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प्रोफाइल हो गयी है उसकी सूरज मानों
हम हो गए हैं पृथ्वी से
दिन रात लगाते हैं चक्कर उसके चारों ओर ।-
न खुद टूटा
न दिल को टूटने दिया
न टूटने दिया
मोबाइल कवर अपना
ये तीनों बहुत
पसन्द थे तुमको यार ।-
धीमे धीमे धुंधलापन धुल जाता है,
आने वाला जैसे पास आता है।
अच्छा वक्त, सरकारी नौकरी या फिर प्रेम
मिल जाये फिर सब कुछ मिल जाता है ।-
आँगन में लगे
नीम की टहनियों से
झाँक रहा है,
उजियारी रात का
विस्मित चन्द्रमा
उतरना चाहता है
गाय के गोबर से
लिपे महकते आँगन में,
चखना चाहता है
कच्चे चूल्हे की
पकी रोटियाँ,
जो अम्मा बना रही है
दूधिया रात में,
हवा में हिलती टहनियों से
साफ़ नहीं दिखतीं
अम्मा की तवे पर
सिकतीं सफ़ेद, सोंधीं
गोल रोटियाँ,
जो कभी - कभी प्रतीत
होतीं हैं चन्द्रमा को
दर्पण सी
आभास होता है कि
अम्मा बना रही है
गर्म तवे पर कोई
ठण्डा चन्द्रमा-
जो लोग जितनी जल्दी
किसी के दिल मे एंटर होते हैं
उनकी एग्जिट भी दुगनी
तेजी से होती है।-
मेरी बातें उसी पर बेअसर है
जिसका मुझपर बेइन्तहां असर है।
यूँ तो जीते थे बादशाहों सी ज़िन्दगी कभी
आज मुफलिसो सा बसर है ।-
कौन है जो आकर्षित नहीं होता
लड़का लड़की की तरफ
लड़की लड़के की तरफ
कौन है जो प्यार करना नहीं चाहता
कौन है जो प्रेम भरी बातें करना नहीं चाहता
कौन है जो प्रेम में जीना नहीं चाहता है
कौन है जो बाहों में मेहबूब को भरना नहीं चाहता
कौन है जो लिपट कर रोना नहीं चाहता
कौन है जो चुम्बन नहीं चाहता
कौन है जो वो सब करना नहीं चाहता
जो जरूरी है प्रेम के आनंद में
कोई हो तो कितना नीरस शख्स होगा वो
जो इस आनंद को पीना नहीं चाहता-
मुझे समझने के लिए
पढ़ना होंगी मेरी कविताएँ
उतरना होगा गहरे सागर
डूबना होगा सागर के तल तक
जितना उतर जाती हैं
कविताएँ पाताल तक,
चली जाती हैं
किसी शब्द के खोज के लिए
ब्रहाण्ड के किसी मन्दाकिनी में
किसी ग्रह पर,
ठीक वैसे ही यदि उतर
पाए तुम मेरे हृदय के
किसी पायदान तक
तुम समझ पाओगे मुझे
और मेरी कविताएँ ...
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