मैंने अपना सुना है अपनो को देखा है..!
उस लड़की ने पापा को भी रोते देखा है..!!
चला के साईकिल मिलो दूर अपने जज्बों की..!
उसके पापा ने हौसलों को बढ़ता देखा है..!!
क्यूं ना आती वो पलायन करती हुई..!
उसने बचपन में कहते लोगो को सुना है..!!
कुछ समझ आता ही नहीं रहा होगा शायद..!
तभी उसने साईकिल के पलायन को चुना है..!!-
🌹"गुलाबी साइकल"🌹
दो पहियों की मेरी साइकल,कितनी दूर ले जाती है,
जब जब याद आती वो गुलाबी मुस्कान दे जाती है।
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टॉप किया था जब हमने स्कूल में मिली हमें तब,
पापा थे खुश बहुत,देखकर मेरी गुलाबी मुस्कान,
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ले आए झट से गुलाबी साइकल मेरे प्यारे पापा,
सैर की हमने सारे जमाने की पापा के सहारे से।।
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पापा कहते साइकल होती सेहत के लिए बड़ी ही अच्छी,
ना धुंआ,ना प्रदूषण करती बिना पेट्रोल पैडल से चलती।।
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जीवन में अपने संतुलन कर,गिरकर संभालना सिखाती,
जीवन के दो किनारे सुख दुख में मेहनत से चलना बताती।।
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Shashi Chandan
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यौरकोट ☺
साइकल, बाइक के विज्ञापन भी दीजिए,
कार अपने बजट में नहीं..!-
कभी पैंडल फिसल जाए तो कभी स्टैंड में फंस जाती है !
जुड़वाता हूंँ पंचर तो कभी हवा निकल जाती है !!
कभी चेन उतर जाता तो कभी सीट उखड़ जाती है !
बुखार जब लग जाता है तब घंटी बजाती है !!
कहो चलें वामिक के यहां तो ओ प्रिंस ओ प्रिंस चिल्लाती है !
दवा कभी भर पेट तो कभी खाली पेट खाती है !!
झूमती है पगडंडी पे खड़ंजे पे खड़ खड़ाती है !
खीझती है चढ़ाव आए तो उतार पे हरराती है !!
कुछ दूर चलती है वैस बिगड़ जाती है !
तबीयत है या साइकल इसे शर्म क्यूं नहीं आती है !!-
विषय:- साइकल
कवयित्री:- कु. गरिमा पोयाम
मैं भी दोपहिया हूँ,
पर अब कम लोग मुझे पसंद करते हैं।
जाना हो कहीं,
बाइक,स्कूटी या कार से चलते हैं।
ये न हों तो,बस या टैक्सी
से भी यात्रा करते हैं।
पता नहीं क्यों मुझसे अब लम्बी यात्रा
नहीं करते हैं।
कई बच्चों को आज भी पसंद हूँ,
क्या हुआ अगर
अन्य साधनों की अपेक्षा
चलती थोड़ी मंद हूँ।
कम लोग मुझे चलाते हैं,
पर जिम में मुझसे ही पसीने बहाते हैं।
हॉर्न नहीं मेरे पास,
ट्रिन,ट्रिन घण्टी संग चलती हूँ।
हवा न हो चक्के में,
या उतरे चेन तो मरती हूँ।
कसरत की आवश्यकता नहीं
अगर आप सभी चलाएँगे,
मुझे चलाकर स्वस्थ शरीर पाएँगे।
हाँ भाई ठीक समझा,
मैं साइकल हूँ।
अंग्रेजी में कहते हो न जिसे
वही बाइसिकल हूँ।-
#लघु कथा
कुछ दिनों से सुचित्रा अपने ऑफिस साइकल ले के जाने लगी थी।लगभग सब लोग गौर कर रहें थे। क्यों न करते; कभी कोई अफ़सर साइकल ले के भी आ सकता है! कल्पना के भी परे थी ये बात सबके।
उसके चाय वाले ने उससे पूछ लिया; "मेडम आप साइकल ले के आते हो!?"
सुचित्रा ने कहा: हां,क्यों नहीं आ सकती!?
नहीं मेडम, एसा नहीं, आज तक मैंने किसी अफसर को साइकल ले के ऑफिस आते हुए नहीं देखा..उसमे भी महिला अफ़सर को तो कभी नहीं,इसलिए पूछ लिया।
चाय वाले की ये बात सुन सुचित्रा ने बोला; "अब तो देख लिया ना"!!
ऑफिस के और लोगो ने भी सुचित्रा से आश्चर्य भाव से पूछा कि, तुम्हें पता तो हैं न की तुम एक अफ़सर हो!?
सुचित्रा ने मुस्कुराकर सिर्फ़ इतना बोला की, "सादगी","खूबसूरती","इंसानियत"
कभी किसीकी मोहताज नहीं होती।"
—Shana Malek— % &-
मेरा साइकल!!!
मंज़ील भले ही कैसे भी हासिल हुआ हो,
लेकिन सफ़र का आग़ाज़ तुझसे हुआ था!!!-
सामान्य बातचीत में हम सब ऐसा कहते हैं कि पेट्रोल के भाव आसमान पर पहुंच गए लेकिन घर से 50 कदम दूर जाते समय भी पैदल या साइकल नहीं ले जा सकते..! इसी आरामपसंद जीवन का लाभ सरकारें ले रही हैं...!
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