दूरी कितनी भी क्यों ना हो,
ये जुबां तेरा ज़िक्र करना नहीं भूला,
दिन रात मशरूफ़ हो बेशक़,
मग़र ये धड़कन तेरा नाम लेना नहीं भूला,
दिन, महीने क्या एक साल बीत चुका
तुझसे मिलने की इन्तजार में,
घड़ी इन्तजार की कितनी भी लम्बी लगे,
पर ये गुस्ताख़ दिल तुझे चाहना नहीं भूला !!
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बात बस इतनी सी है ..
की फ़िक्र तो तुम्हारा हमेशा करती हूँ ,
बस ज़िक्र नहीं करती ,
हाँ याद तुम्हें हर लम्हा करती हूँ ,
बस ज़ाहिर नहीं करती ,
तुम पूछ लो हाल-ए-दिल कभी ,
मेरी आधी गम तो यूँही मिट जाते हैं ..
बस तुम समझ पाते हालात को मेरी ,
ऐसी कभी हालात नहीं होती ....
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ना मयके की हुई ना ससुराल की,
पर उससे इज़्जत दोनों कुल की होती है,
एक औरत का किरदार आसान नहीं यारों,
सबसे ज्यादा जिम्मेदारीयाँ उसी पर होती है,
कोई पूछे ना भले ही हाल उससे,
फिर भी फ़िक्र उसे सबकी रहती है,
कभी बहन कभी पत्नी तो कभी माँ,
हर रूप में वो त्याग, प्रेम की मूर्ति होती है!!
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तो ये हाल नहीं होती मेरी,
यूँ छोड ना जाते उस दिन,
तो बातें कब्र से ना होती तुम्हारी,
ना लड़ना पड़ता अकेले जमाने से मुझे ,
ना देनी पड़ती ज़ान बेबसी में मुझे,
गर एक दफा बस मुड़ जाते तुम,
तो ये बेवजह हिज्र ना होती हमारी!!
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की ये दिल बैठ सा गया,
नाम तुम्हारे के सहारे ज़िंदा थी,
अब ये रूह भी रूठ सा गया,
यक़ीनन तुम बेखबर होगे,
की हस्र क्या की इस ख़त ने ,
इलज़ाम लगाऊँ भी कैसे,
इश्क-ए-ख़ता का सज़ा जो दे गया!!!-
वो आखरी हसरत है मेरे दिल का,
बेवफ़ाई की मंज़र में,
वो ख़ास तोहफ़ा है मेरी वफ़ा का,
गद्दारों की नियत सी नहीं,
रेगिस्तान की मौसम सी नहीं,
रफ़्तार के इस ज़माने में,
वो ठहराव है मेरी ज़िंदगी का !!
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तेरे इश्क़ का जुनून कुछ इस कदर सवार है हम पर,
की अब तेरे ख़ामियां भी हमें अच्छे लगने लगे हैं !!
तेरा नशा है की उतरता ही नहीं अब मेरे सिर से ,
अब तो मेरी हर धड़कनों में नाम तेरे आने लगे हैं !!-
सुनों !! तुम्हारी चुप्पी को अब तोड़ भी दो,
सीनें में कैद जज़्बातों को अब बोल भी दो ,
दिल टूट जाएगा मेरा ,उसकी फ़िक्र छोडो तुम,
होठों में सिले उन अल्फाज़ों को आज खोल भी दो !!
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वो तारीफ़ कुछ इस तरह करता है ,
जैसे उसके दुनिया में सबसे नायाब मैं हूँ ,
वो फ़िक्र मेरी कुछ इस तरह करता है ,
मानों उसकी सांसों की वजह मैं हूँ,
तबीयत मेरी बिगड़ जाए कभी ,
तो धड़कन उसकी धीमी हो जाती है ,
वो कुछ इस तरह खुश हो जाता है मुझे देख ,
मानों उसके सारी हसरतों की मंजिल मैं हूँ!!!-
आज शिकायतों से भरी उनकी एक ख़त आई ,
खुशी तब भी हुई की चलो उन्हें हमारी याद तो आई ,
उन शिकायतों में हमारी फ़िक्र का ज़िक्र कुछ इस तरह किया था उन्होंने ,
की हरफ़ थोड़े रूठे रूठे ही सही चलो उनकी फ़िक्र देख दिल को सकूँ तो आई...
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