भजन
तर्ज़ —रेशमी सलवार कुर्ता….
दो अपना दीदार मेरे कान्हा जी।
बहुत हुआ इंतज़ार अब तो आना जी।
क्यों करता है देरी, क्यों नहीं सुनता तू मेरी।
क्यों तू जिया जलाए,अब क्या है मर्जी तेरी।
मुझे बताना जी……
दो अपना दीदार मेरे कान्हा जी।
तुम संग प्रीत लगाई, अरे मैं तो बहुत पछताई।
दिल की हालत मेरी, तू समझे नहीं कन्हाई
अब ना सताना जी……
दो अपना दीदार मेरे कान्हा जी।
कशिश है तुझमें कैसी, दिल की हुई ऐसी तैसी।
ख़ता हुई क्या मुझसे, जो सजा मिली है ऐसी।
ना अब तड़पाना जी…..
दो अपना दीदार मेरे कान्हा जी।
निष्ठुर मत बन इतना, चाहा है तुमको कितना।
प्रीत मेरी ये पावन उस गंगा के जल जितना।
दिल तो दीवाना जी…..
दो अपना दीदार मेरे कान्हा जी।
थोड़ी दया दिखा दे , नैनों की प्यास बुझा दे।
क्यों तू छुपके बैठा, अब ख़ुद से मुझे मिला दे।
ना ख़ुद को छुपाना जी…..
दो अपना दीदार मेरे कान्हा जी।
बहुत हुआ इंतज़ार मेरे कान्हा जी।
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अंतिम उड़ान—
कोई नहीं जान पाया कब, कहाँ, क्या हो जाए।
पता नहीं जीवन की कब अंतिम उड़ान हो जाए।
उसकी माया वो जाने किसको कहाँ पहुँचाएगा।
आज ख़ुशी से उछल रहा क्या कल भी रह पाएगा।
कब सुंदर सुंदर सपने पल में ही दफ़न हो जाए….
पता नही जीवन की कब अंतिम उड़ान हो जाए।
आगे क्या होने वाला है, किसको पता होता है।
पर ईश्वर जो भी करता वो पहले से तय होता है।
वो तो उसकी मर्जी किसे उठाए किसे गिराए…..
पता नही जीवन की कब अंतिम उड़ान हो जाए।
प्रकृति की विपदाओं पे किसका ज़ोर चलता है।
कोई टाल नहीं सकता जो भी ईश्वर रचता है।
उसका तो क़ानून अटल भला उससे कौन बचाए….
पता नहीं जीवन की कब अंतिम उड़ान हो जाए।
फिर भी ये इंसान ना समझे, भरा हुआ अहंकार।
ना ख़ुद जीता ना जीने देता, करता अत्याचार।
नहीं प्यार से रह पाता ये आपस में टकराए…..
पता नही जीवन की कब अंतिम उड़ान हो जाए।
दुनिया की इस भागदौड़ में हम ऐसे खो जाते हैं।
जिसने हमें बनाया है उसको ही भूल जाते हैं।
तभी समझ में आता है जब समय आख़िरी आए….
पता नहीं जीवन की कब अंतिम उड़ान हो जाए।-
भजन
तर्ज़—वहाँ कौन है तेरा
ओ रे मुरलीधर, जादूगर, कैसा ये असर।
ख़ुद की ना ख़बर, जादूगर, कैसा ये असर।
कैसा तू अद्भुद, भूली मैं सुदबुध, तू ही तू है समाया।
जितना भी देखूँ तुमको साँवरिया मन ना मेरा अघाया
मन ना मेरा अघाया……
तुमसे हटे ना नज़र……….जादूगर, कैसा ये असर।
ओ रे मुरलीधर, जादूगर, कैसा ये असर।
तुमको ना जाना, ना पहचाना, उमर गँवा दी सारी।
विषयों में पड़के, भूली में तुमको, करना माफ बनवारी…..
करना माफ बनवारी…….
अब तू मेरा रहबर…..जादूगर, कैसा ये असर
ओ रे मुरलीधर, जादूगर, कैसा ये असर।
(कृपया कैप्शन में पढ़ें)
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चार काँधों की सवारी—
दुनिया से रुख़स्त होने की,आयेगी जब बारी।
जाएगी चार काँधों पर, ओ रे बंदे तेरी सवारी।
करता रहा तू मेरा मेरा, कोई ना बन पाया तेरा।
दो दिन का है तेरा बसेरा, उठ जाएगा तेरा डेरा।
यहीं छूट जाएँगे सारे, धन- दौलत-महल अटारी…..
