कई बार तुम्हारे शब्द
ध्वनि बन जाते हैं
होती रहती है उनकी आवृत्ति
मैं बन्द रखती हूं कान
कि मन पर उनका स्पंदन होता रहे
धड़कन बनकर
आवृत्ति-दर-आवृत्ति.-
अपने शब्दों से बेहतर लेखक की कोई जगह नहीं होती. किसी भी भावनात्मक क्षण में वो इसी खोल में समा जाना चाहता है.
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अगर आपके सिद्धांत, विचार
या नेता आपके अन्य धर्म के होने
से अन्य होते, तो आपको इन्हें
बदलने की ज़रूरत है।-
शब्दविहीन है
अवचेतन मेरा
भाषा अनभिज्ञ
जान पड़ रही है
और भाव विभ्रमित
जूझ रहे दैहिक स्तर
पर अव्यक्तता से
हिय आविर्भूत है
कृतज्ञता से,
सुख से, प्रेम से
क़लम मिथ्यालाप नहीं
करना चाहती,भाव
भावना मंद पड़ रही है
सुख सुख लग रहा है
और दुःख आनन्द
प्रेम प्रगाढ़ होता
जा रहा है
शायद.......
मन मौन को
पचा रहा है!!-
पंख नहीं है फ़िर भी उड़ना चाहता हूं,
शब्द नहीं हैं फ़िर भी लिखना चाहता हूं।-
शब्द मर रहे हैं
बेमौत मर रहे हैं
बेख़ौफ़ होने की ललक थी पर
बेबस मर रहे हैं
कवि की मौत पर बुद्धिमानों ने
तालियाँ पीटीं
छातियाँ पीटीं
बटोर-बटोर कर ढोल पीटे,
मरसिये लिखे, शोध लिखे
उस कवि के शब्द मरने लगे
किसी के मुँह से
आह नहीं निकली
किसी की बुद्धि पर
शिकन नहीं दिखी
अब जहां तक नजर जाती है
हर किसी के सूखते गले में
शब्द घुटन के मारे
बाहर निकलने की जद्दोजहद में
दम तोड़ते दिखाई पड़ते हैं-
लेखक के हाथ में थमी एक कलम हुं मैं
तुम शब्द बनकर मुझमें बहते हो
शब्द का लेखक के अन्तर्मन से कागज पर उतरने तक के समय जितना साथ है हमारा...
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रह रह कर याद आता है
जल बन कर दोनों नयनों से छलकता जाता है-