प्रेम में तुम्हारे...
न रुक्मिणी, न मीरा, न राधा होना है;
आधी श्याम हो चुकी हूँ, आधा होना है।-
कई रंगो से सुशोभित है ये मोरपिच्छ !
पर फिर भी सब आकर्षित होते है सिर्फ
"श्याम" रंग से !!-
मेरी भव-बाधा हरौ, राधा नागरि सोइ।
जा तन की झाँई परैं स्यामु हरित-दुति होइ।।-
"उसे तो नहीं पर शायद मुझे जरूर मिल गए थे बांके बिहारी !"
( कहानी )
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उनसे ही शुरुआत मेरी, उन पर ही पूर्ण विराम है,
राधा नाम नहीं तो क्या? मेरी हर सांस में बसते श्याम है।-
जौ पै मूढ़ उपदेस के होते जोग जहान
क्यों न सुजोधन बोध कै, आए स्याम सुजान
[ यदि मूर्ख मनुष्य संसार में उपदेश के योग्य होते तो परम चतुर भगवान श्रीकृष्ण दुर्योधन को क्यों न समझा सके ? ]-
ललित रूप मुख पुहुप समाना
रजनीपति आभा सम कान्हा,
मोर मुकुट श्रृंगार लुभाऊ
चंचल चाल चलत जब कान्हा...!
किलकत चहकत कान्हा आवत
नाद करत सारंग समाना,
करिहाॅंव में बांधे हौ जो वेणु
वाकी धुन लागत वनप्रिया समाना...!-
अगन हिय को जलाय रही,
प्राण अपने ही भुलाय रही।
दीवानी के चित्त में श्याम,
दुनियादारी सब बिसराय रही।-
सुनो! जान मैं ज्यादा प्यार करता हूँ और आप तो और भी ज्यादा करती हो...
मैं आपके साथ जिंदगी बिताने की कसम खाता हूँ और आप मेरी जिंदगी बनने का वादा करती हो...-
शाम ढलते ही तुम ,चले आते हो,
सहर आने तलक , छोड़ जाते हो।
शाम ढलते ही,,,,,,,,,,,,,,
इंतज़ार में, मेरा वक़्त गुज़रता नही,
साल सा लगे पल, दिन कटता नही,,
तसब्बुर में आकर,तुम समझाते हो।
शाम ढलते ,,,,,,,,,,,,,,,,,
क्यों समझे यहाँ, सभी दीवाना मुझे,
यूँही सताता है,देखो ये ज़माना मुझे,,
सहमे दिल को मेरे,तुम्ही सहलाते हो।
शाम ढलते ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
तुम ही हो,तुम ही हो,ये नही है, वहम,
अब बता दो, ज़ालिम दुनिया को तुम,,
कैसी, ये दिल्लगी, यूँ हंसी उड़ाते हो।
शाम ढलते ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
नशा है या प्यार है,तुम हो या शराब है,
फर्क क्या तू तो है, सच हो याँ ख्याब है,,
प्यार में हदो को क्यों,यूँ,आज़माते हो।
शाम ढलते ही तुम , चले आते हो,,,,-