Ashutosh Pandey   (आशुतोष पाण्डेय 'आशू ')
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Joined 27 May 2020


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Joined 27 May 2020
18 MAR 2022 AT 8:26

तुम भी चुप हो हम भी चुप हैं
ये शाम रुकी रुकी सी है
धड़कने तेज हैं होठ खिले हुए
पलकें झुकी झुकी सी हैं
इक बात पूछूं, क्या तुम्हारा भी
मेरे जैसा हाल है क्या ..??
अल्फाज़ जुबां तक आ गए
आवाज़ रुकी रुकी सी है।।

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3 OCT 2020 AT 8:01

कमरे का हर सामान अपनी जगह पर था
इक मेरी नजर थी कि हर जगह बिखरी हुई थी

मेरे आंगन तक हवाओं ने बसेरा डाला था
तेरी सांस थी कि बस तुझ तक सिमटी हुई थी।

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19 AUG 2020 AT 7:19

अब रातों की झोली में रोशनी भर रहे हैं
यहां चांद का कारोबार जुगनू कर रहे हैं।

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13 AUG 2020 AT 23:09

अब भी लोग सुनकर अनसुना करते हैं मगर
सच में हमे किसी से अब कोई काम नहीं..!!

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6 AUG 2020 AT 14:12

हर एक मुसाफ़िर का ठिकाना क्यूं नहीं?
भूख सबकी है तो फिर खाना क्यूं नहीं?
थोड़ी सी भूख से , जमीं निगल गए हो
भूख बढ़ा कर चांद निगल जाना क्यूं नहीं?
अगर भूखे रहकर ही जीना है हमे,फिर
ऐसे जीने से अच्छा मर जाना क्यूं नहीं??

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2 AUG 2020 AT 18:38

तूफानों ने ही बस्तियों को उजाड़ा होगा
हमे यकीं है तुझे हमने ही बिगाड़ा होगा

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1 AUG 2020 AT 11:51

सूख गए दरख़्त, पत्ते बिखर गए सारे
ये वक्त भी गुज़र गया माजी के सहारे
फिर से आएंगी, बहारें इस चमन में,
फिर से खिलेंगे वो फूल प्यारे - प्यारे।।

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1 AUG 2020 AT 11:37

कितने लाज़वाब हैं जो नक़ाब में हैं,
कुछ हैं भी नहीं और बेहिसाब में हैं।

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31 JUL 2020 AT 18:46

मुसाफ़िर की राह होती है अपना कोई घर नहीं होता
ठिकाना पनाह दे सकता है ,ठिकाना घर नहीं होता।

निकल जाता है जो, इन मंजिलों की चाहतों से आगे
फिर उसको किसी और का कोई डर नहीं होता।

मां बाप को छोड़कर ढूंढ़ते हैं जन्नत की राहें सब,
इसी मिट्टी में सब कुछ है ,कुछ भी ऊपर नहीं होता।।

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28 JUL 2020 AT 11:46

मुझे इस भीड़ में क्यूं बुलाया गया है?
मै जला नहीं था मुझे जलाया गया है।

मै बहुत खुश था , चेहरे पर हंसी थी मिरे
ये वहम है उनका सिर्फ दिखाया गया है।।

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