Dr.Gaurav Singh   (तूफानी)
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Joined 28 November 2017


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Joined 28 November 2017
24 DEC 2021 AT 15:11

जो खून चूसे उसका निकलता भी है
और घिरा गुनाहों से वो बदलता भी है

सच है वाक़िफ़ पर झूठ में पड़ता भी है
औरों को छोड़ो आदमी खुद से डरता भी है

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28 MAY 2021 AT 12:14

You need excitement of a child to live everyday,
&
selfishness of an adult to die
everyday.

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14 FEB 2021 AT 22:27

तेरी अदा को जी भर के जिया
कभी हुआ फ़िदा कभी हुआ जुदा

ख़ैरियत की फ़िक्र हमको भी थी
पूछ ना सका यह रह गया गिला

खुदा ही जाने क्या हो उसकी रज़ा
मिला भी तू और मिल नहीं सका

आँखे मिलती रहे और थोड़ी हो लजा
बस इतना सा ही चाहता था मैं समाँ

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25 JAN 2021 AT 0:02

रास्ते भी खामोशी में बताते है,उस पर किस तरह के लोग गुज़रे थे।


The road also tells in silence,what kind of people had passed on it.

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19 JAN 2021 AT 3:17

लोग पौष पूर्णिमा के चंद्र से ज्यादा तुमको दीदार करे
हो पसंद बड़ी तुम लोगो को,हर कोई इक़रार करे

कमी ना रहे किसी अंश की रोशन रहे तुम्हारा नाम
चाँद की शीतलता कम ना हो,दुआ सूरज हर बार करे।

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20 MAY 2020 AT 17:52

हर दिन एक जंग हैं
हार जीत और तंग हैं

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8 FEB 2020 AT 12:58

ए सुन ले मेरे यारा
में हु तो बंजारा

ना जाने कब तुम्हारा
अब मिलना हो दोबारा

कुछ भी जो रहा यहाँ
सब था तोह हमारा

हाज़िर हुआ जहाँ
कही भी हो पुकारा

देखूं तेरी आँख से
फिर वो हसीं नज़ारा

किसकी दुआ से मिले
कैसा हुआ था क़ज़ारा

कुछ बिगड़े हो सही
तूने आकर निखारा

मुश्किल हो कितनी ही
कभी न किया किनारा

ज़ेहन में है सब कुछ
कहते हो चुका बिसारा

तेरे बिन क्या कहूं
में जैसे बे-सहारा

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22 SEP 2019 AT 16:07

इन छोरियों में दम है
ये ना किसी से कम है

आजादी जो मिले तो
सारी की सारी बम है

देख दूसरे का दुख बस
इनकी ही आँखे नम है

हाथ में हो करछी कभी
और फिर देखो कलम है

गाँव में ट्रैक्टर परिचालन
कहे बाइक चलाती हम है

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22 SEP 2019 AT 11:59

ज़्यादा जो ज़बाँ लगे तो स्वाद चला जाता है |

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6 SEP 2019 AT 21:35

चलती रही मीलो खुद ही किसी के पीछे नपसंद उसको बैठना कमाल था
उसे क्या पड़ी अनजान मछलियों की नदी में आटा यूँ फेंकना कमाल था

भगवान की एक ना थी तू पिता की तस्वीर के सामने सिर झुकाता रहा
डॉक्टर एक बार फिर भी लिखे नही बाक़ियों का दवा बताना कमाल था

पकड़ देखी बहुत हमने मगर माँ के हाथ से कभी ये बच्चा नहीं छूटता
सेहत बनाता दूध बेच कर जीवनीय उन पैसों से शराब पीना कमाल था

कहता हर शख़्स पुराना पहले सब जंगल था रेंग कर लौटा देखो कोई
पड़े रहते पार्क में लिपटे वो कहाँ खेतों पे तेरे हाथों से खाना कमाल था

बुढ़ापा जो उन्हें आया जरा विटप से श्वान तक सबकी क़द्र करा दी उसने
जिसने घर संसार छोड़ रखा उनका दूसरों को चलाना सिखाना कमाल था

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