मेरा सितमगर मुझको कुछ यूं सताया करता है
जैसे धीवर निर्जल मछली को तड़पाया करता है।-
सितम_ए_इश्क
मोहब्बत में कभी जिक्र_ए_जुदाई मत करना
उनकी नजरों से कभी बेवफाई मत करना
हंस के सह लेना उनके मोहब्बत भरे सितम
मोहब्बत में मोहब्बत भरी रुसवाई मत करना-
नज़रंदाज़ भी करता है , नज़र भी रखता है
वो इन दिनों मेरी , कुछ यूँ भी ख़बर रखता है
न जाने कैसी मुहब्बत है , उस सितमगर की,
जान ले लेता है , जिंदा भी मगर रखता है ;
रोज खाता है कसम , अब न इधर आऊँगा ,
मेरे ही कूचे में , लेकिन वो गुज़र रखता है ;
उसी के आने से बदलते हैं आजकल मौसम ,
वो अपनी नज़रों में इतना तो असर रखता है ...-
जिंदगी दे मुझे या मौत से निबाह कर दे !
ऐ मेरे सितमगर अब मुझे रिहा कर दे !
धीमा-धीमा दर्द क्यों घोलता है रगों में
बस खंजर उतार सीने में इंतिहा कर दे !
सुना है राज दफ्न करने में माहिर बहुत हो
उसी अदा से मुझे हैरत-ए-निगाह कर दे !
हालात पर मेरे पिघल जाए ना तू भी
इससे पहले मेरा हाल-ए-तबाह कर दे !
ख्वाहिश है तेरे पहलू में थम जाए सांसे
गर हो सके तो ये आखिरी गुनाह कर दे !-
ए सितमगर! इतने सितम भी ना कर
मैं सहता तो जाऊँ पर तू देख ना पाये
- साकेत गर्ग-
जुल्म कहो मजबूरी कहो या मेरी नादानी
उसी सितमग़र के इश्क़ में हुई मैं दीवानी
-©सचिन यादव-
मेरे सितमगर तू भी
वक़्त की तरह निकला,
क्योंकि.....
ना वक़्त कभी मेरा हुआ
और ना तू ....!-
मेरे अल्फ़ाज़ ही मेरा दर्द बन गए,
मेरे हमसफ़र ही मेरे सितमगर बन गए,
क्या करूँ शिकायत किसी और से,
जब मरहम लगाने वाले ही मेरे ज़ख़्म बन गए-
है मालूम उस सितमगर को कि कोई नहीं मेरा उसके अलावा,
है फिर भी उसे आदत ये बुरी, मुझे इंतिज़ार कराने की-
सितमगर बन चुकी हैं जमाने की हवाएं
कि मुस्कराने से भी डर लगता है,
अगर कोई दुख भी हँसकर सह ले
तो जमाने को वो भी अखरता है|-