जो भी मांगोगे यहाँ उसके सिवा मिलता है
फैज़ का आम है दरिया जो सदा मिलता है
जिसने अफसाने सुने थे मेरे उर्जुन शाह के
वो भी पिटलाद जो आया, तो कहा, मिलता हे
गोषो ख़्वाजा से हमेशा दरे उर्जुन शाह से
हाजतें मांगने वालो को सदा मिलता है
शाह उर्जुन हे पिटलाद का वाहिद मरकज़
अहले पिटलाद को ख्वाहिश के सिवा मिलता हे
तेरे फैज़ान उमुमी पे ये लोगो ने कहा
तेरी देहलीज़ पे मंगतों को सदा मिलता है
कासाँ ए हिर्स को दुनिया भी नही भर सकती
एक तेरे फ़ज़्ल से मंगतो को सदा मिलता हे
निस्बते दर जो मयस्सर हो तुझे भी सोहिल
तु भी कहता ही फिरे सब को सदा मिलता है...-
उसी से रूठ कर उसको मनाना
दिलों की तो यही नादानियाँ है...
नहीं करता मिलन का मन तुमहारा
मुझे ही क्यूँ भला बेताबीयाँ है...
चलो एक दूसरे को भूल जाएँ
जहाँ मे ओर भी बर्बादियाँ है...-
अब दिसम्बर भी आ गया हे पैरो पर
ए जनवरी तु लाज रख दिसम्बर की...-
ये दिसंबर भी कितना अजीब हे यारों
जब भी आता हे आँखों को भीगो जाता हे
ओर जब ये अपने आख़री मक़ाम पे हो
एक नई आस के दरिया मे डुबो जाता हे...-
साँवली रंगत भी कितनी खूबसूरत होती है
रंग मिट्टी सा मगर झील आँखे होती है...-
वो जन्मदिन पे बुलाते हे हमेशा मुझ को
हर नया साल ब अंदाज़े विसाल आता हे
ईद का दीन भी हो ओर जन्मदिन भी हो
फिर तो फीके पड़े रंगों में जमाल आता हे
तेरी सूरत से मिलती हो किसी की सूरत
ऐसा तो ना ख्वाब ना कोई ख़याल आता हे
हमसफर हो कोई तो हो तेरे जैसा
यही ख़याल फ़क़त वक़्ते विसाल आता हे
खुशनसीबी ही कहेँगे आप का मेहबूब हूँ
वरना सोहिल कब क़िस्मत में हिलाल आता हे-
इश्क़ के ऐन से निकले तो ऐबदार हुवे
बारी जब शिन की आई तो शानदार हुवे
क़ाफ जिस को भी समझ आया कयामत कर दी
इश्क़ तकमिल को पोहचा तो शर्मसार हुवे...-
बाइस हज़ार सामने है मद्दे मुक़ाबिल
फिर भी बहत्तरो ने घुटने टिका दिए
निकली जो ज़ुल्फ़ेकार लश्कर के सामने
सारे यज़िदियों के तेवर गिरा दिए-
मैं कतअ करता नही सरसरी ताल्लुक़ भी
आप के साथ तो अच्छा भला ताल्लुक़ है...-
पीछे मुड़ कर भी देखते रहिये ...!
खिड़कियाँ बाद में भी खुलती हैं ...!!-