धर्म धरा में समा गया—
धर्म धरा में समा गया, ऐसा कलियुग है आया।
संस्कृति, संस्कार, मान इंसान ने आज भुलाया।
ऐसी उल्टी चाल चली रिश्तों के मायने बदल गए।
स्वार्थ इतना गहराया, अपने अपनों से छले गए।
बुद्धि इनकी भ्रष्ट हुई, मन में अंधकार है छाया…
धर्म धरा में समा गया, ऐसा कलियुग है आया।
रोज़ धर्म पे लड़ते मरते, जिन्हें धर्म का पता नहीं।
उनकी बलि चढ़ा देते, जिन बेचारों की ख़ता नहीं।
इंसानियत अपना धर्म है, अरे क्यों मूर्ख भरमाया….
धर्म धरा में समा गया, ऐसा कलियुग है आया।
डरते नहीं भगवान से भी, बन बैठे हैं ख़ुद भगवान।
ऐसे ढोंगी, पाखंडी हैं, प्रभु की माया से अनजान।
टूटेगा अभिमान तेरा, तेरे सर पे काल मंडराया…
धर्म धरा में समा गया, ऐसा कलियुग है आया।
मासूम बहन -बेटियों का कोई रहा नहीं है रक्षक।
इंसान हुआ हैवान आज, ये बन बैठा है भक्षक।
इंसानियत को कर शर्मशार, मूर्ख मन में इतराया….
धर्म धरा में समा गया, ऐसा कलियुग है आया।
मत कर तू अहंकार रे, तेरा घड़ा पाप का फूटेगा।
मद्द में जो अंधा हुआ फिरे, ये भ्रम भी तेरा टूटेगा।
अरे पगले तुझको देख रहा है जिसने तुझे बनाया….
धर्म धरा में समा गया, ऐसा कलियुग है आया।
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आदरणीय YQ दीदी और YQ बाबा,
नमस्कार जी 🙏
आप बार बार मेरे रचनाओं को लॉक कर
के क्यों मुझे परेशान कर रहे हैं। कल मैंने
लिखा था, आपने उसे लॉक कर दिया।
आज फिर मैंने उसे डिलीट कर के दोबारा
बड़ी मुश्किल से लिखा और अपने फिर उसे
लॉक कर दिया।
कृपया मुझे कोई कारण तो बताइए, आप
किस वजह से ये सब कर रहे हैं। मुझे बहुत
परेशानी व दुख होता है।
धन्यवाद 🙏
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भजन
तर्ज़—तूने अजब रचा भगवान…
तू रख लेना मेरी लाज भरोसा इक तेरा
तेरा है बस तेरा है, तेरा है बस तेरा है।
तू रख लेना मेरी लाज, भरोसा तेरा है।
इधर उधर मैं भटक न जाऊँ, इधर उधर मैं भटक न जाऊँ।
तू थामना मेरा हाथ, भरोसा इक तेरा।
तू रख लेना मेरी लाज भरोसा इक तेरा।
जन्म जन्म से बिछुड़ी तुमसे,जन्म जन्म से बिछुड़ी तुमसे।
ना छोड़ना मेरा साथ, भरोसा इक तेरा।
तू रख लेना मेरी लाज, भरोसा इक तेरा।
तड़प रही है निर्दोष आत्मा, तड़प रही है निर्दोष आत्मा।
जैसे हो कोई अनाथ, भरोसा इक तेरा।
तू रख लेना मेरी लाज, भरोसा इक तेरा।
मैं तो प्रभु नादान बहुत हूँ, मैं तो प्रभु नादान बहुत हूँ।
कुछ भी ना मुझको ज्ञात, भरोसा इक तेरा।
तू रख लेना मेरी लाज, भरोसा इक तेरा।
इतना मुझे ज्ञान तू देना, इतना मुझे ज्ञान तू देना।
माया से मिले निजात, भरोसा इक तेरा।
तू रख लेना मेरी लाज भरोसा इक तेरा।
मैं तो हूँ चरणों की दासी. मैं तो हूँ चरणों की दासी।
मुझे करना नहीं निराश, भरोसा इक तेरा।
तू रख लेना मेरी लाज, भरोसा इक तेरा।
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शब्दों की क़ीमत—
क़ीमत ना रही ज़बान की, क्योंकि शब्द आज बिकने लगे हैं।
नीयत डोल गई इंसान की अपने ही अपनों को छलने लगे हैं।
शब्दों का कोई मोल रहा ना, रिश्ते हो गए आज अजीब से।
देखा उन रिश्तों को बदलते हुए, हमने बहुत ही करीब से।
उड़ा दी धज्जियाँ ईमान की, लालच में लोग फँसने लगे हैं…..
