I promise you love,
I be gone forever, but
favour me, last time—
bring me, that sunset
one which beholds the flavour
of your lips, my love
bring me, all those rains
in which the scent of yours poured
down upon me, my love
then blend all of it;
I drunk on that glass of Hijr
be gone forever.-
वो जो सब कह गए वो मै नही कह रहा हूं
यूं तो कई लेख है आज जहन में
जो ताउम्र पढ़ें है उस एक लफ्ज के लिए
मगर सब वो लेख जो पढ़ें थे
बचपने से वो रह जाते हैं खाली,
जो मैं बात करूं उनकी,
जिसने हजार किस्से है जोड़ें जिंदगी में
और हर किस्से में नई तरह से जिंदगी,की सीख
बवंडर सा है आज इस मग्ज में भी
किन को उतारु,किन को करु परदा
यू तो हजारों है गलतियां मेरी
मगर आपने हर बार रहनुमाई है दिखाई
वैसे कुछ पर नाराजगी भी हक से है जताई
या फिर जो हर हफ्ते करते हो आप वादें
व्यायाम करने के,जिम चलने के,
मां को कार सिखाने के, उन पर कुछ..
रहने दो बुरा मान जाओगे आप
जो किया कोई व्यंग्य यूं तो,
खाने के समय ना आने पर जो सुनी है या वो
खोए हुए रुमाल और मोज़े पर जो सुनी
या जब तुम कमाना शुरू करोगे,
के बचत भाषण पर या फिर उन
महंगे नज़रानों पर कुछ, लिखूं ..
नहीं, जो आज ये सब बातें करूंगा तो फिर
आप के हर उस दिन को जाया कर दूंगा
जिनमें रहा हूं मैं हिस्सा,-
आज काफी सालों बाद देखा उसको,
मंदिर में,
पहचान ही नहीं पाया पहले तो,
कितनी खूबसूरत लग रही थी वो
बेटी भी थी साथ उसके ह..
उसकी हां उसकी!
मैं छुप कर देखता रहा
कुछ क्षण दोनों को
ख्याल तो था सामने से गुजरने का,
मगर पता नहीं क्या
हिम्मत सी नहीं हुई,
उधर से हिल भी सकूं जो
घंटीयों का बजना,
पिछे किसी का चालीसा पाठ करना,
किसी की फोन की घंटी बजाना,
वो तो बस मेरे कान सुन रहे थे
दिमाग तो दिल को सुन रहा था,
दूर खड़ा,उसके होंठों को पढ़ रहा था
कही जिक्र वो मेरा तो नहीं कर रहा था
थोड़ी नजरें भी धुंधला तो गई थी,
कुछ क्षण और रुकता उधर तो
बेशक रोक ना पाता खुद को,
मन बहुत था की एक बार उन दोनों
से बात करलूं
मगर नहीं कहा कुछ हो सका,
तुरंत जूते पहनकर चल दिया
कही अब वो इस तरफ
ना देख रही हो इस डर से,
पीछे मुड़कर नहीं देखा
सीधा गाड़ी की तरफ,
तेज कदमों से चलता चला गया-
कौन जाने किस क्षण का हो रहा था इंतजाम
की मै स्वप्न ही देखता रह गया यार
हकीकत लिख दी उन्होंने,
सबेरे किसी और के नाम...-
hushed tone of hers,
engulfed moans
with every second passing
how wanton she becomes
words no more lucid
i.imagine her body
twisting and turning
into every direction
hungry for
the sensation pure as death
more of my quivering slick heat,
wants your body now
as you leave nothing uncharted
ohh! f
e
e
l,l.ove
a
d
y,Yelling, harassing
deepest parts of O U. R S
trembling in this G L Y
narcissism.
asphyxiate with pain.
so immense.we no longer.
could hold in our bodies.
ahhh! we both
exhausted, in unbearable pleasure,
love.we need to meet.no more.of this.
phone-sex.
-
What if I tell you those gifts
for you were actually for me, those
dresses i crafltly packed for you
were my fantasies to explore you
in them, again and again.
Aah! that excitement of yours
when you opened that Zivame.
Whoever said prom is for dance
and music knows only the half,
the other lies in privy pleasures
One stroke, one stroke by one stroke
I paint you naked, that shade ivory
steams up as you lay there,no brazier,
bare skin,velvet sheet,
play catalysts to our engines.
I,pianist of yours,stage you gently as my fingertips explore your bare back,
navel and down to toes
as i caress your thighs,
with an urge dominant as i act,
turn-round your body,love biting neck & ear
with one hand gripping your open hairs
You moan like a cat & me nibbling black currant lips of yours!
