प्रेममार्ग की राहगीरी में मुखातिब हुई ,,
अनेक वेदनाओं से ,अनेकानेक परीक्षाओं से,,
निराशा , हार , मायूसी हाथ लगी,,,
पर अंततः मेरी आत्मा भी प्रेममयी हो गयी,,,
पर शायद तुम अंजान रहे, इस चिर परिचित द्वंद्व से,,,,
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किंतु,, महसूस कराना चाहूँगी में अपना प्रेम तुम्हें “मरणोपरांत",,,
जो नही विश्वास हो तुम्हे तो ,,प्रमाणस्वरूप,,
पंचतत्व में विलीन होते उस कलश की राख को जो महसूस करोगे ,,,
तो पाओगे ,,“तुमसे एकाकार होती मेरी रूह और उसमें समाहित विशुद्ध प्रेम ”,,,,
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समझ नही आता ,, क्या है ये??
अथाह गहन कल्पना सागर में गोते लगाता मेरा अल्हड़ मन,,,
या
पुरुषत्व में स्त्रीत्व ढूंढ़ने की मेरी नाकाम कोशिश...
-PAYAL PORWAL{शक्ति}
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