२२१ १२२२ // २२१ १२२२
इस बार प्रिये तुमसे, करती हूँ शिकायत भी
कुछ शिकवे गिले मेरे, तो साथ इबादत भी /१/
तुम देख रहे हो सब, पर करते नहीं कुछ क्यों
हलकान हुई दुनिया, है वक्त कयामत भी /२/
ये ज़ीस्त पड़ी मुश्किल, कुछ राह दिखाओ तुम
क्यों मौत खड़ी ऐसे, करती है तिज़ारत भी /३/
इक बात बता मुझको, क्यों मौन खड़े हो तुम
क्या चाह नहीं तेरी, मिल पाए रियायत भी /४/
विश्वास नहीं टूटा पर पूछ रहे जन-जन
कुछ सोच रहे हो या, बेकार ज़ियारत भी /५/
सुनती थी अभी तक मैं, सब हाथ तेरे होता
फिर क्यों न मिला अब तक सौगात मुहब्बत भी /६/
हैरान पड़ी दुनिया बेहाल हुआ मानव
क्यों वक्त बना दुश्मन क्यों वक्त अदालत भी /७/
_Anu Raj ( ११-०५-२०२१ )
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