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अनाथ कहे या कहे पागल, पढ़े लिखों से सही विकलांग!,
अकड़ रहा मुर्दा, केहे रहा खुद को महान।-
मैं विकलांग हूं इसलिए किसी का न सहारा हुआ 🥺🥺🥺
मां बाप का चमकता सितारा मैं दुनिया के हारा हुआ,
जितना ही कोर्शिक करु उतना ही बेसहारा हुआ,
स्पेशल बच्चा मैं सारे जग से दुत्कारा हुआ,
शिक्षा का अभिलाषी मैं लेकिन सामाजिक नीतियों मारा हुआ,
जितना ही आगे जाने का सोचा उतना ही समाज का पछाड़ा हुआ,
मैं विकलांग बच्चा हूं इसलिए किसी का ना सहारा हुआ,
कभी मानसिक तो कभी शाररिक रूप का बहाना हुआ,
किसी तरह पढ़ा तो सही लेकिन नौकरी का मारा हुआ,
कभी अध्यापक, कभी दोस्तो,तो कभी मुसाफिरों का चिराया हुआ,
आज मैं अपने दम पे खड़ा होने के काबिल हुआ,
लेकिन समाज में स्पेशल होने की वजह से मैं समाज से निकाला हुआ
मैं विकलांग बच्चा हूं इसलिए किसी का ना सहारा हुआ ।।।-
एक दिव्यांग की अभिलाषा
कोई तो हो ऐसा
जो मेरे अंतस का शोर सुन मेरी खामोशियों को पढ़ सके
जो मेरे बेलफ़्ज एहसासों को समझ मुझसे बातें कर सके
कोई तो हो ऐसा
जो मेरी भरी-भरी सी आँखों के दर्द चुरा सके
जो मेरी मुस्कुराहट की वजह खुद को बना सके
कोई तो हो ऐसा
जो जिंदगी के रंगों से मेरी मुलाकात करा सके
जो मेरी जिस्म में नहीं रूह में समा सके
कोई तो हो ऐसा
जो मेरे ख्वाबों के बिखरे मोतीयों को ढ़ूंढ कर ला सके
जो तारे तोङ मेरी हथेली चमका सके
कोई तो हो ऐसा
जो मेरे लिए भी एक सपना सजा सके
जो मुझे निंदिया में लोरी सुना सके
कोई तो हो ऐसा
जो मेरे बेलगाम सपनों को दे सहारा मुझे उड़ना सिखा सके
जो लङखङाने से पहले ही मुझे सम्हलना सिखा सके
कोई तो हो ऐसा
जो मेरे माँथे पर बिंदिया सजा सके
जो मेरी हालत पर दया नहीं अपितु अपना प्रेम लुटा सके
कोई तो हो ऐसा
जो मेरे अँधियारी जीवन में उम्मीद की इक लौ जगा सके
जो बन कर ढाल मेरा अस्तित्व बचा सके
कोई तो हो ऐसा
जो विकलांगता की परिभाषा बदल सके
जो है अधिकार खुशियों का मुझे भी बता सके
कोई तो हो ऐसा
जो मेरा अधूरापन मिटा मुझे पूर्ण बना सके
जो मुझे महज़ एक मजबूरी नहीं अपनी इक्षा बना सके
कोई तो हो ऐसा...-
शासक मूर्ख हो तो तंत्र विकलांग है,
प्रजा मूर्ख हो तो राष्ट्र ही विकलांग है...
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जो सुन नहीं सकते बाहर का शोर
रूह का संगीत खींचता होगा अंदर की ओर
जिनको दिखती नहीं बाहर की चकाचौंध
भीतर की रौशनी देती होगी जीवन का बोध
जो बोल नहीं सकते अपने मन की बात
मन के भावों से करते होंगे अपनों से बात
जो लगा नहीं सकते ऊँची छलाँग
उनके सपने ज़रूर होते होंगे बेलगाम
ये सारी विलक्षण प्रतिभाएं हो जाएंगी दीपमान
जैसे ही हम मान लेंगे हर 'विकलांग' को 'दिव्यांग'|
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ये बात तुम अक्सर भूल जाते हो,
विकलांग वो नहीं तुम कहलाते हो,
बिन पाँव के चलना उन्हें आता है,
हर मुश्किल से लड़ना उन्हें आता है,
हर राह को पार करना उन्हें आता है,
खुली हवा में उड़ना उन्हें आता है,
क़दम दर क़दम आगे बढ़ना उन्हें आता है,
हाथ नहीं है लेकिन लिखना उन्हें आता है,
उनकी इस कला को देख अच्छे अच्छो
का झुकता माथा है,
हौंसला उन्मे आम लोगों से बहुत ज़्यादा है,
उनके हौंसलों का तुम सम्मान करो,
ना उनका यूँ अपमान करो,
थोड़ा तुम भी उनसे प्यार करो
नियत के वो अच्छे है,
उस भगवान के बनाए वो बच्चे है,
आसमान से उतरे फ़रिश्ते है।-
किन्नर हूँ अभिशाप नही
अंग भंग कोई पाप नहीं
ख़्वाब थे कुछ मेरे भी
श्रृंगार करूं सोलह
हो लाल मेरा भी जोड़ा
ब्याह रचाऊँ
मांग सजाऊँ
ना सुहागन ना विधवा हूँ
तन मन अधूरा
कुछ भी नहीं पूरा
ताली औरों की मान बढ़ाती
मेरी ताली गाली कहाती
श्रापित मेरा जीवन
लिंग त्रुटि मेरा दोष नहीं
अंग भंग है फिर क्यों ना
विकलांग कहाऊ ???
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