मैं अग्नि की मशाल नहीं,, लालटेन की लौ ही सही
मुझे जलाने का शौक़ नहीं जलकर रौशन हूँ करती
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दियासलाई
माँगते थे बाबा
जब जलाते थे
अपनी लालटेन,
रात के अंधेरे में
जुगनूँ सी चमकती
हिलती डुलती
लालटेन
और मैं घटा बढ़ा
दिया करता था
उसकी लौ
खीज जाते थे
मेरी शैतानियों से
अक्सर,
उन्हें बहुत प्यारी थी
अपनी लालटेन-
खुद जलकर रौशन करती है
दूसरों को रोशनी देती है..
सीने में आग लिए खामोशी से
अंदर ही अंदर जल रही है।
किसीसे कुछ नहीं कहती
शांत से कितने, ये लालटेन..
हवा भी चलती है
फिर भी बुझती नहीं कभी..
आज अपने ही अस्तित्व के लिए
खड़ी है ये लालटेन...।-
तुम श्राद्ध करने में मगन प्रिये,
हम विरह में तड़पे जाते हैं |
तुम आशाओं की बातें करती,
हमें टूटते रिस्तों के स्वर सुनाते हैं |
गुजँते गीत मेरे दिल की वफ़ा के,
अब क्यौं तुम्हें नही सुनाते हैं |
प्रीत डोर के धागे क्यौं जग में,
जल्दी बिन निभाये टूटे जाते हैं |
तुम सुधारने चली दुनिया को,
हम रोज नयी दुनिया बनाते हैं |
धानी चुनर ओड़कर तुम आ जाओ,
दिल से फिर हम तुम्हें बुलाते हैं |-
जहाँ अशिक्षा का अँधेरा हो वहाँ शिक्षा का एक छोटा सा मंदिर भी खुल जाये तो अँधेरे में लालटेन का काम करता है |
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लालटेनों में हमारी,
ताकतों का बसर होता है।
जब भी जल उठती हैं,
चन्द्र हर रोज़ सुलगता है।
सूर्य भी ना सह सका है,
कब भला वह रह सका है।
कर ना पाई कुछ बयार,
लौ जो देखा फिर हुई फरार।
कौन कब पर रुकता यहाँ है,
अब लालटेन में भी बस धुँआ है।-
ये मोहब्बत का रिश्ता भी बेहद अजीब है,
महबूब मिलन के वास्ते चाँद खुद लालटेन जला कर आया है...-
शांत से कितने ये लालटेन
उन्हें इतना ही मालूम है
रोशनी को अपनी
चारों ओर फैलाना है।
इसलिए बंद करके अपनी
लौं को हवा से बचाया है।
मनुष्य को भी अपने
मन के अंदर अच्छे विचारों को
रखकर लालटेन की तरह
बुरे विचारों को मन के
बाहर ही रखना है।
-सावली (छाया)
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