भजन
तर्ज़ —तुमसे मिलने को दिल करता है
तुम ही हो जिसपे दिल मरता है,
रे कान्हा तुमसे मिलने को दिल करता है।
अपना बनाने को दिल करता है…..
रे कान्हा तुमसे मिलने को दिल करता है।
बाक़ी कैप्शन में…..
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मानव ही मानव का….
भगवान तेरी दुनिया को न जाने आज क्या हो गया।
मानव ही मानव का दुश्मन आज क्यों हो गया।
अनमोल मिला ये जीवन, इसकी कदर करता नहीं।
पाप कर्म ये करता रहता ईश्वर से भी डरता नहीं।
बन बैठा कैसा बेदर्दी, इसमें प्यार और ममता नहीं।
चींख पुकार सुनकर भी दिल इसका पिघलता नहीं।
अरे ओ मूर्ख अज्ञानी क्यों तेरा ज़मीर सो गया…..
भगवान तेरी दुनिया को न जाने आज क्या हो गया।
कर्मों को अपने देख जरा, तू ख़ुद को इंसा कहता है।
कितने करता अपराध पाप का बोझ लिए फिरता है।
होके नफ़रत में अंधा, ज़हर तू ख़ुद के अंदर भरता है।
पशुओं जैसा बर्ताव, इंसा को इंसा नहीं समझता है।
अरे देख तेरी हैवानियत को दिल सबका रो गया….
भगवान तेरी दुनिया को न जाने आज क्या हो गया।
हम एक प्रभु के ही बंदे क्या हिंदू क्या मुस्लिमाँ।
हम सब में ही लाल लहू और सब में है एक सी जान।
संभल जरा ओ ज़ालिम तू ख़ुद की कर ले पहचान।
ना समय मिलेगा पछताने का मत कर तू अभिमान।
वो इंसानियत का ज़ज्बा तेरा आज कहाँ खो गया….
भगवान तेरी दुनिया को न जाने आज क्या हो गया।
क्या समझता है ख़ुद को तू निहत्थों पर वार करके।
क्या मिला तुमको बेचारे बेकसूरों को मार करके।
क्या तू खुश रह पाएगा, इंसानियत तार तार करके।
अरे हिम्मत है तो सामने आ लड़ जरा ललकार करके।
मुँह छिपाकर बैठा गीदड़, बस बीज ज़हर के बो गया….
भगवान तेरी दुनिया को न जाने आज क्या हो गया।-
इंसानियत हुई शर्मसार—
निष्ठुरता और बेशर्मी बढ़ गई है बेसुम्मार।
इंसानियत आज फिर से हो गई है शर्मसार।
ना रही है क़ीमत कोई लोगों की जान की।
देखी है वो घटना कश्मीर पहलगाँव की।
हैवानियत की हदें सारी, अब हो गई है पार….
इंसानियत आज फिर से हो गई है शर्मसार।
जाती और धर्म पर क्यों बांट दिया इंसान।
लोगों ने जाने क्यों अपना बेच दिया ईमान।
ऐसे नीच अधर्मियों को है बार बार धिक्कार….
इंसानियत आज फिर से हो गई है शर्मसार।
पाप कोई भी करने से दुष्ट ये डरता नहीं है।
दर्द किसी का भी, नादान समझता नहीं है।
बेच खाई मानवता, कैसा हो गया मक्कार….
इंसानियत आज फिर से हो गई है शर्मसार।
जयहिन्द 🙏-
भावनाएँ अनमोल हैं—
भावनाओं का इस दुनिया में, होता कोई मोल नहीं।
जो समझे दिल की भाषा दीखे ऐसा कोई सोल नहीं।
भावनाएँ अनमोल बहुत हैं, इज्जत इनकी करना।
दिल अपना हो, चाहे हो ग़ैर का, टूट जाएगा वरना।
घायल कर जाए जो दिल को, बोलो ऐसे बोल नहीं….
भावनाओं का इस दुनिया में होता कोई मोल नहीं।
जज़्बात बिखर ना जाए कहीं रखना इन्हें समेटकर।
यूँही इनको जाया ना करना, रखना इन्हें सहेजकर।
कितने जज़्बात लुटा देना, समझेगा कोई मोल नहीं….
भावनाओं का इस दुनिया में, होता कोई मोल नहीं।
कदर करे जो जज्बातों की, इनको वहाँ लुटाना।
एक बार जो झुकता हो, सौ बार वहाँ झुक जाना।
खुलके करना खर्च इन्हें, फिर रखना कोई तोल नहीं….
