इश्क़ के लम्हें या जुदाई की बात लिखा तुमने? नयनों के कलम से कोरे दिल में रंग भरने की दास्तां, वो पहली मुलाकात की रात लिखा तुमने? ज़माने से छुपकर पनप रहे थे जो जज़्बात, किताबों में इश्क़ का इतिहास लिखा तुमने?
की ये दिल बैठ सा गया, नाम तुम्हारे के सहारे ज़िंदा थी, अब ये रूह भी रूठ सा गया, यक़ीनन तुम बेखबर होगे, की हस्र क्या की इस ख़त ने , इलज़ाम लगाऊँ भी कैसे, इश्क-ए-ख़ता का सज़ा जो दे गया!!!
जो पढ़ न सके हम शब्दों में ज़ज्बात भरें थे जो समझ न सके हम पिरोया था तुमने एहसास सारा झेल न सका ये दिल बेचारा फेकें थे तुमने जो शब्दों के बाण समझ न सका मेरा ये दिल नादान आकर खुद ही बता दो दिल की बात आंखों से झलका दो तुम ज़ज्बात||
काग़ज़ के चंद खाली टुकड़ों को उसके ख़त मान लेता हूँ उकेर देता हूँ खुद ही उन पर अल्फ़ाज़ बिना स्याही कलम के.. और फिर समझाता हूँ खुद को -देख उसकी मजबूरी थी उसने ख़त में लिखा तो है। फिर उन खाली ख़तों को चुपचाप छिपा लेता हूँ जो उसने कभी भेजे ही नहीं थे...
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