Anshul Joshi   (अंश)
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Joined 22 March 2017


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Joined 22 March 2017
27 MAY 2019 AT 1:37

शायद हमारी मोहब्बत का रास्ता
वो सड़क थी
जो बच्चे 'दरवाइंग' में बनाया करते थे
हाँ वहीं सड़क जो कहीं नहीं जाकर भी
मंज़िल तक पहुँचती थी

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21 JAN 2019 AT 13:09

मेरे घर से एक इमारत दिखती है
जहाँ से मेरा घर इमारत लगता है

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10 MAY 2018 AT 9:55

गुज़रा हुआ कल आग है
आने वाला कल पानी है
आगे तो बढ़ना ही होगा
आग गर बुझानी है

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24 MAY 2017 AT 8:45

"4 Years of Engineering"
(read in caption 🙏🙋)

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12 MAY 2017 AT 2:24

त्राहिमाम त्राहिमाम
मंहगाई ने लूट ली है जान
त्राहिमाम!
नशे ने हैं कर दिया बर्बाद
त्राहिमाम!
दहेज तो जैसे हो गया एक खेल
शादी विवाह का अपमान
त्राहिमाम!
सरकार ने टेंशन दी पेंशन की
बुजुर्ग हुआ है परेशान
त्राहिमाम!
अय्याशी में रहते ये बड़े घर के बच्चे
दुनिया हैं कैसी बेईमान
त्राहिमाम!

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5 MAY 2017 AT 0:55

घर के बाहर, गार्डन में, दो कुर्सियां एक मेज़
मेज़ पर बिछा हुआ मेजपोश
मेजपोश में हल्के हल्के चाय के दाग
ज़मीन पर ओस से नहलाई हुई घास
पेड़ के पत्तो पर, बारिश की बूंद
जैसे नयी दुल्हन ने बिंदी लगाई हो
गमले अपनी कोख़ में रखकर बीज
पौधों की परवरिश का ख्याल करते है
मैने देखा है एक सावन को
हर शय में घर करते हुए

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24 APR 2017 AT 15:07

👇मेरा माथा चूमना मेरी माँ👇
(poem in the caption)

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23 APR 2017 AT 14:59

वो कह कर गया था, लौट आएगा, इंतेज़ार है
अगर वक्त भी ना दे सका , तो बेकार है

भले ही ना लौटे वो, ख़बर कुछ ना कुछ आएगी
नज़र सब पर उसकी है, इतना तो ऐतेबार है

ना गर्मी से पिघलूँगा ना ये सर्दी जकड़ पाएगी
उससे दिल लगाया है,खुद पर ज़रा इख़्तियार है

मेरी फ़िक्र ना की जाए, कह दो ज़माने को
यहाँ से कभी गुज़री थी वो, यहीं पर बयार है

जिस राह पर मैं खड़ा हूँ होश संभाले, हुनर है मेरा
हिज्र की घड़ी है, सामने मय-कदे हज़ार है

आस पास जुगनू हैं, मेहताब है, तारे है
उनके लौट आने के अभी पूरे आसार है

और अगर बरस भी लग जाए तो टिक जाना 'अंश'
पहली पहली बार है ये, पहला पहला प्यार है

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10 APR 2017 AT 2:03

ये नज़्म अंजाने में बन गई

जब शाम ढली, और रात आई
जब कलम चली, बरसात आई
अल्फ़ाज़ ओढ़ कर बिछ गए कागज़ों पर
जब याद ,पहली मुलाकात आई

दरीचों को याद कुछ बात आई
कुछ किस्से, मदहोशीे साथ आई
कलम ने सियाही खुद भरी
नज़्म बन कर एक सौगात आई

मौसम ग़ज़ल का था
ये नज़्म अंजाने में बन गई
दौर वस्ल का था
हिज्र की दास्ताँ बन गई

जब चाँद चढ़ा, तारे सजे
जब घड़ी में सवा एक बजे
वो अर्ज़ों के किस्से दिल से चले
कागज़ पे गिरे, वो सारे सजे

लिखने मिस्र बैठे थे
ये नज़्म अंजाने में बन गई
दौर उन्स का था
दर्द की सूरत बन गई

जब हवा चली, इस ओर चली
उथल पुथल हुआ, बड़ी ज़ोर चली
कुछ लम्हें सर्द हवाओं ने, लाकर पटके कागज़ पर
कुछ मुक्कमल बात लिखी, और कुछ अधूरी छोड़ चली

तुझको लिखने की होड़ में
ये नज़्म अंजाने में बन गई
माहौल सादगी का था
मदहोश सी हालत बन गई

ये नज़्म अंजाने में बन गई

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8 APR 2017 AT 15:04

हर एक हर्फ़ को सजा रहा हूँ
मैं नज़्म बना रहा हूँ

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