कि खुद से मोहब्बत करने की ताकत रखो।
खुद के फैसले खुद करने की ताकत रखो।।
और हो जाए अगर, जो उच्च नीच "शशि"
तो खुद से बगावत करने की ताकत रखो।।
© शशि चंदन "निर्झर"-
हमारे मौन को, वो कमजोरी समझ बैठे।
प्यारे रिश्तों को कच्ची डोरी समझ बैठे।।
हम लिख रहे थे मां बाबा के संस्कार "शशि"
और वो है कि किताब हमें,कोरी समझ बैठे।।
© शशि चंदन "निर्झर"-
माँ तू सीख जा ना गिनती...
माँ तू भूल जा ना विनती...
अब मैंने भी तय कर लिया है,
मां से मां तक का सफ़र!!
पर न जाने क्यों मां..??
तेरा ख़्याल,हर वक्त क्यों मां??
कैसे तूने भी संजोया होगा...
मां से मां तक का सफ़र!!
वेदनाओं की मार से,
ज़ख्मों की धार से...
कैसे न कमजोर न हुआ तेरा
मां से मां तक का सफ़र!!
क्या न टूटा होगा अम्बर...
क्या न रूठा होगा दिगम्बर....
जब तू ही कृष्ण तू अर्जुन बन हांकी होगी,
मां से मां तक का सफ़र!!
© शशि चंदन "निर्झर"
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रख सर भूल जाऊं दर्द जिस पे,वो सिरहाना मुझे दे दे।।
कि जी पाऊं खुलकर अपना बचपन,वो बहाना मुझे दे दे।।
बिन रस्मों कसमों के,जिम्मेदारियों के जाल से छुड़ाकर
मेरे मां–बाबा के आंगन का, वो हसीं ज़माना मुझे दे दे।।
© शशि चंदन "निर्झर"-
सुन ए कोरे कागज़ भर गया अब मन मेरा...
कि जग के तानों से ऊब गया ये जीवन मेरा....
मैं चाहती हूँ इस रुंधे कंठ से, बिखर जाऊं तुझमें ।
कर बयां हाल दिल अपना, निखर जाऊं तुझमें।।
तू समेट ले शब्दों में, मेरे बेमोल बिकते एहसास.….
कि खत्म हो तलाश अपने की,सिर्फ़ तू हो मेरे पास।।
जब अंतिम पंक्ति में,विदा होने लगे मेरी लेखनी की शाख..
तू रूह को मेरी गले लगा लेना,करके तन को राख।।
© शशि चंदन "निर्झर"
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उफ्फ हर रोज़ नीली स्याही में डूबे पोर करती हैं!
शशि ये खामोशियां तुम्हारी कितना शोर करती हैं!!
© शशि चंदन "निर्झर"-
धरा ने संपूर्ण ब्रह्मांड अपनी कोख में धरा।
फिर समेट अस्तित्व अपना ओक में भरा।।
कि छीने जो गोदी के, हरे लाल हमने तुमने,
त्राहि त्राहि कर देव ओ दानव शोक में मरा।।
© शशि चंदन "निर्झर"-
मेरे गमों से मिलिए किसने कहा ?
अपना कांधा दीजिए किसने कहा?
बुरा न मानो मेरे ग़म मेरे हिस्से हैं ।
यहां सबके अपने-अपने किस्से हैं।।
कर्म का लेख भुगत रहे हम भी तुम भी,
बस इतना सीख रहे हम भी तुम भी...
कि कभी दिल दुखे न किसी जीव का,
कोशिश करें मिलकर, हम भी तुम भी।।
© शशि चंदन "निर्झर"-