गलतियाँ करने का अवसर बार बार देती हो ख़ुद ही साँसे देती हो, ख़ुद ही मार देती हो क्यों चाहती हो मेरे हाथों से क़त्ल करवाना निहत्था आता हूँ तुम हथियार देती हो
तुम सबसे अगर सीखा होता हमने इश्क़ करना मेरे दोस्त तो आज हमारे बिस्तर की सिलवटें बता रही होती 'अभि' मेरे इश्क़ की गहराई। वो क्या है न दोस्त! कि हमारे इश्क़ की शुरुआत ही रूहानी हुई थी, वो जा चुका है लेकिन आज भी क़ामिल हैं मुझमें उसकी परछाई।