QUOTES ON #सन्देश

#सन्देश quotes

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5 JUL 2020 AT 23:09

मैं एक विंचित्ररथ प्रकार के मनुष्य से विभिन्न
दोषी के विचार से प्रभावित होकर कुछ्
सन्देश संयम निमित्त करना चाहोगी
क्रप्या कीजिये ऐसे मनुष्य से संयम दूर
रहे अथवा गृहकार्य करें धन्यवाद शुभ
चिंतक अपराजिता राॅय 😎🙏

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11 MAR 2020 AT 17:21

प्रेम और भाईचारे का सन्देश,
इच्छुक हूँ खुशहाल रहे हमारा देश,
आशा है आप समझे होंगे मेरा सन्देश,
आगे बढ़ायें ये*प्रेम व भाईचारे का सन्देश*

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सच कहने की सहूलियत है सिर्फ़ पागलों को,
गुस्सा के उसने अपना शीशा बदल लिया!

किरदार की हक़ीक़त छुपती नहीं छुपाए,
लोगों ने हमको देख के रास्ता बदल लिया!

इक पल ख़याल मेरा ज़रूर आया होगा,
सुनते हैं उन आँखों ने सपना बदल लिया!

वाकिफ़ हूँ तिश्नगी से उन बेवफ़ा लबों की,
उसने भी अपना हुलिया बदल लिया!

एक उम्र तक दिल का था मेरा,
शायद किराएदार ने अब कमरा बदल लिया!

मिलने का एक बहाना हर बार मिल गया था,
खिड़की का उसने देखो परदा बदल लिया!

मुद्दत से दिल पे कोई दस्तक नहीं हुई,
पता गलत बता के परचा बदल लिया!

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8 AUG 2019 AT 19:49

जब चिट्ठियां लाया करता था डाकिया
और बातें होती थीं टेलीफ़ोन से
ट्रंक कॉल पर बामुश्किल
और आते थे रिश्तेदार ट्रेनों से छठे छमासे
तो गहरे थे रिश्ते
अब जब दूरियाँ सिमट गई हैं
मोबाइल और व्हाट्सएप पर
चेहरे देखते हुए कर सकते हैं बातें
ख़त्म हो गई है मिलने की छटपटाहट
और मिलता भी नहीं सन्देश कोई ऐसा
जो सहेजे जा सकें
चिट्ठी की तरह...

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11 AUG 2020 AT 2:00

# "ओ, अखिल व्योम के वासी चाँद नगर में रहने वाले!

निशा बीतती कल्पना में
दिन आशा के सूर्य सा है
सूख चुकीं अनगिनत नदियाँ
किंतु निश्चय पूर्व का है

यज्ञ की समिधा प्रज्ज्वलित वेद मंत्र कहने वाले!
ओ, अखिल व्योम....................................!!"¥

( अनुशीर्षक में पढ़ें..! )

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6 JUL 2017 AT 8:13

समन्दर की बून्द

(In caption 👇👇👇)

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19 JUN 2019 AT 8:59

उलझनों से भरी दिनचर्या में
सुकूँ के बस
यही तो दो एक पल होते हैं
सामने पार्क में बैठ
इत्मीनान से तेरे संदेशे पढ़ना
यूँ लगते हैं जैसे हों
बादे सबा

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आज हम कैद हैं पिंजड़ों में
पक्षी खुली हवा में सांस ले रहें हैं।
आज न शोरगुल है न कोई आवाज,
ऐसे में पशु पक्षी आवाज दे रहे हैं।

मनुष्य अब भी सुधर जा
प्रकृति के नियमों को समझ जा।
विकास कर मगर हानि न कर
तू जीव जंतुओं पर अत्याचार न कर।
न कैद कर उनको पिंजड़ों में,
प्राकृतिक संसाधनों को बेकार न कर।

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चेतना(दर्शन सूत्र)@स्वतंत्रबाबा

तुम करते वो हो जो तुम चाहते हो।।किन्तु होता वो है जो इष्ट चाहता है।।अतः करो वो जो धर्म चाहता है इष्ट चाहता है तुम्हारी आत्मा चाहती है।। ये किया तो फल वो होगा जो तुम चाहते हो।। चित्त को शांत रखिये,निर्मल रखिये तभी आप प्रकृति के सन्देश ग्रहण कर पाएंगे।।ये सन्देश कई बार बड़े बुजर्गों,मित्रों या राह चलते इश्तिहारों में भी प्रकट होते हैं।। बात है आपकी चेतना की ग्राह्यता की।।बस

कबीर दास की उलटी वाणी,
बरसे कम्बल भींगे पानी।।

जय शिव-शक्ति

सिद्धार्थ मिश्र

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22 JUL 2022 AT 11:59

तुम्हारे भेजे सन्देश के
शब्दो से ही तो मेरी
शायरी जन्म लेती है!!

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