यह लड़ाई, जो की अपने आप से मैंने लड़ी है, यह घुटन, यह यातना, केवल किताबों में पढ़ी है, यह पहाड़ी पाँव क्या चढ़ते, इरादों ने चढ़ी है, कल दरीचे ही बनेंगे द्वार, अब तो पथ यही है
उड़ते हुए बादल यूं ही नहीं बुझा पाते प्यास का आकाश एक संघर्ष की लंबी कहानी होती है इन भीगते लम्हों के पीछे, धरती की थाती से ही तो ये समंदर वाष्पित करना है बूंदे और फिर रुई के फाहों सदृश टुकड़े वापस आते हैं पानी बनकर, बुझा देते हैं धरा की प्यास. जीवन एक चक्र ही तो है निरंतर गति करता हुआ.
घने अंधकार में टटोलकर राहें तलाशते वक्त महसूस करना पुतलियों का असीमित फैलाव.... भरसक कोशिशों में जुटी उजाले के कतरे ही तलाशती है सिर्फ..... शून्य की जड़ता में चेतना की तलाश.. अंतर्विरोध से जूझती एक यात्रा....!!!
अपने संघर्ष के दिनो मे, लोगो को खोने से मत डरिए। ये वो नहीं जो आपके सफलताओ के जश्न मे शामिल रहेंगे,केवल इसके हकदार तो वहीं है जो सच में आपके साथ होंगे।।