तुम भी चुप हो हम भी चुप हैं
ये शाम रुकी रुकी सी है
धड़कने तेज हैं होठ खिले हुए
पलकें झुकी झुकी सी हैं
इक बात पूछूं, क्या तुम्हारा भी
मेरे जैसा हाल है क्या ..??
अल्फाज़ जुबां तक आ गए
आवाज़ रुकी रुकी सी है।।-
मोहब्बत अदावत वफा बेरुखी सब किराए ... read more
कमरे का हर सामान अपनी जगह पर था
इक मेरी नजर थी कि हर जगह बिखरी हुई थी
मेरे आंगन तक हवाओं ने बसेरा डाला था
तेरी सांस थी कि बस तुझ तक सिमटी हुई थी।-
अब रातों की झोली में रोशनी भर रहे हैं
यहां चांद का कारोबार जुगनू कर रहे हैं।-
अब भी लोग सुनकर अनसुना करते हैं मगर
सच में हमे किसी से अब कोई काम नहीं..!!-
हर एक मुसाफ़िर का ठिकाना क्यूं नहीं?
भूख सबकी है तो फिर खाना क्यूं नहीं?
थोड़ी सी भूख से , जमीं निगल गए हो
भूख बढ़ा कर चांद निगल जाना क्यूं नहीं?
अगर भूखे रहकर ही जीना है हमे,फिर
ऐसे जीने से अच्छा मर जाना क्यूं नहीं??-
तूफानों ने ही बस्तियों को उजाड़ा होगा
हमे यकीं है तुझे हमने ही बिगाड़ा होगा-
सूख गए दरख़्त, पत्ते बिखर गए सारे
ये वक्त भी गुज़र गया माजी के सहारे
फिर से आएंगी, बहारें इस चमन में,
फिर से खिलेंगे वो फूल प्यारे - प्यारे।।-
कितने लाज़वाब हैं जो नक़ाब में हैं,
कुछ हैं भी नहीं और बेहिसाब में हैं।-
मुसाफ़िर की राह होती है अपना कोई घर नहीं होता
ठिकाना पनाह दे सकता है ,ठिकाना घर नहीं होता।
निकल जाता है जो, इन मंजिलों की चाहतों से आगे
फिर उसको किसी और का कोई डर नहीं होता।
मां बाप को छोड़कर ढूंढ़ते हैं जन्नत की राहें सब,
इसी मिट्टी में सब कुछ है ,कुछ भी ऊपर नहीं होता।।
-
मुझे इस भीड़ में क्यूं बुलाया गया है?
मै जला नहीं था मुझे जलाया गया है।
मै बहुत खुश था , चेहरे पर हंसी थी मिरे
ये वहम है उनका सिर्फ दिखाया गया है।।-