संस्कारों का नाम कहीं घूंघट तो कहीं हिज़ाब है
सूरज की चमक को छिपाना अंधेरों का रिवाज़ है
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शराफत के हिज़ाब का शरारत को हिसाब समझ नही आता।
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A wild cannot understand the language of chivalry.-
ग़र नजदीकियाँ होती इश्क़ का पैमाना....
तू ढ़लती हुई शाम, मैं एक मेहताब होता।
तू अंगड़ाई लेती सुबह, मैं तेरा आफ़ताब होता।।
तू बुर्खें में छुपी परी, मैं नया एक हिज़ाब होता।
तू पुराना एक बुकमार्क, मैं तेरी पसंदीदा किताब होता।।
तू भड़कती चिंगारी क्रांति की, मैं ख़ौलता इंक़लाब होता ।
तू चरमराहट की वो आवाज, मैं बरसों पुराना एक बाब होता।।
तू घनघोर घटा में अब्र, मैं उससे छलकता आब होता ।
तू मेरे इश्क़ का फस़ाना, मैं इश्क़ का टूटा ख़्वाब होता ।।
ग़र नजदीकियाँ होती इश्क़ का पैमाना....-
धर्म को दिल में रखो,
इसे दिखाने की जरूरत नहीं हैं।
दुनिया में आए हों,
तो कुछ अच्छा कर्म करों
ताकि दुनियां वाले भी याद रखें।
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लाख़ हिजाब रखो कुछ हम भी असर रखते हैं
उनके दिल की हर कैफ़ियत की खबर रखते हैं।।
कैफ़ियत - हाल
"राजे"फ़ानी
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अर्सों से किए इंतज़ार का खिताब तो दो,
ज़ाया किए वक्त का हिसाब तो दो।
मेरे हर्फ़ ज़ाया होने से पहले,
मेरी सदा-ए-दिल का जवाब तो दो।
मैं कैसे यकीं करु तुम जांनिसार हो मेरे?
मेरे हाथों में अपना हाथ और तोहफे में गुलाब तो दो।
मुकम्मल कर दो एक मुलाक़ात मेरे हिस्से में भी,
खुली जुल्फें कर के आओ और सर पर हिजाब न हो।
मुझे जी भर देखने की तलब है नूर को तेरे,
तो इस मुलाकात के वक्त पर शर्त ये है कि चेहरे पर नकाब न हो।
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हिज़ाब में तो इतने चर्चे हैं उनके हुस्न के
कितने जनाजे निकलवायेंगे वो बेनकाब होकर ऐ खुदा-
काफ़िर सरक गया जब उसके रुख़सार से हिज़ाब अचानक,
सितारें भी कहने लगे,काश हम भी इंसान होते...!!!-
ज़रा ये ईमानदारी का हिज़ाब तो उतार दिया करो
ताकि लोग आपकी बेईमानी को परख सकें ।-