Kavita Singh   (K@vita KS)
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Joined 21 January 2018


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Joined 21 January 2018
27 JUL AT 19:39

हम जब लौटते हैं किसी शहर में
तो हम दरअसल लौटते हैं
किसी अपने के लिए,
किसी पुरानी याद के लिये
किसी एक वादे के लिये,
कुछ छूटे हुए को पूरा करने,
हर शहर हमारी यादों
का कुछ हिस्सा अपने नाम
कर लेता है!

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3 DEC 2024 AT 14:08

नाराज़गी

(पार्ट -2)

(Read caption for story)

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3 DEC 2024 AT 14:06

नाराज़गी

(पार्ट -2)

(Read caption for story)

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3 DEC 2024 AT 0:29

नाराज़गी


(पार्ट-1)

(Read caption for story)

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24 SEP 2024 AT 22:08

जिन किताबों को पढा नहीं मैंने,
उन किताबों के लिये
मन में अपराधबोध मौजूद है अबतक
ऐसा लगता है जैसे धोखा
दिया हो मैंने उन्हें
लोग जाने कैसे
लोगों को
धोखा दे देते हैं !

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4 MAY 2024 AT 22:12

पितृसत्ता के जनक पुरुष हैं
मगर पितृसत्ता का
पालन-पोषण
स्त्रियों ने किया है...
स्त्रियों ने उसे जिया है,
माना है, अपनाया है, सींचा है
और फिर सौंप दिया है
अगली पीढ़ी को !

ओ लड़कियों,
वक़्त आ गया है
राख कर दो
विरासत में मिली
इस पितृसत्ता की जड़ों को
इससे पहले कि ये
तुम्हें ख़ाक कर दे !

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19 SEP 2022 AT 13:46

मानसिक गुलामी को
धार्मिक रूप दे देने से
गुलामी का एहसास नहीं होता,
ये गुलामी आनंद की अनुभूति देने लगती है

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22 AUG 2022 AT 14:23

फिर इक ख़्वाब देख रही हैं आंखें...
फिर क़ीमत न चुकानी पड़े इनको !

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15 AUG 2022 AT 10:42

किसी ने फांसी के फंदे चूमे,
किसी ने सीने पर गोली खाई है...
आज़ादी की कीमत समझो,
आज़ादी यूं मुफ़्त में नहीं आई है !

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12 JUL 2022 AT 11:12

तुम इश्क़ के मामले में
मेरी आखिरी उम्मीद हो !
(Plz read caption for full poetry)

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