रूमानियत इश्क की बिखरी सी है फिजाओं में,
दीवाना हुआ मौसम और सरगोशियाँ हवाओं में है !
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कभी तो दो ये मौका♥️♥️☘️
सुबह ऑँख खुलते ही तेरा दीदार हो जाये
बाँहों में तेरी सिंदूर का रंग चटकीला हो जाये
गुफ्तगू हो हौले से रूमानियत भरी
मेरी जुल्फों की छांव में सहर हो जाये
सुने दिल की धड़कनों की जुंबा हम दोनों
जिस्मों को भी संगम का अहसास हो जाये
इंतजार में निहारते घड़ी की सुइयों को हम
मिल जाये बारह बजे की सुइयों जैसे
वक्त का ठहराव वहीं हो जाये
जानती हूँ हो चुका हैं ,अपनी रूहों का मिलन
जताना चाहती हूँ मैं, हक तुझ पर ऐसे
अब तेरी है ऋत्विजा ,तुझे ये अहसास हो जाये-
रूमानियत फिजाओं में घुली घुली सी है
शायद खुल कर बिखरी जुल्फें सीली सीली सी हैं।
प्रीति-
चांदनी राते आज यूँ खिली खिली सी है,
तेरी चाहते उसकी रोशनीमें मिली सी है,
आज पाएगा मुक्कमल जहाँ इश्क़ हमारा,
चारों तरफ जैसे रुमानियत फैली सी है।-
मेरी रूहानियत देख यूँ परेशां ना हुआ कर
'साहब' के मुरीद है असर तो बिल्कुल रहेगा ही।-
हद हो गई!
गम और उदासी से
अब निकलते हैं
रूमानियत के
मुंह लगते हैं
नमक थोड़ी सी
चखते हैं
जिन्दगी
कुछ तुम्हें
परखते हैं।
प्रीति.-
अपनी कोई करीबी बात,
दो या ज्यादा लोगों को बताना...
मानो कि उस बात की रूमानियत को
खुद ही खत्म कर देना।-
दशना-ए-तरब जान-ए-जाँ तिरे पेंच-ओ-खम
यूँ तिरा वाजिब नहीं उनसे उलझना दफ़अतन-
हाथों की लकीरो में
पता नहीं क्या लिखा है...
चश्मे मौजूद है...
रौशनी पर्याप्त है...
मैं अनपढ़ नहीं हूँ फ़िर भी पढ़ नहीं पाता...
एक ज्योतिषी से मिला...
उसे अपना हाथ दिखाया
उसने मुझे समझाया-
तुम्हारे हाथों में कई प्रेमिका है
लक्ष्मी का वास है
और भी बहुत कुछ है...
जैसी रेखा है वैसे ही कर्म करेगा...
आज मैं अकेला हूँ और मेरे हाथ में कलम है!
हाथ आज भी मैं देख रहा हूँ
और इसे पढ़ने वाले को ढूँढ रहा हूँ
लिखते-लिखते अनगिनत आड़ी-तिरछी
रेखाएं बनी है...
स्याही से!!
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शाम की रूमानियत में, मखमली आवाज से तर
कल कोई फिर से कहेगा, रात ये जाने ना दो
सासों में बस बात हो, बहके जज्ब़ात हो
रात हो, बरसात हो और बीच कुछ आने ना दो-