़रीब की झोंपड़ी में आज ठंड बहुत है
- साकेत गर्ग 'सागा'-
जब मैं ग़रीबों को खाना देता हूँ, तो वे मुझे संत कहते हैं
जब मैं पूछता हूँ कि ग़रीबों के पास खाना क्यों नहीं है
तो वे मुझे कम्युनिस्ट कहते हैं-
ग़रीबो के तन पर कपड़े नहीं,
होटो पर मुस्कान होती है,
वो जो कीमती जेवर कपड़े पहनते है, ना
उन को,
कहा हस ना है कहा नहीं,
उसकी लिए भी ट्रेनिंग लेनी पड़ती है,
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ये बारिश हर किसी के दिल को सुकून लाएगी,
कभी सोचा है कि इस बारिश उस ग़रीब झोपड़ी भी बह जाएगी.....
जहाँ बुनते कुछ ख्वाब अब मिट्टी मैं मिल जाएगे
रातों की नींद अब टपकटी बूंदों में घुल जाएगी
कभी सोचा है कि इस बारिश उस ग़रीब की झोपड़ी भी बह जाएगी.......
छोटे छोटे तिनको से समेटती जिंदगी अब बाढ़ में मिल जाएगी
ख्वाइशो की पोटली अब आँधी में बह जाएगी
कभी सोचा है कि इस बारिश उस ग़रीब की झोपड़ी भी बह जाएगी.......
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ग़रीब की आंखों में जो ख़ुशी की दीद हो जाए
ख़ुदा करम करे के मुबारक़ मेरी ईद हो जाए।।-
कुछ यूँ मेरी क़लम की कमाई हैं,
जो किसी ग़रीब की दावत के तो काम आई हैं।-
अगर हर रोज़ शहर में चुनाव का माहौल होता
शायद कोई भी ग़रीब भूखा नहीं सोता-
आज एक गरीब बच्चे ने कूड़े मे पड़ा
एक बिस्कुट हाथ धोऐ बिना ही खां लिया-
ये सर्द मौसम, ये काँपता ज़िस्म और तुमसे जुदाई
मानो छीन ली हो किसी ग़रीब से उसकी रज़ाई ।
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ग़रीबी हाथों की रेखाएं पढ़ने लगी
कल तक झुर्रियां थी माथे पे,
आज एड़ियां तक फ़टने लगी
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