भावनाओं का इस दुनिया में, होता कोई मोल नहीं।
जितना भी बन पाए ख़ुद से भला सभी का कर देना।
दुख का कारण होगा पर उम्मीद किसी से कर लेना।
स्वाभिमान बचाकर रखना होना कभी डांवाडोल नहीं…
भावनाओं का इस दुनिया में, होता कोई मोल नहीं।
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भजन
तर्ज़—अँखियाँ श्याम से लड़ गई रे
नशा प्रीत छा गयो रे….मोहे श्याम सलौना भा गयो रे।
दिखता है वो भोला भाला, जादू ये कैसा कर डाला।
नैनन तीर चला गयो रे….मोहे श्याम सलौना भा गयो रे।
छवि श्याम की प्यारी प्यारी, जाऊँ मैं उस पर बलिहारी।
दिल में मेरे समा गयो रे…मोहे श्याम सलौना भा गयो रे।
नशा प्रीत का छा गयो रे, मोहे श्याम सलौना भा गयो रे।
अंखियाँ मेरी जल बरसाए, क्या मैं करूँ समझ ना आए।
कैसी तड़प जगा गयो रे… मोहे श्याम सलौना भा गयो रे।
नशा प्रीत का छा गयो रे…मोहे श्याम सलौना भा गयो रे।
तुम बिन तो जीवन बेमानी, दुनिया अब लगती बेगानी।
जीवन क्या समझा गयो रे…मोहे श्याम सलौना भा गयो रे।
नशा प्रीत का छा गयो रे…..मोहे श्याम सलौना भा गयो रे।
दिल बेचैन हुआ फिरता है, रोता और आहें भरता है।
जोगन मोहे बना गयो रे…..मोहे श्याम सलौना भा गयो रे।
और नहीं मुझको कोई रुचि, बस तेरे दर्शन की मैं भूखी।
प्रेम का रोग लगा गयो रे… मोहे श्याम सलौना भा गयो रे।
नशा प्रीत का छा गयो रे… मोहे श्याम सलौना भा गयो रे।
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भजन
तर्ज़ —लग जा गले
मन बावरे, सुन जरा, अब तो जा ठहर।
ना कोई मंजिल तेरी, बेकार फिर सफ़र।
चैन से रह लेने दे हमें क्यों सताए तू।
भजने दे हरि नाम पगले क्यों भरमाए तू।
बैठे नहीं इक पल कभी, फिरता दर बदर….
ना कोई मंजिल तेरी, बेकार फिर सफ़र।
कितने ही जन्म बीते मगर तू नहीं समझा।
दुनिया की चकाचौंध में, यूँही रहा उलझा।
ये नाम रस मीठा बहुत है ओ रे बेख़बर…
ना कोई मंजिल तेरी, बेकार फिर सफ़र।
कितना उछल ले बावरे यहाँ कुछ न मिलेगा।
भज लेगा हरि नाम तो, भव से तू निकलेगा।
हरि नाम के बिना तेरा कोई नहीं रहबर….
ना कोई मंजिल तेरी, बेकार फिर सफ़र।
कितना तुझे समझाऊँ मैं, मान ले कहना।
छोड़ दे भटकना तू, हरि शरण में रह ना।
पकड़ ले अब ओ मना, प्रभु द्वार की डगर….
ना कोई मंजिल तेरी, बेकार फिर सफ़र।-
तर्ज़— छम छम नाचे देखो वीर
भजन—
कान्हा कान्हा बोले मेरा दिल ये दिवाना।
कान्हा…कान्हा….
कुछ भी कहे मुझे अब ये जमाना…..
कान्हा …..कान्हा…..
कर गयो तू नैनन से जादू, होने लगा है दिल बेकाबू।
मोटी मोटी….
मोटी मोटी अंखियों में जैसे मैखाना…..
कान्हा….कान्हा…..
कान्हा..कान्हा बोले मेरा दिल ये दिवाना
नशा चढ़ा है नाम का ऐसा, दुनिया में कोई नशा ना वैसा।
क्षण…क्षण….
क्षण क्षण गाए ये तो तेरा ही तराना…..
कान्हा कान्हा…..
कान्हा कान्हा बोले मेरा दिल ये दिवाना।
समा गयो नस नस में मेरी, मत करना प्रभु अब तू देरी।
कभी…कभी….
कभी…कभी आके मुझे दर्श दिखाना….
कान्हा…कान्हा…..
