श श श..... चुप.. चुप....शोर नहीं करना।।
हार कर,ऊंगली किसी की ओर नहीं करना।।
कुंजी सफलता की,भला यूं ही मिलती है क्या?
लकीरें अपने आप, यूं ही बनती हैं क्या???
तज आलस्य,चूमता है जब खार जमीं को..
दिन में चांद, रात को आँखें ताकती रवि को...
ज्यों नन्हीं चींटी चढ़ती पहाड़, गिरती सौ बार..
देखो हौसला भरती,मनाती ना फिर कभी हार..
कि दूर नहीं मंज़िल,बस मुलाकात अभी बाकी है,
घोर अंधरों में बस,खुद का साथ अभी बाकी है।।
गहरी सांस लेकर,आवाहन करो अंतर्मन का "शशि"
संघर्ष की शिला पे सफलता ही है मूल जीवन का।।
© शशि चंदन "निर्झर"
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