त्रिलोक चंद   (त्रिलोक चंद)
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लिखना सीख रहा हूं...
Joined 29 September 2018


लिखना सीख रहा हूं...
Joined 29 September 2018

अग्निशेषमृणशेषं शत्रुशेषं तथैव च।
पुन: पुन: प्रवर्धेत तस्माच्शेषं न कारयेत्॥
भावार्थ:
यदि अग्नि, ऋण अथवा शत्रु अत्यल्प मात्रा में भी अस्तित्व बनाए रखता है तो बार-बार बढ़ेगा; अत: इन्हें थोड़ा सा भी बचने नहीं देना चाहिए। इन तीनों को सम्पूर्ण
रूप से ही समाप्त कर
देना चाहिए।

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जननी जनै तो भक्त जन, कै दाता कै सूर,
नाही तो तू बांझ रह, मती गवाँवै नूर।।

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आपके पास सदैव दो विकल्प होते हैं:
1. अभी कार्य करें
अथवा
2. बाद में पछताएं।

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ठहराव के लिए
और मैं दौड़ता रहा,
अनगिनत सपनों के पीछे,
एक दिन आया ऐसा भी,
मैं रह गया अकेला जीवन में,
जिंदगी बढ़ गयी आगे
और मैं ताकता रहा।

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आलसी व्यक्ति कभी सौभाग्यशाली नहीं हो सकता है। सौभाग्य देर से ही जागे लेकिन परिश्रमी का ही जागता है।

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देश में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि बहुसंख्यक हिन्दू समाज की आस्था का अपमान किया जाए, कटु है किन्तु सत्य है..!

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महाकुंभ 2025 की सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात ये है कि इसने लोगों के मस्तिष्क और जिव्हा पर प्रयागराज नाम छाप दिया है। अन्यथा उसे हटाना बहुत ही दुष्कर लग रहा था भले ही आधिकारिक रूप से नाम बदल दिया गया हो।

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घणी घणी राम राम सा,
आवो कदी इण देश,
एक दूजा सूं मिल्सयाँ सा।

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लिखता परिश्रम वाला,
क्या लिखेगा इसको
कोई आलस वाला।

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महाकुंभ में कोई किसी की जाति नहीं पूछ रहा है तो ऐसा हम अपने दैनिक जीवन में क्यों नहीं कर पा रहे हैं..? इस प्रश्न का उत्तर मेरी समझ से परे है??

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