हाथ रख दे सर पर तो बरकत हो जाती है
मां जहां पांव रखे जमीं जन्नत हो जाती है-
अंधेरों को निकाला जा रहा है
मगर घर से उजाला जा रहा है
मशहूर शायर "फ़ना निज़ामी कानपुरी"
शायद बैठा है आशिक़ कोई महफ़िल में
ज़हर का प्याला जा रहा है-
हम क्या करें अगर न तिरी आरज़ू करें
दुनिया में और भी कोई तेरे सिवा है क्या
"हसरत मोहानी"
ये जो होती हैं आपको हिज्र में शिकायतें
रूह आपकी हमसे कहीं जुदा है क्या
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जो चाहो सज़ा दे लो तुम और भी खुल खेलो
पर हमसे कसम ले लो कि हो जो शिकायत भी
मशहूर शायर "हसरत मोहानी"
हम यूं हीं बैठे बैठे आपकी बाहों में हो आते हैं
क्या गज़ब ख़्वाब दिखाती है आपकी मुहब्बत भी-
चेहरे बदलेंगे जमाल बदलते रहेंगे
वक़्त भी बदलेगा हाल बदलते रहेंगे
तुम साथ रहना ढाल बनके जीवन भर
सदियां कई बितेंगी साल बदलते रहेंगे-
ये कौन सी शहर में बसती हैं यादें
आग क्यूं नहीं लग जाती उस बस्ती में कभी-
मुहब्बत की हर निशानी मिटाई गई
लीजिए ख़त आपकी जलाई गई
हर शाम होश में आए हम
हर शाम महफ़िल सजाई गई
ज़िन्दगी एक दरिया में डाला है
वस्ल़ भी गया जुदाई गई
मुझसे इश्क़ का इम्तिहान लिया गया
किसी की आहट मुझे सुनाई गई
जाने कितने ही शीतम ढाहे गए
आपकी तस्वीर नहीं दिखाई गई
कैद हूं तेरे ख्यालों में मैं
एक दिल था गया रिहाई गई
सब आज तक जिंदा ही हैं
शब-ए-हिज्र अरसे से आई गई-
मरने कि उम्मीद में और भी जिए जाते हैं
हम ज़हर को मय़ कहकर पिए जाते हैं
शब चांद को तकते हुए गुज़ारा जाता है
इश्क़ में जाने और क्या क्या किए जाते हैं-
दिन बीते जहां की साजिशों में और रात गुज़रे तन्हा
"जौन" आख़िर उनको हमारी फिक्र कब रहती है?-