शख्सियत तो मिली हैं, कौन सी हैं मुकाम मेरी
गुमनाम चौराहे पर घुमते, कौन सी इसे पहचान दूं मैं!
इक दफ़ा मुझे मिल भी जाये गर मंजिल मेरी
मिलेगा सूकूऩ उसमें, या उसे वहीं पूर्ण विराम दूं मैं!
तितर-बितर ख्वाबों को समेटे नींद भर सो लूं
उठते ही फिर बिखर जाते, कहो इन्हें कैसे आराम दूं मैं!
हैं सफ़र तुम्हारा लम्बा हर किसी को सलाम दो यहां
थम जाऊ कहीं किसी मोड़ पर, और क्या वहां खुद को विश्राम दूं मैं!
आकस्मिक घटनाओं को कौन रोक सका हैं, यहां
जिंदादिली भी जरूरी हैं, आखिर दिल को कितना दिमाग दूं मैं!
कहीं दुनिया में दर्ज हैं किसी का नाम, तो कहीं किसी के सीने में
लगातार हार को ही यहां एक बार फिर उसे ही जीत का नाम दूं मैं!
-Taste_of_thoughts✍️
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एक तुझे ही मेरे भीतर बचाने की ज़िद में सनम
मैं और मुझ जैसे कई शख़्स मर गए हैं मुझमें!-
🇮🇳
शत शत नमन हैं उस महान शख्सियत को,
खुद तिरंगा जिसका कफ़न बनना चाहें।-
बड़ी मगरूरियत है हमारी शख्सियत में जनाब..
हमे यूँ बार-बार आज़माया ना करें..-
क़ाबिल नहीं होता हर शख़्स हर किसी के लिए,
हर किसी को अपने लिए यू परखा नहीं जाता..-
ये जो जिंदादिली की रसूख हमने पाई है,
इतनी आली शख्सियत यूं ही नहीं आई है।
कई मर्तबा टूटे हैं, कई मर्तबा लूटे हैं हम,
कई दफा हमने हम होने की कीमत चुकाई है।।-
मेरी बराबरी में आकर खड़ा होने के लिए
मेरा बचपन भी काट लेना बड़ा होने के लिए,-
"शख्स" तो खुदा ने हम सबको बना दिया,
"शख्सित" खुद से बनो तो कुछ बात बने...!!!-
कोई एक चोट तोड़ दे मुझे,
ऐसी कमजोर मेरी शख्सियत नहीं..
पर मैं फूट पड़ती हूँ, एक मुद्दतों बाद,
बिखरने लगती हूँ तब..
जब एक सैलाब सा,
मेरे अंदर समाने लगता हैं..!!-