Archana Shukla✍️   (अर्चना_अभिधा✍️)
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Joined 25 September 2018


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24 APR AT 18:28

जाकी रही भावना जैसी, प्रभु देखी मूरत तह तैसी...

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21 APR AT 19:08

केवल
पृथ्वी और सूर्य के मध्य
चन्द्र की उपस्थिति ही
ग्रहण नही होती

अपितु
ये तुम्हारे और मेरे
मध्य की 'विरक्ति' भी
हमारे 'रिश्ते' का ग्रहण ही है न..?

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20 APR AT 11:25

केवल...
मृत्यु पश्चात ही 'चिताएं' जलकर
'राख' नही होती ।

ये तुम्हारे और मेरे
मध्य का 'मौन' भी
हमारे 'रिश्ते' की
'राख' ही तो,
है न..?

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18 APR AT 14:42

तुमसे मिलकर जाना..
समुद्र से भी यदि कुछ गहरा है,
तो वो है,
तुम्हारे नैन...।।

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15 APR AT 18:30

नही उगती अब दूब सी,
हर जगह लड़कियाँ ।

टेक कर माथा,
लगानी पड़ती है चौखट पर
उसके नाम की अर्जियां ।

प्रतीत होता है,
सृष्टि भी परिवर्तन चाहती है ।

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14 APR AT 23:01

उसने कहा,"तुम ईश्वर हो"
मैने कहा, "नही" इक "इन्सान" हूँ।

परन्तु हठीला स्वभाव उसका,
कहाँ मानने वाला..

तभी..परिलक्षित होकर विदित हुयी..
उसके अन्दर निहित,
"भावनाओं मे छुपी..एहसासों की सच्चाई"

उसके..
अकथित,अपरिभाषित,अदृश्य मौन के गूढ़ रहस्य की...

'प्रेम मे ईश्वर' होना,

'पाषाण' होने की क्रिया का प्रथम अनुपालन है।
अर्थात
"तुम्हें शिला होना होगा"।।

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13 APR AT 12:55

बसंत बहार के पश्चात, जैसे पतझड़ मौसम
बरखा ऋतु सावन का, वैसे आंखें होती नम

दिग्भ्रमित ठगा युवा,नेता अपनी चाल मगन
पेपर लीक फर्क कहाँ,प्रसन्न मन रैली प्रथम

हाँ मंच जाकर रोष जताए,चंद छड़ का श्वांग
रोजगार वादे करे,अरे नीति वही फैलाए भ्रम

बैंक ड्राँफ्ट हजम करके,सुझाएं नये विकल्प
भर्ती प्रक्रिया फिर होगी,खेल न होगा खतम

चलो युवा आदत ड़ालों,बनवाओ नया ड्राफ्ट
कहे 'अभिधा' न सुधरे नेता, देंगें झूठी कसम

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12 APR AT 23:41

अन्जान सफर न मंजिल न घर,सबका यहाँ अपना रहगुज़र है।
ढूँढ़ा हर किसी मे अपना अक्स,मिला तो बस 'खुदा का दर' है।।

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9 APR AT 21:27

चार दिवस प्यार,
बरसा प्रेम फुहार,
गिद्ध नोचे तन...। (१)

जब बने सौदागर,
कन्या पग पखार,
क्यों छूते चरण...।(२)

ममता बीच बाजार,
मंदिर मस्जिद कतार,
कैसा दिखा चलन...।(३)

कैसा होगा संसार,
करों ज़रा विचार,
विचलित सोचे मन...।(४)

आयी चुनावी बहार,
जनता बेबस लाचार,
कैसा चुने महाजन...।(५)

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18 MAR AT 12:02

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