अंकों की गिनती में सबसे बड़ी अंक 9 की होती है
और ये अकेली हो कर भी सबसे दमदार है
क्यूंकि 9वां अंक स्त्री (शक्ति) का प्रतीक है जैसे "नवदुर्गा"
वहीं शून्य अंक महादेव को दर्शाता है
और सबसे छोटा अंक होकर भी शून्य अंक पूरक कहलाता है
ये O अंक हर दशा में एक समान है
क्यूंकि शक्ति के बगैर "शिव" शव के समान हैं-
ॐ नमः शिवाय
श्री हैं वो सृष्टि हैं वो
दिल की हर धड़कन में हैं वो
डमरू की धुन से खुश होते हैं वो
शक्ति बिन अधूरे महागौरीशंकर हैं वो
नागराज वासुकि के स्नेह धारक हैं वो
अर्द्धनारीश्वर तो कभी आदिशक्ति हैं वो
त्रिशूल उनका डण्डा नन्दी के आराध्य हैं वो
यूँ तो पर्वतों पर डेरा कैलाश में विराजते हैं वो
दया के सागर सर पर चाँद टिकाए रखते हैं वो
महादेव के आराध्य विष्णु तो वासुदेव के पूजनीय हैं वो
अति प्रेम गणेश कार्तिकेय से पर शक्ति के सबसे प्रिय हैं वो
आँखोँ में प्रेम मुख पर मुस्कान लिए सबका मन मोहते हैं वो
सृजन त्रिदेवों ने किया किंतु साक्षात स्वरूप हैं शनि देव के वो
जो ना दिखे वही हैं वो जो आँखों में बसे वही हैं वो
त्रिलोकीनाथ हैं वो भगवान विष्णु के आराध्य हैं वो
रुद्राक्ष उनका स्वरूप है समय चक्र की सीमा में हैं वो
12 ज्योतिर्लिंगों में बसेरा है उनका 51 शक्तिपीठों में बसे हैं वो
दिल से भोले मन मोहने वाले मेरे दिल में बसे सबसे सुंदर मेरे महादेव हैं वो-
बेटी तो बेटी होती है..
कोख से किसी के भी जन्मे..
अदिति आकृति सुकृति शक्ति..
रचना रागिनी माधुरी भक्ति..
नाम चाहे कुछ भी रख लो..
पराए को बहू और..
अपनी को बेटी कहते हो..
पर इस नवरात्रि में एक प्रण ले लो..
नौ दुर्गा की नौ स्वरूपा है बेटी..
हर घर की मान-सम्मान है बेटी..
अपनी बहू भी अपनी ही है बेटी..
बेटी..बेटी..हम सबकी बेटी..-
न समझ तू मुझे अकेला,
मेरे साथ खड़ा मेरा "विश्वास" है।
मेरा आधा रूप ममता का,
तो आधा रूप तेरा "विनाश" है।-
सामर्थ्य नए रचनाओं का आधार बनती है,
तो वही,
शक्ति उसे तोड़ देती है।।-
ना मैं अबला हूँ,ना हीं मैं बेचारी हूँ ,
मैं शक्ति स्वरूपा नारी हूँ
मौन हूँ तो ये मेरी सहनशीलता है
अन्याय की सीमा जिस दिन पार हुई
तो समझना फिर मैं काल तुम्हारी हूँ
बेचारी नहीं,मैं शक्ति स्वरूपा नारी हूँ
सम्मान दोगे तो दिल में बसा लूँगी
किंतु अगर भोग की वस्तु समझा
तो फिर मैं विनाशकारी हूँ
बेचारी नहीं,मैं शक्ति स्वरूपा नारी हूँ
लक्ष्मी हूँ,दूर्गा भी हूँ,मैं हीं काली हूँ
सती हूँ,मीरा भी हूँ, मैं हीं झांसी की रानी हूँ
ना मैं अबला हूँ,ना हीं मैं बेचारी हूँ ,
मैं शक्ति स्वरूपा नारी हूँ|-
झुर्रियों से उसकी कमज़ोरी का अंदाजा लगाते हैं लोग
जब वो छोटी बच्ची थी तब भी वो एक औरत ही थी।-
अगर इस भारत देश के लिए मैं फिर से ये मानव तन पाऊँ
शिशु पीठ पर टाँगे घोटक पर सवार रानी लक्ष्मी बाई बन जाऊं।-
“पुरुष: पत्थर नही इंसान”
“मर्द को दर्द नही होता” ये जुमला हर लड़के को सुनाया जाता है।।
इस तरह एक इंसान को पत्थर बनाया जाता है ।।
रोना तो उसको भी आता है , लेकिन उसके आँसुओ को सुखाया जाता है।।
उसकी मासूमियत ओर जज्बातों का कुछ इस तरह धुंआ उड़ाया जाता है।।
जिम्मेदारियों ओर जरूरतों के तले उसके ख्वाबो को सुलाया जाता है।।
परिवार की खुशियों में ही उसे खुशियां तलाशने को कहा जाता है।।
नारीवाद की इस दुनिया मे, उसका अस्तित्व ही नकारा जाता है।।
बेबुनियादी इल्ज़ाम लगाकर , उस पर कीचड़ भी उछाला जाता है।।
अत्याचारी ओर आवारा कहकर , समाज के ताने भी सहते जाता है।।
वैसे तो है समानता का अधिकार ,फिर भी सम्मान कहा वो पाता है।।
कभी पिता ,कभी पति तो कभी भाई बनकर परिवार की ढाल बन जाता है।।
नारी दिवस तो रहता है सभी को याद , फिर पुरुष दिवस ही क्यों भुला दिया जाता है?
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