बड़े ही आसानी से बदल जाए..
वह कम्बक्त आदतें नहीं, इरादे होते है!....-
पहेलिकाव्य
🍁प्रशस्ति-पत्र🍁
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बिनु द्युति तारक मद्धिम दीप, बिन मोती क्या सीप
बिन गुण मानव देह समाना, ज्वलित दीप संदीप
ज्ञान प्रकाश देवभूमि तुम, भावी भारत उज्ज्वल
उत्तम दृष्टिकोण संस्कारित, बिखरो प्रति पल प्रज्ज्वल
रहो अग्रसर डिगो न पथ से, पूरी हो हर आस
संदीपनी गुरु के जैसे लिखो सदा उजास
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आरज़ू पे पत्थर मारकर चला गया वो और हम तमाशे वाले कहे गए,
होश में था वो और हम चित्त-चिलमपोश रह गए,
कई भोर गुज़रे हम शुक्रगुजार हैं बटोही के,
आज पत्थर हाथ में और मुराद मुट्ठी में सफर करते हैं....-
सुनो न...
जीवन के सफर में मैं अकेला ही अच्छा था,
बच्चा ही, सही लेकिन दिल का सच्चा था,
आंखों के खारे समंदर तो मेरी जिंदगी के हिस्से थे,
इस बात के भी कई किस्से थे,
कभी किसी ने हिम्मत नहीं की
कि वो मुझे यहां से निकाल सके
ये खारा समंदर पूरे शैलाब में था
शायद ये इसका आखरी तूफान ही तो था
फिर एक दिन, अचानक, एकाएक तुम मिली
और इस समंदर को सूखने से बचा लिया...
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कुछ तो अजीब बात है तेरे मोहब्बत में,
जो तेरे जाने के बाद भी मुझे रूला देता है।
संदीप सिंह राजपूत,,,,,-
दिल टुटल बा कुछ दवाई देद ना,
अपना याद से तू हमके रीहाई देद ना।।
ई जे रोज रोज हमरा सपना में आवत बारु,
ई सपना के जरा दी हम तू सलाई दे द ना।।
भ्रम में रखलू डाल के आंख पे पर्दा,
आज उड़ गईलू जईसे उडे़ ला गर्दा।।
नज़रिया के तीर हलल बा दिल में ,
निकाले खातिर सुन कलाई दे द ना।
आज सुनना ओठवा भी कुछ कहता बावे,
हमरा आख़िया से नीर खूब बहत बावे।।
हमरा सिनवा के भीतर खूब जलन होला,
ऊ जलन भूझवे ला तू मलाई दे द ना।।
संदीप के अपना जाल में तू पसवलू,
मीठी मीठी बात क के मन बहलवलू।।
सूने में आवत बा कि खूब खुश रहत बारु,
हम दुखे में रही तू तनी भलाई क द ना।।-
कैसे चैन आये मेरे दिल को मुझे बता , चुराया है दिल मेरा जिसने ,क्या है उसका कोई पता # #
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