जब मिशनरी अफ्रीका आए तो उनके पास बाइबिल थी और हमारे पास धरती, मिशनरी ने कहा 'हम सब प्रार्थना करें।' हमने प्रार्थना की। आंखें खोली तो पाया कि हमारे हाथ में बाइबिल थीं और भूमि उनके कब्जे में...
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क्या पाया किसने इस जग में
समय मात्र बतलाता है
कैकई को था राज्य चाहिए
अपयश भाग्य में आता है
त्याग दिया जब राज्य राम ने
रघुकुल रीत निभाने को
एक व्रती बन वन में तपकर
स्वयं सूर्य बन जाने को-
लोभ लाभ से है भरी, गगरी छलकत जाय ।
रिक्त रहे सब गुप्त धन, नगरी भव्य दिखाय ।।-
त्रिपुंड है, त्रिनेत्र है, त्रिशूल का संधान है
काल भी भयभीत जिससे वो ही भगवान है
नारी है शिवशक्ति और नर ही शिवध्यान है
बस त्याग दे छल, मोह, लोभ जो विघमान है।।-
"मैं पैसा हूँ"
मैं अमीर का घमंड
तो गरीब की बेबसी और लाचारी हूं
मैं पैसा हूं।
कुछ के लिए हाथों का मैल हूं मैं
तो कुछ के लिए दो वक्त की रोटी का ज़रिया हूं
मैं पैसा हूं।
आपस में सबकों लड़वाता हूं
घरों में बटवारे करवाता हूं
रिश्तों में दरार डालने के काम मैं आता हूं
मैं पैसा हूं।
लत जिसे लगती है मेरी
वो भूल सभी कुछ जाता हैं
बस मेरे पीछे पीछे आता हैं
मैं सबको मोहित कर जाता हूं
मैं पैसा हूं।
मैं भ्रष्टाचार को बढ़ाता हूं
बंद लिफाफे में लिपट कर आता हूं
टेबल के नीचे से दिया जाता हूं
मैं पैसा हूं।
(Full in caption)
-Naina Arora-
बचत अच्छी और जरूरी है,
बचत अति की गति पकड़ ले
तो वो " लोभ " कहलाता है,
क्योंकि लोभ अति हो जाए तो
वास्तव में लोभी व्यक्ति सबसे
ज्यादा दुख,स्वयं को ही देता है।-
मैं कलयुग का इंसान हूं, मैं शैतान हूं।
बात बात पर क्रोधित मैं हो जाता हूं,
ईर्ष्या का भाव मन में लाता हूं।
बुद्धि को भ्रष्ट कर जाता हूं,
लोगों को भड़काता हूं।
हिंसा, द्वेष, क्रोध, ईर्ष्या, लालच, हवस सब मेरी पहचान हैं,
मैं इन नामों से भी जाना जाता हूं।
इंसानियत का कीड़ा मार, मैं इंसान में घर कर जाता हूं।
मैं हूं इतना शक्तिशाली कि पल भर में ही सब कुछ तहसनहस कर जाता हूं।
मैं जीते जी इंसानियत की चिता जलाता हूं,
उनको इंसान से हैवान बनाता हूं।
मैं हूं वो पापी, दुराचारी जो सोच को नकारात्मक बनाता हूं।
मैं अपने अत्याचारों से दुनियां में खौफ़ फैलाता हूं।
मैं हूं लोभ और लालच का कारण जो गरीबों की बेबसी में उनसे गलत काम करवाता हूं,
तो अमीरों को काला धन कमाने के उपाये सुझाता हूं।
मैं जिसपर भी हावी हो जाता हूं, उसकी मति भ्रष्ट कर, सारे उल्टे काम करवाता हूं।
मुझसे ही चलती हैं कलयुग की गाड़ी
तभी तो मैं लोगों का काल बन जाता हूं और कलयुगी कह लाता हूं।
अहंकार हैं मुझमें बसता, मैं कलयुग की पहचान हूं, मैं इंसान में छिपा वो शैतान हूं।।-
# 24-12-2020 # काव्य कुसुम # सच्चा सुख #
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अपरिमित लालसाओं के झंझावत में हम भटक रहे हैं ।
अपरिमित व्यामोह के बहकावे में ही हम मटक रहे हैं ।
निस्पृह-निर्लिप्त हो लक्ष्योन्मुख पुरुषार्थ सच्चा सुख है-
अपरिमित लाभ-लोभ के लालच में ही हम लटक रहे हैं।
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