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सुनो अघोरी,
नहीं चढ़ाती तुझे धतूरा,
छिद्रित करता यह देह तेरी।
(रचना अनुशीर्षक में पढ़िए)-
मैं तो था लघु
मुझे गुरु कर दिया
शीश पर मेरे
अपना चरण धर दिया
ख़ाली मेरी झोली
को तुमने भर दिया
मैं तो था लघु
मुझे गुरु कर दिया
माँगा नहीं मैंने
पर मुझको वर दिया
मैं तो था लघु
मुझे गुरु कर दिया
शब्दों में मेरे
तुमने अर्थ भर दिया
मैं तो था लघु
मुझे गुरु कर दिया
बन्द थे जो काम
तुमने शुरू कर दिया
मैं तो था लघु
मुझे गुरु कर दिया
मूक इस कलम को
अपना स्वर दिया
मैं तो था लघु
मुझे गुरु कर दिया
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छंद हूं पर स्वच्छंद रहना चाहती हूं
नियम से परे स्वतंत्र बढ़ना चाहती हूं
गुरु,लघु,गण,अलंकार से निकलकर
छंद विहीन छंदों में गढ़ना चाहती हूं-
"दीप" लघु हूँ , रोशनी दूँ मैं तुम्हारे ही लिए
पल प्रतिपल जलता जाऊँ, मैं तुम्हारे ही लिए
जो गगन के तारे हैं ,उनसे न कुछ तुलना करो
जग तिमिर लेकिन मिटाऊँ' मैं' तुम्हारे ही लिए-
सीमा हर साल अपने भाई राजीव के लिए अपने हाथ से रेशम के धागे जोड़ जोड़ के बड़े प्यार से राखी बनाती है। राजीव भी सीमा का बहुत ख्याल रखता था। माँ के जाने के बाद बड़ी बहन सीमा ने ही माँ का स्थान ले लिया। छोटी उम्र में उसने पूरे परिवार को संभाल जिम्मेदारी निभाने की मिसाल दी। समय रहते राजीव की शादी भी एक अच्छे घर में करवा दी। आज फिर राखी है सीमा ने राखी बनाई और हमेशा की तरह बस पकड़कर रवाना हो गयी अपने मायके के लिए।लेकिन घर पहुँचते ही पापा ने बताया कि राजीव और शिवानी तो शिवानी के मायके गए हैं राखी बांधने ;थोड़ी देर में आ जाएंगे। सीमा इंतज़ार करती रही फिर सीमा ने भाई को फ़ोन किया राजीव ने कहा"दीदी हम एक घण्टे में आ रहे हैं; आप जाइयेगा नही" सीमा को इंतज़ार करते करते शाम हो गयी सीमा ने फिर से अपने भाई को फोन किया।इस बार शिवानी से बात हुई बहुत तेवर दिखते हुए वह कहने लगी " दीदी!आपका गिफ़्ट घर पहुंच जाएगा क्यों बार बार हमें फ़ोन कर परेशान कर रही हो। हम आज नही आ पाएँगे" सीमा आँसू पोंछते हुई सोचने लगी क्या सच में मैं गिफ्ट के लिए राखी बांधने आई हूँ।
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