दिन तुम्हारे सब साथ चलेंगे।
रात फिर तुम अकेला बचोगे।-
मैं पेड़ हूँ
सड़क के किनारे वाला
ख़ौफ़ में जी रहा हूँ
बुलडोज़र खड़ा है
सड़क चौड़ी हो रही-
बहोत हो गया justice-justice का नारा..
हाल ऐसा करो उन दरिंदो का की कोई ऐसा सोचे ही ना दोबारा !!-
एक हादसा कल रोज़ भरी भीड़ में हुआ,
मगर चश्मदीद गवाह सिर्फ़ सड़क निकली!-
सड़क डरा करती थी जंगल से गुजरते हुए
अब जंगल डर जाते हैं सड़क का नाम सुनकर-
ये जो कच्ची सड़कें हैं न
जिन्हें तुम पक्की सड़कों में तब्दील कर रहे हो
मत करो ऐसा
सुनो, मत जोड़ो इन्हें नेशनल हाईवे से
इन्हें यूँ ही गड्ढेदार रहने दो
इन टूटी-फूटी सड़कों पर ही तो गुज़रा है मेरा बचपन
न जाने कितनी यादें आज भी बिछी हैं इन सड़कों पर
मुझे चलने दो नंगे पाँव इन सड़कों पर
चुभने दो यादों का कोई नुकीला पत्थर मेरी एड़ी में
इन्हीं सड़कों से होकर तो जाती थी स्कूल
याद है मुझे बचपन की वो मिट्टी वो धूल
इस धूल को अब मेरी आँखों को भिगोने दो
सुनो, आज तो बस जी भर के रो लेने दो
वो चौराहे वाला मन्दिर वो कोने वाली मस्जिद
इन्हीं सड़कों पर तो मनी है वो दिवाली वो ईद
आज यादों के दिये से इन सड़कों को सजा लेने दो
मुझे एक बार फिर बचपन को गले लगा लेने दो
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ख़्वाब तो सजाये थे कभी उनकी आँखों में रहने के
पर कमबख़्त ज़िन्दगी आधी सड़क पे बीत रही है।-
आज भी सड़क पर माँ भूखे बच्चे
को ढूध पिलाने से पहले सोचती है,
आँखों पर बस चश्में चढ़े है,
नज़र साफ होने में अभी समय है!-
सड़क सूनी थी
पर सफ़र नहीं
साथ तुम जो थी।
मंज़िल से ज़्यादा
रास्ते से प्यार था
साथ तुम जो थी।
बारिश तेज़ थी
पर चाल धीमी
साथ तुम जो थी।
कौन था रहगुज़र
था मैं बेख़बर
साथ तुम जो थी।
ख़ुद से ही मुझको
लग रहा था डर
साथ तुम जो थी।-
सुबह तुम्हारे घर भेजकर
शाम को वापस आती मान लेता हूँ
खिड़की पे दो बार खड़े होकर
इस सड़क से तुम्हारे हाल जान लेता हूँ।-