रावनु रथी बिरथ रघुबीरा।
देखि बिभीषन भयउ अधीरा॥
अधिक प्रीति मन भा संदेहा।
बंदि चरन कह सहित सनेहा॥
नाथ न रथ नहिं तन पद त्राना।
केहि बिधि जितब बीर बलवाना॥
सुनहु सखा कह कृपानिधाना।
जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना॥
[ तुलसीदास ]-
7 OCT 2019 AT 14:17
31 JAN 2021 AT 13:09
नाथ न रथ नहीं तन पद त्राना ।
केहि बिधि जितब बीर बलवाना ॥
[ नाथ ! न ही रथ है, न ही तन कवच, न ही पैर में जूते
किस विधि से आप, वीर बलवान से जीतेंगे ? ]-
12 MAR 2020 AT 0:47
कहने को मेरा भाई था पर मुझे ही छल रहा था ...
वो सांप की तरह मेरे घर में पल रहा था ,
वो कहता तो मुझसे उसे नाजाने कितनी लंका उपहार सवरूप दे देता ... पर बडा दुख हुआ ये देख कर की वो राम के साथ मेरी मोत लिऐ चल रहा था ।।-
14 APR 2020 AT 17:50
घर का भेदी लंका ढाए,
कुल का विनाश देखत जाए,
धर्म की राह पर चलता जाए।
-विभीषण (रावण का भाई)-
1 DEC 2019 AT 0:10
"हमारे आसपास कुछ विभीषण होते हैं
उनके ही दिए घाव बड़े भीषण होते हैं"-
8 OCT 2019 AT 17:25
देशभक्ति से बड़ी कोई भक्ति नहीं होती
देशधर्म से बड़ा कोई धर्म नहीं होता
हम जानते हैं
विभीषण राम जी का भक्त था
लेकिन लोग उन्हें आज तक सम्मान नहीं देते
क्यूंकि वो देशद्रोही थे-