अबस (عبس) = लाभहीन unprofitable
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सभी मज़हब मुहब्बत का हमें पैग़ाम देते हैं
सियासी लोग हैं, जो दूसरों की जान लेते हैं!
धर्म के नाम पर तुम हाथ में तलवार देते हो...
जो मज़हब जानते हैं, दूसरों पर जान देते हैं !!
سبھی مذہب محبت کا ہمیں پیغام دیتے ہیں
سیاسی لوگ ہیں جو دوسروں کی جان لیتے ہیں
دھرم کے نام پر تم ہاتھ میں تلوار دیتے ہو
جو مذہب جانتے ہیں، دوسروں پر جان دیتے ہیں-
फ़िर दोहराएंगे तमाशा, मज़हबी गोटियां फेंकी जाएंगी
मंदिर-मस्जिद के मुद्दे पर सियासी रोटियां सेंकी जाएंगी-
ना जाने कबसे हम इन कांटो भरे सफर में हैं
मंज़िल के करीब आकर, हम अब भी अधर में हैं
हर मुश्किल को मुसाफ़िर, हंस के पार करता है
बड़े गहरे तलुक्कात हैं मुश्किलों से, हम इनकी नज़र में हैं
बहुत मेहनत से बनाया था, जो गिर गया मकां मेरा
कमाल ये है मेरा कि हम अब भी सबर में हैं
जिसकी छांव के नीचे, था पड़ाव मुसाफ़िर का
सुना है सांप लिपटे हुए, अब उस शज़र में हैं
बहुत घिनौना है, वो जो चेहरा है सियासत का
उन्हें क्या पता "निहार", जो अरसों से कैद घर में हैं
सियासतदां से हमने जो कुछ पूछ लिये सवाल
इतना हंगामा बरपा है कि हम मशहूर पूरे शहर में हैं
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इस दाैर ए तरक्की में शहर और गांव के फासले पट गए हैं
सड़कें तो खूब बनीं, किसानों की फसल और खेत घट गए है
सियासत की जबान विकास का दावा करते नहीं थकती
ना जाने कितने भूखे सोते हैं, कितनो के सर से छप्पर हट गए हैं
ये कुदरत भी सियासत की ही राह चल पड़ी है "निहार"
कहीं दरिया में सैलाब आया है तो कहीं खेतों में सूखे पड़ गए हैं
उस मां की मनोव्यथा ऐसी है कि उसके बुढ़ापे का सहारा अब कोई नहीं
वो बेचैन सी फिरती है इधर उधर, उसके घर के कोने भी बेटों में बंट गए हैं-
दीप शांति का बुझा जा रहा, जाल भ्रांति का बुना जा रहा।
अंधकार के इस कलियुग में कैसे अलख जगाऊँ मैं।।
हर घर में अब रावण बैठा राम कहाँ से लाऊँ मैं।
मजहब-मजहब शोर हो रहा, राजा-राजा चोर हो रहा।
मृत हो चुके इस विषयुग में प्राण कहाँ से लाऊँ मैं।।
हर घर में अब रावण बैठा राम कहाँ से लाऊँ मैं ।
भाई भाई अब लड़ा जा रहा, पाप धर्म से बढ़ा जा रहा।
परमाणु के इस नव युग को कैसे शांत कराऊँ मैं।।
हर घर में अब रावण बैठा राम कहाँ से लाऊँ मै ।
सत्य शराफ़त टूट रही है कुर्सी इज्जत लूट रही है
राजनीति के इस युग को मर्यादा कैसे सिखाऊँ मैं
हर घर में अब रावण बैठा राम कहाँ से लाऊँ मैं
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