🌻जय श्री महाकाल🌻
धर अधरों पे मुस्कान,अश्रुजल से अभिषेक करती है।
तेरी भक्ति में भोले, समर्पित अनगढ़ से लेख करती है।
बिन पुष्प पत्र के,शीश झुकाए आँचल पसारे ये "शशि"
तेरे चरणों में अर्पित,बनते बिगड़ते हस्तरेख करती है।।
© शशि चंदन "निर्झर"
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मोक्ष के अंतिम दिनों में पूछी जाए जो तुम्हारी इच्छा।
तुम कहना, दी जाए समय रहते गीता की शिक्षा।।
© शशि चंदन "निर्झर"
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वो दरख़्त प्यासे हैं और प्यासे ही रहेंगे जिनकी ज़िंदा शाखाें पे झूले नहीं कभी परिंदें..!!
© शशि चंदन "निर्झर"-
सारा जग करे है मेरी दुती।।
क्या जाने वो सच्ची आहुति??
उसने भरा,जी भर के रोगन।
ताकि मिले दर दर के कोसन।।
क्या कहूं धुंआ धुंआ हुआ मन मेरा..
कि जब जब जला है तन तेरा– मेरा।।
न आए आंच बहुत चाहा तो मैंने भी..
लौ पकड़ी कभी, सरकते– सरकते भी।।
किस्मत की लकीरों को अपने होने को,
कैसे स्वीकार करूं, है सब खोने को।।
अरे हां हां,मुंडेरों पे रखे खुशियों के दीप।
मां,बहन,बेटियों ने,जब– जब खोले सीप।।
इस गदगद हृदय ने पाया,मानो मोक्ष ।
और हट गए हों जैसे सर चढ़े प्रमोष।।
आंधियाँ चलती हैं प्रकृति मेरी छलती है ।
कर्मों के लेख लेखनी हमारी लिखती हैं।।
© शशि चंदन "निर्झर"
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हरेक पीठ पर लदे है,भारी भरकम सामान कई।।
उफ़ हमारे तुम्हारे दर्द को चाहिए विश्राम कही।।
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कि उफ़ान मार– मार, ये तो हृदय पे आघात करे ।
तैयार,चंद श्वासों की मरण शैय्या दिन– रात करे।।
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अनायास ही मिला कागद कोरा,और मंच अनोखा,
खुशी बिखरी दर्द निखरा वाह वाही का लगा चौका।
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योरकोट से सिखा,शब्दों की डोर को कैसे बांधा जाए,
संग अन्याय को काटा जाए मानवता को बांटा जाए।।
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गहन से गहन प्रश्नों के हल मिले,साथी सारे सजल मिले।
अंततः निर्झर कलम से, कई कई काव्य कमल खिले।।
© शशि चंदन "निर्झर"
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चाहे तुम,केशव कवच कुण्डल उतार लो।
कर्ण को मंजूर नहीं,कि प्राण उधार दो।।
देकर वचन विचलित नहीं होते सूरमा...
चलो कुरुक्षेत्र में,और सुन मेरी हुंकार लो।।
©शशि चंदन "निर्झर"
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चढ़ रहे हैं उनके एहसान कुछ इस तरह से,
कि होगी फिर इक उम्र क़ैद अता मुझे।।
©शशि चंदन "निर्झर"-
बुनो स्त्री–पुरुष के,
भेद से परे सृष्टि नई।
हो जहां तीनों...
अवस्थाओं की दृष्टि सही।।
मिटे द्वेष भाव,
ईर्ष्या के जंजाल "शशि"
हो
"प्रेम और मानवता"
की वृष्टि वही।।
©शशि चंदन "निर्झर"-