रहमत है ये खुदा
मकान मेरा कच्चा था मुझपे बरसते रहे
मेहलो की वो शहजादी बूंद को तरसती रही
रहमत तेरी मोहब्बत का शरबत पीला दिया
गुरबत में रही वो मेरे प्यार को तरसा दिया-
एक तुमसे सुरु होता है और एक तुम पर ख़त्म
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हाथ मेरा कांप रहा था उससे हाथ मिलाने में
पहले जैसी बात नही उसके मिलने आने मैं
उससे जिक्र अब मोहोब्बत का नही होता है
उससे मिलकर भी हाथ मिलाने का मन नही होता है-
यादें हशी, राह में मदहोशी
उस पर ये मौसम में नमी
तन्हा दिल तलबगार क्यों न हो
अर्शा गुजर गया दीदार को
मिलने की चाहत आखिर क्यों न हों-
इक शाम मोहोब्बत का जाम पिया था हमने
अब तो हर रात उसके नसे के सुरूर में गुजरती है
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अपने लहज़े में तमीज़ रखो जनाब
लिवाश तरीके से सब पहनते है
और हमें न बताओ तुम कैसे हो
लिवास देख कर लहजा बता देते है-
एक हम है जो तन्हा रहते है
वो किसी और की बाहों में समय बिता रही है
हम यह जाम पे जाम पिए जा रहे है
वो अब भी नशे की तरहा चड़ती आ रही है-
रुख़ मोड़ लिया हवाओं ने
तेवर तेरे देख कर
और
तू मोहब्बत का दाबा करती है
जख़्म देना फ़ितरत में हैं तेरी
तू मरहम लगाने की बात करती है-
मेरी शायरी कोई मेरे लहज़े में पढ़ लेता
में हर ख़ुशी ऊसपर फ़ना कर देता
अफसोस मेरी शायरी वो समझ न पाया
दी हुई मेरी ख़ुशी वो सम्भाल न पाया-
उन सपनों को जो सोते हुए नही होस में देखे है
मुस्तकविल की तलाश को मुनासिब करना है-
मंजिल सामने है चलने की देर हैं।
राह छोड़कर किसको शोहरत मिली हैं।
डटकर सामना करने से ही मंजिल हासिल हुई हैं-