मत पूछ लख्त-ए-जिगर मुझ को क्या क्या चाहिए,
मुझे जीने के लिए बस सिर्फ और सिर्फ तुम चाहिए।
कहने को है दुनियां हमारी और सब अपने से है मगर,
थोड़ी मन्नत, थोड़ी जन्नत बाकी तेरी कायनात चाहिए!
पड़े जरूरत तो करे याद सब अपनी जरूरत को मगर,
थोड़ी शरारत, थोड़ी हरारत, बाकी तेरी इबारत चाहिए।
रह कर हम अपनो की बीच तो भी अकेले से होते है मगर,
थोड़ी जिंदगी, थोड़ी बंदगी, बाकी तेरी नुमाइंदगी चाहिए।
प्यार जताने वाले भी कम नहीं सब अपने मतलब से मगर,
थोड़ी कशिश, थोड़ी ख्वाहिश, बाकी तेरे एहसास चाहिए!
होने को तो वक़्ती तौर के दोस्त अहबाब है मतलब के मगर,
थोड़ी सोहबत, थोड़ी इजाजत, बाकी तेरी मोहब्बत चाहिए।
करते गुफ्तगू दिलकश अंदाज़ में कुछ हासिल करने को मगर,
थोड़ी सदाकत, थोड़ी लियाकत, बाकी तेरी नजाकत चाहिए।
सब के अपने अपने "राज" है, खुद को अव्वल बतलाते है मगर, _राज सोनी
थोड़ी खासियत, थोड़ी कैफियत बाकी तेरी शख्सियत चाहिए।-
सब तेरी सोहबत का ही असर है
वरना पहले एक-एक अल्फ़ाज़ को
तरसता था 'अभि' और एक आज का
दिन है फकत नज़्म पर नज्म लिखे जा रहा हैं-
...रंगीन फिल्म के,
...रंग हो जैसे...
...अपनी सोहबत में,
...तंग करता, मुझे वैसे...!!-
सुना है
अब कलम की कीमत बढ़ गई है ।
ये सिरफ चलती नहीं अपितु बोलती भी है ।-
ए सुन ले मेरे यारा
में हु तो बंजारा
ना जाने कब तुम्हारा
अब मिलना हो दोबारा
कुछ भी जो रहा यहाँ
सब था तोह हमारा
हाज़िर हुआ जहाँ
कही भी हो पुकारा
देखूं तेरी आँख से
फिर वो हसीं नज़ारा
किसकी दुआ से मिले
कैसा हुआ था क़ज़ारा
कुछ बिगड़े हो सही
तूने आकर निखारा
मुश्किल हो कितनी ही
कभी न किया किनारा
ज़ेहन में है सब कुछ
कहते हो चुका बिसारा
तेरे बिन क्या कहूं
में जैसे बे-सहारा-
ये रात है कि गुजरती ही नहीं
सूरज से भी ये डरती ही नहीं
न जाने बिगड़ी ये किसकी सोहबत में
सुधारो जितना भी सुधरती ही नहीं
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"मेरी रूह की
तेरी रूह से
कुछ ऐसे सोहबत होती है।
जैसे घर से निकल
मेरी परछाई को
आफ़ताब से मोहब्बत होती है।"
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उसको सोचते ही मेरी धड़कन का इंजन
राजधानी की रफ़्तार से चलने लगता हैं।
उसको जब न सोचूँ "अभि" तो मेरा ये
दिल बस उसके ख़्वाब संजोने लगता हैं।-
असर कुछ ऐसा हुआ है उनकी सोहबत का
अब तो हर कहीं ज़िक्र है सिर्फ़ मोहब्बत का-
हम दोनों ने दर्द को ख़ामोशी में भी है समझा
सोहबत में मुस्कराते हुए बरदाश किया हर ग़म को
लगा कर कंधे पर सर रख दुनिया को भुलाया
रास आता नहीं ये ख़ास रिश्ता सब को
नसीब वाले है जो एक दूजे का हाथ थामा
तौफ़ीक़ है इश्क़ जो तक़दीर मिला बैठी हम को-