बातें भले ना भी ज़हन में है
बातें करना उससे अच्छा लगता है..!
चाहे लिखा ना भी हो, उसकी आँखों में कुछ मुझे पर, पढ़ना लेकिन अच्छा लगता है..!
सहम जाता है मन, कही दूर ना होजाए वो उसका हाथ थाम के मग़र, डरना अच्छा लगता है..!
ढलती रात से लेकर, उजले सवेरे तक
उसके साथ बातों का कारवाँ, चलना अच्छा लगता है..!
वैसे ये तमाशा है नहीं कोई, ना कोई इश्क़ का नशा है ख़ैर जो भी है ये, नशा उसका करना अच्छा लगता है..!-
पर उन्हे समझने की कोशिश जारी है.....
एक रिश्ते का कुछ अलग सामान था,
खाली सड़क के आगे एक मकान था,
उस मकान का हर एक सामान,
किसी न किसी उलझन के समान था,
बड़ी, शिद्दत से सुलझाया था मैने उसे
पर, अब वो मेरे लिए बस एक खाली मकान था......
एक रिश्ते का कुछ अलग सामान था.......-
तुम कहते हो घर हुं मैं तुम्हारा....!!
थक हार कर एक दिन
तुम जब मौन हो जाओगे,
मैं यही मिलगी तुम्हे,
बस तुम घर वक्त पर लौट आना!!-
की, पूछते हैं वो हमसे किसका इंतज़ार है तुम्हे?
आखरी सफर में हाथों से "संजू" जिसके,
बस, उसका इंतजार हैं हमें....!
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की कितनी अजीब बात है ना
किसी को उसकी एहमित समझाते, समझाते
उसकी जिंदगी हम अपनी एहमियत ही
खो देते हैं....-
गर फुरसत मिले तो मेरे दरवाजे पर दस्तक देना
एक अरसा हुआ चैन से सोए हुए.....-
On most days, i can live without
"You"
But sometimes,
I feel "lifeless "-
किसी ने क्या खूब कहा है, कि
जब प्यार जाने की शुरुआत करता है..
तो पता चल ही जाता है
कि, अब अंत की शुरुआत हो चुकी है ...-