कान्हा कान्हा बोले मेरा दिल ये दिवाना।
टीस विरह की जब जब उठती, दिल के अंदर हूक सी उठती।
कहाँ…कहाँ…..
कहाँ कहाँ ढूँढूँ मैं बतादे तू ठिकाना…..
कान्हा….कान्हा……
कान्हा कान्हा बोले मेरा दिल ये दिवाना।
ओ प्रीतम मुझे भुला न देना, कभी तो मेरी सुधि ले लेना।
छिन्न….भिन्न….
छिन्न भिन्न मेरे सपने न कर जाना…..
कान्हा…कान्हा…..
कान्हा कान्हा बोले मेरा दिल ये दिवाना।
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राम नवमी—
बाजे ढोल मृंदग, अवध में जन्मे है रघुराई।
छाई ख़ुशी अनंत,चल रहे आशीर्वाद बधाई।
दशरथ कौशल्या के घर आए जग रखवाले।
दुष्टों के निशां मिटा भक्तों की लाज बचाने।
मन में उठे उमंग, हर कली कली मुस्काई…..
बाजे ढोल मृदंग, अवध में जन्मे हैं रघुराई।
सुंदर सा रूप सलौना है मेरे रघुनंदन का।
मन को मोहित करदे वो रूप जीवनधन का।
ये मन हुआ जाए पतंग, छाई जैसे तरुणाई….
बाजे ढोल मृदंग, अवध में जन्मे है रघुराई।
अन्याय जगत में जब होता, होती मनमानी।
घड़ा पाप का भरता, होती धर्म की हानि।
ढंग होते बेढंग, प्रभु तब दिखलाते प्रभुताई…..
बाजे ढोल मृदंग, अवध में जन्मे हैं रघुराई।
आज यहाँ कलियुग में, मचा है हाहाकार।
सुन लेना ओ प्रभु भक्तों की करुण पुकार।
मचा हुआ हुड़दंग मिटा दो जगत की बुराई….
बाजे ढोल मृदंग, अवध में जन्मे हैं रघुराई।
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माँ की महिमा है अपरंपार।
आई होकर शेर पर सवार।
करते हम मैया का सत्कार।
वंदन कर कर के बारम्बार।
मैया का बरसे भर भर प्यार।
जिसका कोई आर ना पार।
माँ के भक्तों की लगी कतार।
सबका वो करती बेड़ा पार।
करती दुष्टों का वो संघार।
भक्तों की बनती है पतवार।
वो गिरतों को लेती सहार।
सबका कर देती है उद्गार।
माता के भरे हुए हैं भंडार।
वो जीवन को देती संवार।
भक्ति का कर देती संचार।
मिल जाता जीवन का सार।
जय माता दी 🙏
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भजन
तर्ज़—नी मैं यार मनाना नी…..
कब से आस लगाए बैठी, दिल मेरा अकुलाया।
कान्हा जी ने भेज दिया है मुझको आज बुलावा।
सखी गोवर्धन जाऊँगी, दिल मेरा कान्हा कान्हा बोले।
जाके शीश झुकाऊँगी,दिल मेरा कान्हा कान्हा बोले।
पर्वत को जहाँ उठा लिया था छोटी सी उँगली पे।
बृजवासिन को खूब रिझाया, लट उलझी उलझी से।
वहाँ के दर्शन पाऊँगी, दिल मेरा कान्हा कान्हा बोले….
सखी गोवर्धन जाऊँगी, दिल मेरा कान्हा कान्हा बोले।
ओ रे मेरे साँवरिया, तेरी लीला अजब निराली।
तेरे दर पर जो आया भर दी तूने झोली ख़ाली।
मैं तुझको ही चाहूँगी, दिल मेरा कान्हा कान्हा बोले….
सखी गोवर्धन जाऊँगी, दिल मेरा कान्हा कान्हा बोले।
मुझको तो ओ प्रीतम मेरे बस तू ही मिल जाए।
भटक रहा है कब से मनवा, चैन इसे मिल जाए।
तुझे अपना बनाऊँगी, दिल मेरा कान्हा कान्हा बोले….
सखी गोवर्धन जाऊँगी, दिल मेरा कान्हा कान्हा बोले।
आस लगी है दर्शन की, नैनों की प्यास बुझाना।
तड़पे रहा मेरा दिल बेचारा, इसकी पीर मिटाना।
मैं तेरे सदके जाऊँगी, दिल मेरा कान्हा कान्हा बोले….
सखी गोवर्धन जाऊँगी, दिल मेरा कान्हा कान्हा बोले।
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