किसी का राज किसी से कभी
नहीं कहते
ये ऐहतियात अंधेरो में
पायी जाती है.....
वसीम वरेलबी-
मैं इस उम्मीद पे डूबा कि तू बचा लेगा...
मैं इस उम्मीद पे डूबा के तू बचा लेगा
अब इसके बाद मेरा इम्तेहान क्या लेगा
ये एक मेला है वादा किसी से क्या लेगा
ढलेगा दिन तो हर एक अपना रास्ता लेगा
मैं बुझ गया तो हमेशा को बुझ ही जाऊँगा
कोई चराग़ नहीं हूँ जो फिर जला लेगा
कलेजा चाहिए दुश्मन से दुश्मनी के लिए
जो बे-अमल है वो बदला किसी से क्या लेगा
मैं उसका हो नहीं सकता बता न देना उसे
सुनेगा तो लकीरें हाथ की अपनी जला लेगा
हज़ार तोड़ के आ जाऊँ उस से रिश्ता "शाहरुख"
मैं जानता हूँ वो जब चाहेगा बुला लेगा.
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सही क्या है गलत क्या है बताने की जरुरत क्या,,
जुबां बोले नज़र चुप है भला ऐसी मोहब्बत क्या,,
वसीम शाहज़हांपूरी-
मै इतने जुल्म सहता हूं बगावत क्यूं नहीं होती?
तू मेरा दोस्त कैसा है अदावत क्यूं नहीं होती?
कभी आजाद परिंदा था आज कैदी हूं यादों का
कितनी और सजा काटूं जमानत क्यूं नहीं होती?-
लाख तलवारें बढ़ी आती हों गर्दन की तरफ़।
सर झुकाना नहीं आता तो झुकाएं कैसे।
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वो मेरे घर नहीं जाता मैं उसके घर नहीं जाता !
मगर इन एहतियातों से तकल्लुक़ मर नहीं जाता !
वसीम उससे कहो दुनिया बहुत महदूद है मेरी
किसी दर का जो हो जाए वो फिर दर दर नहीं जाता !!
.......... वसीम बरेलवी जी-
किसी को कैसे बताएं,
ज़रुरतें अपनी!
मदद मिले ना मिले,,
आबरू तो जाती है!!-
एक लड़की के दिल को दुखाकर
अब तो बड़े आराम से हो
वसीम तुम्हें ये दौर मुबारक
दूर ग़म-ओ-आलाम से हो।।।
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कभी लहू से भी तारीख़ लिखनी पड़ती है
हर मआरका बातों से सर नही होता...⚔️-