एक दीया आज बुझ गया,
cancer नामक बिमारी की भेंट चढ़ गया।
मैने पराया होकर भी निस्वार्थ रूप से सेवा निभाई थी,
मुझे नही पता था उनकी जान अस्थाई थी।
पिछले कर्मों का शायद उनसे कोई नाता था,इस पूरे खेल को रचनेवाला वह सर्वोच्च सत्ता भाग्य विधाता था।
जिन्होनें मेरे कर्मों मे लिखी उनकी सेवा थी।
जो थी कभी सुहागन,आज वो स्त्री बेवा थी।
रो-रो कर उसका युं बुरा हाल था,
मेरा भी मन बुरी कदर बेहाल था।
मै भी रो रहा हूँ उनको याद करके,
कहते हैं सितारा बन जाते हैं लोग मर के।
कहते हैं सितारा बन जाते हैं लोग मर के।-
शास्त्र भी तो कहते हैं कि
तुम प्रतिबिम्ब हो अपने विचारों के,
जैसा सोचोगे,वैसे ही हो जाओगे !-
रे मन, तू आज मैं ही जी ले
किसको पता,
प्रात: ये जीवन कली
खिले न खिले....
🌷🌷-
बन सद्भावों के दीप जलो रे
मनुज मनुजता बांट चलो रे।
निरीह हुए हैं कटु जीवन से
भर दो हृद अनुराग- राग से,
थक हारा जो पथिक उसे तुम
हे! वीर अथक बढ़ा चलो रे।
मनुज मनुजता बांट चलो रे।
जब-जब जग का मंथन होगा
कालकूट तब-तब निकलेगा
हे कालजयी तुम नीलकण्ठ
विषधर बन विष पिए चलो रे।
मनुज मनुजता बांट चलो रे।
क्षण-क्षण मरण गीत सुनाएं,
निशा-दिवा आपद-विपदाएं,
फिर भी रण में अभिमन्यु सा
प्रतिक्षण तत्पर अड़े रहो रे।
मनु मनुजता बांट चलो रे।। - अवनि..✍️✨-
रे मनवा!
देख रे मनवा,
लोग कैसे लगते हैं
जनम-जनम के भूखे,
अनन्त कामनाओं वाले
मानसिकता पूरी तरह
अभावग्रस्त,
किसी को भूख
धन की,
किसी को पुत्र
की,
किसी को यश
की,
किसी को सुख
की,-
असे होते का तुला ही... सांग ना..!
तू प्रिया बोल ना ,रे मनीचे खोल ना
हे असे होते का तुलाही सांग ना......?
आज हलके आरशात पाहिले मी मला
कशी सांगू रे प्रिया, का हसले मी तुला
तू तिथे हासुनी, खट्याळ रे खुणावतो
लाजेचा चुरा पहा कसा मनी दुणावतो
तू प्रिया बोल ना, रे मनीचे खोल ना
हे असे होते का तुलाही सांग ना......?
तुझा गंध... तुझा स्पर्श..हवेत ही भासतो
इथे तिथे देखता.. तू सख्या हासतो
जाणीव मऊ रेशमी पायांवर सरकते
स्पर्शाने तुझिया मनी मोरपीस हरखते
तू प्रिया बोल ना, रे मनीचे खोल ना
हे असे होते का तुलाही सांग ना.....?
-
बन्धन ही बन्धन
बाहर से फेंकती
चकाचौंध भरे जाल,
भीतर से उठते
अविद्या के भाव,
कभी तू पकड़ता
बाहर भेजकर
इन्द्रियों को,
कभी विषय आते
स्वयं तेरे पास।
एक काम कर,
जागता रह, बस,
देखता रह
हर विषय को-
छल रे कपट रे
सच्चा रे झूठा रे
कुछ खामोशी थीं
अब दूरी...कब्र मे दफन रे-
रे पथिक, खौप हो जिस राह का
तु उस राह पर चलकर दिखा !
जीत है नामुमकिन जिस पर
तु उस राह से जीतकर दिखा !
जो भी पथिक गये इस राह पर
राह छोड़ अधूरी आ गये ,
तु मौत को सीने से लगाकर
अपना सपना पुरा कर दिखा !
रे पथिक ,खौप हो जिस राह का
तु उस राह पर चलकर दिखा !
rohit
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पानी... रे...पानी तेरी इतनी कहानी... जिसे मिला तू आसानी ...उसने... तेरी क़दर ना जानी
और जिसे मिला न...आसानी से तू ...
...उसने तेरी बूँद- बूँद सँभाली ...-