जाएगी चार कांधों पर, ओ रे वंदे तेरी सवारी।
ना कोई अमर है आया,छोड़ेगी साथ तेरी काया।
कभी तूने हिसाब लगाया, क्या तूने है कमाया।
अरे ख़ाली हाथ जाएगा, जैसे हारा हुआ जुआरी…..
जायेगी चार काँधों पर, ओ रे बंदे तेरी सवारी।
अब भी तू समझ बावरे, करले कुछ नेक काम रे।
भज ले तू हरि का नाम रे, नहीं लागे तेरा दाम रे।
वरना अंत समय में, हो जाएगी रे तेरी ख्वारी…
जाएगी चार कांधों पर, ओ रे बंदे तेरी सवारी।
तू करले सोच विचारा, क्यूँ फिरता रे मारा मारा।
जीवन ना मिले दोबारा, ईश्वर का ले ले सहारा।
क्यों फँसा हुआ माया में, झूठी है रे दुनियादारी…..
जाएगी चार कांधों पर, ओ रे बंदे तेरी सवारी।
छोड़दे तू सारे अपराध,पोटली सत्कर्मों की बांध।
भजले राम नाम दिन रात, यही चलेगा तेरे साथ।
बच जाएगा यम के डर से, पकड़ेंगे हाथ बनवारी……
जाएगी चार कांधों पर, ओ रे बंदे तेरी सवारी।
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भजन
तर्ज़—तेरी मंद मंद मुस्कनिया…..
तेरे तिरछे तिरछे नैनों….
तेरे तिरछे तिरछे नैनों का कमाल कान्हा जी
कमाल कान्हा जी।
दिल नाजुक सा बेचारा है बेहाल कान्हा जी।
बेहाल कान्हा जी।
(कृपया बाक़ी कैप्शन में पढ़ें)-
वृक्ष की वेदना—
असहाय वृक्ष की वेदना भला कौन समझता है।
वो सब सह लेता है, पर कुछ नहीं कहता है।
दुख दर्द का अहसास तो उनको भी होता है।
बोलता तो कुछ नहीं है पर वो भी तो रोता है।
सोने जगने का अहसास तो उसको भी होता है।
कितना उसे सताओ, फिर भी वो शांत होता है।
मगर पत्थर दिल इंसान भला कहाँ पिघलता है…..
असहाय वृक्ष की वेदना भला कौन समझता है।
सांस भी हम इंसान, इन पेड़ों से ले पाते हैं।
फल, फूल, छाँया, लकड़ी इन्ही से तो पाते हैं।
वो बेचारे पेड़ हमें कितना कुछ दे जाते हैं।
फिर भी जाने अनजाने हम दुख उन्हें पहुँचाते हैं।
जो झुक जाता है पेड़, वही फूलता फलता है…..
असहाय वृक्ष की वेदना भला कौन समझता है।
इंसान ही ऐसा प्राणी है जो स्वार्थी बन जाता है।
जो उसको देता है दुश्मन उसी का बन जाता है।
काट काट कर पेड़ों को, विनाश कर डालता है।
प्रकृति की चीजों का सम्मान नहीं कर पाता है।
इंसान का अहंकार ही दुख का कारण बनता है….
असहाय वृक्ष की वेदना भला कौन समझता है।
अगर हम अपनी प्रकृति के ख़िलाफ़ चले जाएँगे।
इन आपदा विपदाओं को हम कैसे झेल पाएँगे।
जो फल हमने बोया आज, वही तो कल खाएँगे।
खुशहाली तब ही आयेगी जब हम पेड़ लगायेंगे।
अच्छे बुरे इन कर्मों से ही कल हमारा बनता है…..
असहाय वृक्ष की वेदना भला कौन समझता है।
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भजन
तर्ज़ —लगन तुमसे लगा बैठे
करूँ मैं क्या मेरे कान्हा तेरा दीदार मिल जाए।
यही अब मेरी अभिलाषा, तेरा दीदार मिल जाए।
कभी जाऊँ मैं वृंदावन कभी जाऊँ मैं गोवर्धन।
बता दे अपना ठिकाना, तेरा दीदार मिल जाए….
करूँ मैं क्या मेरे कान्हा, तेरा दीदार मिल जाए।
भटकती फिर रही हूँ मैं, भँवर में फंस रही हूँ मैं।
राह तू मुझको दिखाना, तेरा दीदार मिल जाए….
