गुलाब लहज़े से उसने मुझे सोचा होगा,,
मेरा दिल ज़ोर से ,यूँ ही नही धड़का होगा,
हिला जो पर्दे का कोना,तो मन उछल गया,
लगा के कमरे से मेरे तू ही गुज़रा होगा,,
घुली है मुझमे,वो किसी किमाम की तरह,,
खुशबू से आलम मेरा ,यूँ ही नही महका होगा,,
हवा तुम को छू कर मुझे यू छु सी गयी,
लगा के जिस्म को मेरे ,तूने ही छुआ होगा,,
ढूंढता हूँ जो छिप कर , मैं हर हसीं में जिसे,
हर चेहरे में तुम छिपी थी,तुम्हे ही देखा होगा,
-