जिस्म की लज्जतें, इश्क़ की सलाहियतें
पढ़ ही लेती है सारी वो तुम्हारी तर्बियतें
हुस्न तारी नहीं करती इश्क़ मुकम्मल में
उसकी देह से भी लिपटी हैं सारी आयतें-
आज कुछ ऐसे बरस जैसे घनघोर घटायें लाती है सैलाब
तृप्त करदे इस बंजर जमीं को कि खिल जाये कोई गुलाब....
©कुँवर की क़लम से....✍️-
उसके नाम की वो चूड़ियां,
कब मेरे हाथों की बेड़ियां बन गई,
मुझे पता ही नहीं चला
उसके नाम का वो मंगलसूत्र,
कब मेरे गले का फंदा बन गया,
मुझे पता ही नहीं चला
उसके नाम का वो सिंदूर,
कब मेरे माथे पर लगा कलंकनुमा धब्बा,
हो गया मुझे पता ही नहीं चला
उसकी पहनाई हुई पायल,
कब मेरे पैरों की जंजीर बन गई,
मुझे पता ही नहीं चला
उसने पहनाई हुई नोज रिंग,
कब मेरी जिंदगी की नकेल बन गई,
मुझे पता ही नहीं चला
मेरे अंदर की आवाज,
मेरे कानों तक पहुंचने से पहले ही,
उसके पहनाए हुए झुमको के नीचे कैसे दब गई,
मुझे पता ही नहीं चला
मेरे अंदर की औरत,
उस नामर्द के आगे कैसे झुकती चली गई,
मुझे पता ही नहीं चला
पापा के सर का ताज थी में,
कब उसके पैरों की जूति बन गई,
मुझे पता ही नहीं चला
मेरी आजाद जिंदगी,
कब रिश्तो के पिंजरे में कैद हो गई,
मुझे पता ही नहीं चला
उसके जिस्म की आग बुझाते बुझाते,
मेरे अंदर की रूह
कब जल कर खाक हो गई मुझे पता ही नहीं चला-
गर बच्चियां साड़ी पहनें, और वो शिकार न हों
ना-मुम्किन है बन्द लिबास हो, और हवस की तलाश न हों
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हब्शियो की हवस का ईलाज,अब क्यों ना हो?
बलात्कारियो का अब बलात्कार ,क्यों ना हो?
जिन हाथो से करते है इज्ज़त नंगी मासूमों की
उन हाथो में जख्म गहरे, अब क्यों न हो ?
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ज़िस्म से हाथ लगाने की ज़रुरत नही पड़ती उन्हें,
कुछ लोग गंदी नज़र से भी लड़की को छू लेते है।।-
चार दिन के इश्क़ को तुम मंजिल मत समझ लेना ।
रात को हमबिस्तर हुए लोगो को मैंने सुबह रास्ते बदलते देखा है ।-
माना तो मुझें वैसे देवी के रूप में जाता है,
पर हाँ,
हवस पुरी करने के लिए मुझ देवी को लूटा भी जाता है।-
प्यार अधूरा रह गया और हवस पूरा हो गया ।
जो कल तक अच्छा था, वो आज बुरा हो गया ।-
असर फ़िर तासीरों का इस क़दर हावी रहा है,
कि तपती में तपता ये बदन किसी की भी दवा से खिल रहा है !!
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