चलो आज थोड़ा रुमानी हो लेते हैं
तुम मुझे सराहो, में तुम्हें अपनी
पलकों पर बिठाता हूं।-
इत्र लगाए बैठी हो, जुल्फों में रुमानियत भिगाए बैठी हो,
आज इतनी कुर्बत है कि सांसें भी गिरफ्त कर बैठी हो
और फिर ज़ोर देती हो, खुद को भुला देने पर,
कुछ नहीं, खामखां हमें ग़ुलाम बनाने बैठी हो-
मैं आज भी वो खिड़की खुली रहने देता हूं
आज भी, वो खिड़की खुली रहने देता हूं
मालूम है मुझे वो शाम को ही आती है,
फिर भी
सुबह से ही वो खिड़की खुली रहने देता हूं
सोचता हूं जो कही वो गुलाब होती
तो सवेरे सो कर जागते, खैर,
यूं मासूमियत से इंतजार कराती है वो दिन का
फिर शाम में रुमानियत से मुसलसल वो कराती,
जो है इंतजार दिन का,
कमबख्त हर सवेर रो कर है जगाती
ना जाने कैसी रुमानियत है महकाती
वो कोई और नहीं ,
रात की रानी है! बेहद रुमानी है!-
इश्क इश्क इश्क इश्क
हायः क्या रुमानी शब्द है
आँखो ही आँखों में इकरार
एक-दूजे को छूने को बेकरार
लबों का लरजना
दिल का बेइतहा घड़कना
मिलने के लिए सिसकना
न छाँव की न धूप की फिक्र
पवन के झोके सी सिरहन
ऐसा होता है न इश्क़ में
मगर ये इश्क़ के नखरे
बहुत सताते हैं "मीता"
रूठना मनाना चलता है
अक्सर प्रेमी के आगे
सब तुच्छ लगता है ।।-
दर्द सारा यू तो आंखों मे समेटे बैठी है
कभी छलक जो आते है
तो वो गुलाब,उन्हें ओस बताया करती है-
आज की शाम बहुत रुमानी है
रोया है दिल तो आस्मां से भी बरसा जम कर पानी हैं-
चश्म में काजल के दिये जलते हैं
इधर हम भी तेरे लिए जलते हैं
कुछ हिरण नज़र उसकी और कुछ
दश्त दिल में हम लिए चलते हैं
چشم میں کاجل کے دیے جلتے ہیں
ادھر ہم بھی تیرے لیے جلتے ہیں
کچھ ہرن نزر اسکی اور کچھ
دشت دل میں ہم لیے چلتے ہیں-