क़ीमत ना रही ज़बान की, क्योंकि शब्द आज बिकने लगे हैं।
वो भी तो एक समय था, लोग जब वचनों पर मिट जाते थे।
एक बार जो वचन दे दिया, फिर पीछे नहीं हट पाते थे।
आज फ़िक्र नहीं है सम्मान की, शब्दों के भाव गिरने लगे हैं…..
क़ीमत ना रही ज़बान की, क्योंकि शब्द आज बिकने लगे हैं।
इस लालच में इंसान आजकल, कितना नीचे गिर गया है।
आँखों में इसके जो पानी था, ना जाने कहाँ मर गया है।
हद बस हो गई अज्ञान की, लोग क्यों इतना भटकने लगे हैं….
कीमत ना रही ज़बान की, क्योंकि शब्द आज बिकने लगे हैं।
वचनों पर जो मर मिटते , उससे होती इंसा की पहचान।
जो फिर फिर जाता है वचनों से, वो इंसा मुर्दे के समान।
दहशत ना रही भगवान की, ख़ुद को भगवान समझने लगे हैं……
क़ीमत ना रही ज़बान की, क्योंकि शब्द आज बिकने लगे हैं।
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भजन
तर्ज़— मेरे बाँके बिहारी लाल, तू इतना ना……
तेरी मधुर मधुर मुस्कान, रे कान्हा ले गई मेरी जान,
बता कैसे जीऊँ, प्यारे, बता कैसे जीऊँ।
चंचल सी है तेरी चितवन।
घायल कर गई ये मेरा मन।
अब तुम ही करो निदान…रे कान्हा ले गई मेरी जान।
बता कैसे जीऊँ…प्यारे, बता कैसे जिऊँ।
जीवन भर मन यूँही भटका।
किन किन विषयों में ये अटका।
दिल था मेरा वीरान….रे कान्हा ले गई मेरी जान
बता कैसे जीऊँ…..प्यारे, बता कैसे जिऊँ।
जब से देखी मूरत तेरी, बदल गई है क़िस्मत मेरी।
मेरा तुझमें हुआ रुझान….रे कान्हा ले गई मेरी जान
बता कैसे जिऊँ….,…प्यारे, बता कैसे जिऊँ।
कितना मुझको कर दिया व्याकुल।
चैन नहीं अब मुझको बिलकुल।
इस दिल में उठे तूफ़ान….रे कान्हा ले गई मेरी जान
बता कैसे जिऊँ…..प्यारे, बता कैसे जिऊँ।
कौन मुझे अब राह दिखाए।
कौन तेरे दर पर पहुँचाए।
मैं कहाँ से लाऊँ ज्ञान….रे कान्हा ले गई मेरी जान
बता कैसे जिऊँ…..प्यारे, बता कैसे जीऊँ।
मुझे थोड़ी दया दिखाओ, मुझको कोई गुरु मिलाओ,
मेरा मिट जाए अज्ञान….रे कान्हा ले गई मेरी जान
बता कैसे जिऊँ, प्यारे, बता कैसे जिऊँ।-
सोशल मीडिया से पहले—:
इंसान के पास वक्त था
शांति, सरलता थी और सुकून था।
हर इंसान कितना खुश सभी झंझटों
से दूर अपने ही अनुकूल था।
सोशल मीडिया से पहले…….
एक दूसरे से बात होती थी
सबकी परवाह होती थी
प्रेम से मुलाक़ात होती थी
अपनों के लिए चाह होती थी
सोशल मीडिया से पहले…..
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भजन
तर्ज़—ओ सैंया दीवाने….
