तेरी ख़ामोशी मुझे रुला देती है
सोने कहा देती जगा देती है।।
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तरप के आग मे जरल का होला
कोहु से बिछर के रहल का होला।।
सांस त हर रोज ले लिहिले हम
लेकिन जिंदा रह के मरल का होला।।
कलम के कारीगल बनावल त तोहरे ह
हमरा का पता की शब्द सरल का होला।।
अब जख्म दे का हाल पूछे लु तु
इश्क के घाव पर मरहम का होला।।
मोहब्बत मे एतना पिसाईल बनी हम
हमरा से मत पूछ की दरल का होला।।
हम त हर रोज भूले के कोशिश करे नी
तु किताब से पुछ की पढ़ल का होला।।
✍️ संदीप सिंह राजपूत-
दो शब्द के लिए तरसाया जा रहा है
वह कौन है की मुझे भुलाया जा रहा है।।
रात गुजर गई इंतजार करते करते
हमे नींद नही आई किसको सुलाया जा रहा है।।-
दुआ कहा बस दाग मिलल
ईश्क मे एगो ताज मिलल,
नयन बरसे नयन तरसे
ज़िन्दगी कटे ला याद मिलल।।
कलम ना प्यार के नाम लिखे
प्यार अधुरा ई क्षान लिखे,
दर्द ई दिल में छुपल रहीं
दर्द के नाम पर ईनाम मिलल।।
आख़िर उमरिया गुजर जाई
बनल घोंसला ऊजर जाई,
तकदीर के दिही का हम दोष
नसीब में ना जब नाम मिलल।।
संदीप ऊ ना स्नेह रहे
तनीको ना उनका नेह रहे,
दर्द छुपा ल ज़िन्दगी के
अब हाथ में तोहरा जाम मिलल।।
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खिड़कि से ताक के लजालु काहे
हमरा के देख के मुस्कुरालु काहे
हम त रात भर चांद के देखिले
फिर हमरा सपना मे भेटालु काहे।।
तोहके देख के कुछ महसुसू करीला
तु खुश रह त हम भी खुश रहिला
जब तु आंजन बारू हमरा खातिर
फिर आपन बन के टकरालु काहे।।
अब आसमान हमरा बेरंग लगेगा
अब तोहरे मे हमरा सारा रंग लागेला
फूल खुशबू सब तुहि हमरा खातिर
फिर देख के हमरा के चोनाह्लु काहे।।
धरकन के अब तु महसूस कर ना
तु हमरा से प्यार भरपुर कर ना
हम नजर मे तोहरा के बसा लेले बनी
अब सामने आव संदीप से नुकालु काहे।।
संदीप सिंह राजपूत,,,-
दिलवा धरकल बा की आंखिया फर्कल बा
करत का याद बारू की मनवा बहकल बा।।
नजर के पास रह जिगर के खास रह
लागल जे आग रहे देख ना धधकल बा।।
मोहब्बत का फेर होइ केहू अब फेर रोई
दुनिया जानत बा नयनवा बरसल बा।।
झूठो के जिये नी मरत हम रोज बनी
रखल जवन जाम रहे गिलास से छलकल बा।।
सुन खुशहाल रह उमार भर लाला रह
प्यार जब ताजा बा कहे तब महकल बा।।
झूठो जे नाज रहे कहा ऊ आज रहे
मरत संदीप बरण जवानी चनकल बा।।
संदीप सिंह राजपुत,,,
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नजर से नजर अझुराई त बावे
प्यार से मन ना अघाई त बावे।।
ई मुस्की के चुस्की लेलेती हम
तु देख ना दिलवा अगराई त बावे।।
जाहिया से हंस के नियरा से गइलू
लगेला मोहब्बत छिटाइल त बावे।।
मन के तरासल तु हीरा बुझालु
कोइला के खान से ढुढाईल त बावे।।
मोहब्बत के झूठो देखत बानी सपना
कहा केहू जिनगी मे आइल त बावे।।
संदीप सिंह राजपुत,,,
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दिल चोरवल कोई तोहरे से सिखे
दिल लगावल कोई तोहरे से सिखे।।
आँख तोहरो शराबी भइल बा
कोई पिआवल त तोहरे से सिखे।
ई मोहब्बत पढ़ल कइसे जाला
कोई पढ़ावल त तोहरा से सिखे।।
बिना मारले मुआवल भी जाला
कोई मारल त तोहरो से सिखे।।
प्यार मे बारेन फसल संदीप
कोई फसावल त तोहरे से सिखे।।
संदीप सिंह राजपुत,,,,-
हा हम दर्द के सतावल बनी
हा हम केहू के रोवावल बनी।।
खुशी के ठिकाना जे रहे हमार
हा हम प्यार के हरकावल बनी।।
दोष तोहर कइसे दे सकिले हम
हम त खुद समय के घुमावल बानी।।
अब जख्म सहे के आदत हो गईल
कहे की हम त दर्द मे पकावल बानी।।
संदीप सिंह राजपूत,,,,
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हम मन के कबे मुआ दिहनी
सब सपना के कबे जरा दिहनी।।
सुखल पतई से हाल कम ना बावे
जब से तोहरा नाता छोरा दिहनी।।
जवन तोहरा से सुख सभ मिलल रहे
हम आंखी से अपना बहा दिहनी।।
प्यार के कीमत उनका पता ना रहे
हम अपने हीं भाव खुद लगा दिहनी।।
ई निशानी जवानी के मिटी ना कबो
हम दाग अइसन हीं लगा दिहनी।।
संदीप सिंह राजपुत,,,-