शौर्य संग धैर्य की अद्भुत अभिव्यक्ति राम।।
बोध तत्व,साधना की परिणित प्रतिमूर्ति राम।।
मातृभक्ति,राष्ट्रशक्ति ,चक्रवर्ती श्रुतिकीर्ति राम।।
शस्त्र–शास्त्र गर्जना की संघर्षमयी स्तुति राम।।
कोमल , मनभावन, श्रृंगारित अनुभूति राम।।
अप्रतिम , मधुरिम, अरुणीत रतिपति राम।।
देह राम , श्वास राम, ये "*शक्ति*" तेरी भक्ति राम।।
धर्म राम कर्म राम, रोम रोम राम राम।।-
आंखों में अश्क , हाथों में जाम लिए बैठे हैं।
एक दफा फ़िर से उसके पैगाम लिए बैठे है।
मुसलसल ये बेगैरत हमें राख न कर दे कही,,
खामखां दिल को श्मशान किए बैठे हैं।-
न ओर मिल रहा , न छोर मिल रहा है...
ये फिज़ाओ का रुख किस ओर चल रहा है...
वस्ल, वफ़ा, इश्कज़ादो पर एतबार न करना दोस्त...
ये जिस्मानी महोब्बतों का दौर चल रहा है...-
टूटे दिलों का क्यों कोई सहारा नही होता...
तन्हा ही रहे हम, क्यों कोई हमारा नही होता...
वो तो ज़माना डरता है रुखसती के अफ़साने से...
कौन कहता है कि इश्क़ दुबारा नही होता...-
फ़िज़ाओं में खुशबुओं का खुमार है छाया..
मेरी प्यारी वकील साहिबा का जन्मदिन है आया..
मस्तिष्क से परिपक्व और स्वभाव निर्मल है..
खूबसूरती का जिसकी हर कोई कायल है..
मम्मा की दोस्त, और पापा से लड़ाई का अलग अफसाना है..
कभी सख्त ,कभी उदार तो कभी इसका मिज़ाज शायराना है..
नारीवाद की पुरोधा और मन मैं बसता संविधान है..
ज़िद , जंग और जुनून ही जिसका एकमात्र विधान है..
मरुभूमि की तपन में जो पानी की मिठास है..
मेरी उलझी सी जिंदगी में सुकून की आस है..
जन्मदिन पर तुम्हारे एक छोटा सा उपहार है..
तेरी खुशियों के आगे ये “शक्ति” भी कुर्बान है..
- Payal Porwal “शक्ति”
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नज़रें मिली
नज़रें झुकी
अधरों से फिर मुस्काना क्या..?
जो रुक गया
तो मिल गया
जो चल दिया उसे पाना क्या..?-
न रुखसत हुआ , न उसका कोई पयाम मिला..
तिश्नगी के हक में हमे ,तन्हाई का इंतज़ाम मिला..
मुर्शिद, क्यों करे हम गिला इस नादां जमाने से..
हमें तो अहल-ए-दिल से ज़हर वाला जाम मिला..
~Payal Porwal“शक्ति”
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प्रेममार्ग की राहगीरी में मुखातिब हुई ,,
अनेक वेदनाओं से ,अनेकानेक परीक्षाओं से,,
निराशा , हार , मायूसी हाथ लगी,,,
पर अंततः मेरी आत्मा भी प्रेममयी हो गयी,,,
पर शायद तुम अंजान रहे, इस चिर परिचित द्वंद्व से,,,,
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किंतु,, महसूस कराना चाहूँगी में अपना प्रेम तुम्हें “मरणोपरांत",,,
जो नही विश्वास हो तुम्हे तो ,,प्रमाणस्वरूप,,
पंचतत्व में विलीन होते उस कलश की राख को जो महसूस करोगे ,,,
तो पाओगे ,,“तुमसे एकाकार होती मेरी रूह और उसमें समाहित विशुद्ध प्रेम ”,,,,
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समझ नही आता ,, क्या है ये??
अथाह गहन कल्पना सागर में गोते लगाता मेरा अल्हड़ मन,,,
या
पुरुषत्व में स्त्रीत्व ढूंढ़ने की मेरी नाकाम कोशिश...
-PAYAL PORWAL{शक्ति}
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श्रृंगार की अभिव्यक्ति औऱ वात्सल्य से सराबोर है।।
अवतरण दिवस पर तुम्हारे खुशियां बिखरी चहुँओर है।।
सादगी और सीरत की खूबसूरत इबारत है।।
मेहनत और त्याग ही जिसकी रिवायत है।।
वैसे तो घर में छोटी है ,पर मस्तिष्क परिपक्व है।।
माँ पापा की लाड़ली , और मेरी जीवंतता का तत्व है।।
शेरो शायरी की शौकीन पर मन मे बसता संविधान है।।
दुनियदारी से परे, जिद और जुनूनीयत ही जिसका विधान है ।।
सोचा जो था तुमने , उस हर इक मंज़िल को पाया है।।
अपने सपनो को पूरा करने से तुम्हें कहाँ कोई रोक पाया है।।
जन्मदिन पर तुम्हारे एक छोटा सा उपहार है।।
तुम्हारी खुशियों के आगे ये “शक्ति” भी कुर्बान है।।
-Payal Porwal “शक्ति”
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