मुझे अपना बनाले रे……ओ कान्हा दीवाने।
ना करना तू बहाने रे……ओ कान्हा दीवाने।
दिल मेरा, मिलने को तरसे, ये नैना, तेरे विरह में बरसे।
अब तो मुझे अपनाले रे….ओ कान्हा दीवाने।
ना करना तू बहाने रे……..ओ कान्हा दीवाने।
मैं तो अब तेरी हो ही गई हूँ, प्रीत में तेरी खो ही गई हूँ।
तू माने या ना माने रे……ओ कान्हा दीवाने।
ना करना तू बहाने रे……ओ कान्हा दीवाने।
कितना तुमको, कान्हा चाहूँ, कैसे ये दिल चीर दिखाऊँ।
कैसे भी तू आज़माले रे……ओ कान्हा दीवाने।
ना करना तू बहाने रे……..ओ कान्हा दीवाने।
यूँही मैंने समय गँवाया, तेरा खेल समझ नहीं आया।
भरम दिल में पाले रे…….ओ कान्हा दीवाने।
ना करना तू बहाने रे………ओ कान्हा दीवाने।
अब तो तुमको जान चुकी हूँ, तुमको अपना मान चुकी हूँ।
पड़ गए बुद्धि पे ताले रे…….ओ कान्हा दीवाने।
ना करना तू बहाने रे…… ..ओ कान्हा दीवाने।
और नहीं मुझको भटकाना, मुझ दासी को चरण लगाना।
सब कुछ तेरे हवाले रे…….ओ कान्हा दीवाने।
ना करना तू बहाने रे ……..ओ कान्हा दीवाने।
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भजन
तर्ज़—मेरा दिल ये पुकारे आजा
ओ मेरे सपनों के राजा
मेरे दिल को चुराके ना जा।
खोई खोई हूँ यहाँ, जाने छुपा तू कहाँ।
कुछ तो मुझको बतला जा…..खोई खोई
बिन तेरे कैसे जीऊँ साँवरे ..साँवरे।
इन नैनों में है इक तेरी प्यास रे…प्यास रे।
मैं जीऊँ या मरूँ, तू बता क्या करूँ
उलझन मेरी सुलझा जा……
खोई खोई हूँ यहाँ, जाने छुपा तू कहाँ
मेरे सपनों के राजा…..
कृपया शेष कैप्शन में पढ़ें—:
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तर्ज़—अब सौंप दिया इस जीवन..
तू देर ना कर भगवान मेरे, कहीं साँस ना मेरी रुक जाए।
जो रूह मेरी प्यासी प्यासी, कहीं प्यासी ही ना रह जाए।
मुझे दिखता नहीं किनारा है,तुम्हें कितनी बार पुकारा है।
तू दे दे मुझको सहारा है, मेरी नाव किनारे लग जाए..,.
जो रूह मेरी प्यासी प्यासी, कहीं प्यासी ही ना रह जाए।
ये जग तो एक लुटेरा है, नहीं तेरे सिवा कोई मेरा है।
मुझे एक भरोसा तेरा है, विश्वास ना मेरा ढह जाए…..
को रूह मेरी प्यासी प्यासी, कहीं प्यासी ही ना रह जाए।
ख़ुद को कितना तड़पाती हूँ, मैं तुझमें ही खो जाती हूँ।
रो रो कर तुम्हें बुलाती हूँ, कहीं प्रीत ना मेरी बह जाए…
जो रूह मेरी प्यासी प्यासी, कहीं प्यासी ही ना रह जाए।
बस तू ही प्यार के काबिल है,ये दुनिया तो नाकाबिल है।
तुमको ही करना हासिल है, ये वक्त ना मेरा ढल जाए….
जो रूह मेरी प्यासी प्यासी कहीं प्यासी ही ना रह जाए।
सू लेना मेरे बनवारी, तेरी प्रीत में मैं सब कुछ हारी।
इतना ना सताना गिरधारी, कहीं जान पे मेरी बन जाए…
जो रूह मेरी प्यासी प्यासी, कहीं प्यासी ही ना रह जाए।-
भजन
तर्ज—जिया बेकरार है….
तुझपे ऐतबार है, तू ही सच्चा यार है।
कोई ना बिन तेरे सारा झूठा सा संसार है।
तुझपे ऐतबार है…..
मतलब के सब रिश्ते नाते कोई नहीं हमारा।
जब जब भी दुखों ने घेरा तूने दिया सहारा…..
हाँ, तूने दिया सहारा
तुमसे जीवन गुलज़ार है, तू ही सच्चा यार है।
कोई ना बिन तेरे सारा झूठा सा संसार है।
तुझपे ऐतबार है….
कृपया शेष कैप्शन में पढ़ें—:-