करूँ मैं क्या मेरे कान्हा, तेरा दीदार मिल जाए।
दर्श बिन नैन हैं सूने, ख़बर ना ली मेरी तूने।
हुआ है दिल ये दीवाना, तेरा दीदार मिल जाए……
करूँ मैं क्या मेरे कान्हा, तेरा दीदार मिल जाए।
लगे सूरत तेरी प्यारी, मैं जाऊँ तुझपे बलिहारी।
तुझे ही अपना है माना, तेरा दीदार मिल जाए…..
करूँ मैं क्या मेरे कान्हा, तेरा दीदार मिल जाए।
तरस मुझपे जरा खाओ,दर्श मुझको दिखा जाओ।
करो ना कोई बहाना, तेरा दीदार मिल जाए……
करूँ मैं क्या मेरे कान्हा, तेरा दीदार मिल जाए।
लगे है जग ये लुटेरा, नहीं लगता है दिल मेरा।
मुझे अब तुझमें समाना, तेरा दीदार मिल जाए…..
करूँ मैं क्या मेरे कान्हा, तेरा दीदार मिल जाए।
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शून्य से आए हैं….
शून्य से आए हैं हम, शून्य में मिल जाएँगे।
मिट्टी के पुतले हैं मिट्टी में ही मिल जाएँगे।
पता नहीं फिर भी बंदा रहता क्यों मगरूर है।
हम आए हैं देश पराए, मंजिल अपनी दूर है।
दुनिया एक छलावा है कितने दिन रह पायेंगे……
शून्य से आए हैं हम, शून्य में मिल जाएँगे।
शून्य से ही ईश्वर ने सारा जगत रचाया।
ज्ञानी मुनियों ने समझा, मूर्ख जान ना पाया।
जो समय पर ना समझे वो पीछे पछतायेंगे……
शून्य से आए हैं हम, शून्य में मिल जाएँगे।
जो भी समय बचा है, ख़ुद में ख़ुद को पहचान।
दुनिया में तो कुछ न मिलेगा बात जरा ले जान।
जो तेरे अपने हैं एक दिन वो ही तुम्हें जलायेंगे…..
शून्य से आए हैं हम, शून्य में मिल जाएँगे।
आँख खुले तब समझेगा, ये जग तो है सपना।
ईश्वर ही एक साथी है, बाकी कोई ना अपना।
नाम सुमरले उसका, वरना खाली ही जाएँगे।
शून्य से आए हैं हम, शून्य में ही मिल जाएँगे।
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तेरे नैनों ने चोरी किया ….
नहीं कोई उसका जवाब, मेरा कान्हा नवाब।
दुनिया की वो ख़बर रखता है।
कोई नहीं गड़बड़ करता है।
रखता है सबका हिसाब……मेरा कान्हा नवाब।
नहीं कोई उसका जवाब…मेरा कान्हा नवाब।
कृपय कैप्शन में पढ़ें—:
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प्रार्थना—
बहुत कुछ खोकर भी तुमको अगर पा जाऊँ।
इस नश्वर संसार से मालिक मेरे तर जाऊँ।
जो कुछ भी हमको मिला, तुमसे ही मिला है।
प्रभु तेरी ही कृपा से, मेरा जीवन खिला है।
तेरे इतने अहसानों से मैं कैसे मुकर जाऊँ…..
बहुत कुछ खोकर भी, तुमको अगर पा जाऊँ।
तेरी इस माया को हम नहीं समझ पाते हैं।
किस लिए मिला ये जीवन हम भूल जाते हैं।
तू लेना मुझे संभाल, कहीं मैं बिखर ना जाऊँ……
बहुत कुछ खोकर भी, तुमको अगर पा जाऊँ।
मोहमाया के जाल से हे ईश्वर मुझे बचाना।
जैसी हूँ तेरी ही हूँ, तू मुझको तू चरण लगाना।
तुही बता ईश्वर मेरे, अब और किधर मैं जाऊँ…..
बहुत कुछ खोकर भी, तुमको अगर पा जाऊँ।
तेरा ही जबाँ पे नाम हो, तेरा ही बस ध्यान हो।
साँसो की इन धड़कन में बस तूही भगवान हो।
हर पल तू मेरे साथ हो, तो मैं सँवर जाऊँ…..
बहुत कुछ खोकर भी, तुमको अगर पा जाऊँ।
राधे राधे 🙏-