त्रिलोक चंद   (त्रिलोक चंद)
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लिखना सीख रहा हूं...
Joined 29 September 2018


लिखना सीख रहा हूं...
Joined 29 September 2018

मैं अकेला पूरी रात को,
देखता हूँ और सोचता हूँ
मैंने क्या खोया क्या पाया,
उत्तर मिलता नहीं है इसका
और रात यूं ही निकल जाती है।

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आज उच्चतम न्यायालय ने 'वनतारा' (जामनगर स्थित अम्बानी का वन्य पशुओं की देखरेख के लिए बनाया गया स्थान) को Clean Chit दे दी, अर्थात वहाँ पशुओं के साथ उचित व्यवहार किया जा रहा है। वामपंथियों के द्वारा किये जा रहे इन्हीं कारणों से देश का कोई भी सक्षम व्यक्ति समाज कल्याण का कार्य करना ही नहीं चाहता है..!

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क्या देशभक्ति केवल सैनिकों के लिए ही है, क्रिकेट के खिलाड़ियों और पैसों के भूखे BCCI का स्वयं का कोई दायित्व नहीं बनता..! राष्ट्रीय आत्मसम्मान से बड़ा कुछ भी नहीं।

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स्वतंत्रता के 75 वर्षों बाद किसी जिले को रेल से जोड़ने की बात स्वीकार्य हो सकती है लेकिन पूरे राज्य को पहली बार रेल से जुड़ने का अर्थ है कि पूर्ववर्ती सरकारों ने विकास के स्थान पर भ्रष्टाचार को अधिक महत्व दिया होगा। भ्रष्टाचार तो अभी भी हो ही रहा है लेकिन मानसिकता का अंतर बड़ा अंतर पैदा कर रहा है।

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भारत में इस समय दो प्रकार के लोग हैं, पहले वो जो चाहते हैं कि भारत में भी पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश अथवा नेपाल जैसा कुछ हो जाए और दूसरे जो चाहते हैं कि ऐसा कुछ ना हो, बाकी आप स्वयं समझदार हो..!

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गांधी कोई सन्त नहीं थे, वो एक राजनेता थे और उसकी आलोचना करने में क्या गलत है जब इस देश के बहुसंख्यक समाज के आराध्यों की आलोचना की जा सकती है..!

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ऐसा होता है कि जो नहीं मिलता, उसके दुख में, जो मिला है, उसका आनंद खो देते हैं और जब ये समझ आता है तब तक जीवन संध्या की ओर प्रस्थान का समय आ जाता है।

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आंदोलन के पश्चात श्रीलंका, पाकिस्तान और बांग्लादेश ने क्या खोया क्या पाया, का विश्लेषण करने की सर्वाधिक आवश्यकता है। ये आवश्यक नहीं कि सत्ता परिवर्तन के पश्चात जीवन स्तर सुधर ही जाए। हो सकता है कि सांपनाथ जाए और नागनाथ आ जाए। इसलिए जारी व्यवस्था में व्यवहारिक समझ के साथ परिवर्तन लाने से ही समस्याएं सुलझ सकती हैं। अन्यथा आप पुराने मंत्री, प्रधानमंत्री आदि किसी को भी मारकर, संसद में घुसकर कुछ प्राप्त नहीं कर सकते हैं।

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उनको दरगाह में राष्ट्रीय चिन्ह नहीं चाहिए, वे इस सीमा तक स्पष्ट मंतव्य रखते हैं, लेकिन फिर भी हिन्दू समाज के लोग वहाँ जाते हैं..!

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जिनके साथ बहकर
पहुंच जाते हैं उस समय में
जहाँ हम कुछ छोड़कर
आए थे और उसका
दर्द आज भी सीने में
गाहे बगाहे उठता रहता है।

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