Purple mar your skin let's undo it,
in a cheeky way i cast out that Victoria's secret cheekies.
Biting your lips in excitement,whispered
“you are unbelievable,let me go he must be waiting,
Though erotic nightgowns obviously
need someone for undressing,
I see you in shower, early bright.”
You proceed to other room,
to feed our Baby.-
महबूब मेरा बनारसी पान,का हवाला हम छोड़ दिये है
अब गलतियां हम दौराना छोड दिये है,
तुम्हारे प्रशंसक है,आशिक़ बनना छोड़ दिये है!
अब तुम इसे योगी जी का प्रकोप समझो या भाई की पुलिस मे भर्ती, हम तुम्हारे प्रेमी बनना और पान खाना
दोनो ही छोड़ दिये है!!-
कुछ साल पहले आई थी मै इधर और तब से कुछ नही बदला है, वही राते और वही सुबह और फिर वही राते यही चलता आया है पिछले 9-10 सालो से,
सब कहते है की मेरे पिता भी थे साथ जब हम कोल्कता आये थे,मगर फिर वो बिन बताए एक दिन मॉ को छोड कर चले गये, ना तो मॉ के पास रुपया था ना ही कोई जीवन व्यापन का साधन,तब रूपा दीदी ने ही मॉ की मद्द की थी पूरे 2 माह हम उन्के संग रहे थे,कहते है सब,
भारत घूमने आया था तेरा पिता और तेरी मॉ को घुमा गया,तब तू हुई थी फिरंगी...
आज जब रूपा दीदी ने मेरी तारीफ की थी तो दिल इतरानए को तो करता है,मगर क्या करे यहा
एसा कुछ नही चलता है, कौन जाने किस के मन मे क्या पनप्ता है..
उमर मॉ की हो आई है कहा था एसा उन्होने ही इशारा था मेरे यौवन पे उनका,
“नौश फऱमान निक्लेगा मेरा,बिकने को तैयार शृंगार करे खडा होगा जिस्म मेरा,
मन मैला है,एसा नही कुछ होता जब गिद़ करे शिकार तो, क्यो हो उसका जिसका हुआ शिकार,
मॉ के संग चाट चुके हैे उंगलियां अपनी वो,कई बार,
कुछ ऊब गये, कुछ खूब कहे, रात मे बस कुछ पल वो गुजा़र उसको वो छिनाल कहे,वो विचारो के बीमार”
जब आपकी कोई तारीफ करता है, तो क्या आप भी यही सब सोचती है,इतना विचार करती है,उसने एसा क्यो कहा होगा? क्या आज रात वो फिर आऐगा?
नही-ना तो आप बेहद खुशनसीब हो,
हमतो ठहरे तवायफ जनाब,हम कहा इतने नसीब वाले!!-
“अप्पू!अप्पू! क्यो खडी रहती है इधर,तुझसे कितनी बार मना किया,छज्जे पे यू ना खडी हुआ कर,तू समझती क्यो नही है कभी भी”
लमंबे गुंगराले बाल,गेहुंआ रंग और दांत कुछ बाहर को निकले हुए,तेज़ कदमो से एक 40-45 साल की महिला अप्पू को दाटते हुए क्वार्टर मे घुसती है..
“मॉ 4:30 सुबह के और तुम अब आ रही हो, क्या करती मै उब रही थी किताबे भी नई,ना लाई तुम”
पैर फटक्के अप्पू ने ज्वाब दिया...
हां क्यो नही,तेरे कहने से मान रहा है उधर कोई, क्या कहती बता ? कुछ भी बक्वास मत किया कर सुबह-सुबह और तेरी किताबे बिसवास ले आऐगा,समझी..अब पानी गरम होने को लगा दो,
मै थोडा आराम करलू फिर जा कर नहा लुंगी...
अप्पू जब तक बालटी मे पानी लगा कर बाहर आती है,मॉ खराटे-मार सो रही होती है...
ओ हो बस आज बारिश ना हो,हे दुर्गा मॉ!तुम तो सुनलो ये तो एक नही मानती है मेरी...
फिर से वो वही छज्जे पे बैठ उस बंद किले की कैद को देख चाय की चुसकि मारते हुए अपनी दशा पे व्यंग करते हुए कहती है,
“इतना खूबसूरत जो तू ने मुझे बनाया है,किसकी किस्मत मे बुन्ने का इरादा आया है, ओह! लगता है
मेरी लकीरो मे एक नही अनेकों का साया है,
इसलिए मुझे तू ने इतना नायाब तवायफ बनाया है"
दूर कही मंदिर मे घडियाल बज रहा है,शायद आरती हो रही होगी, क्या खूब नजा़रा दिखता है, कितनी शांति हो जाती है सुबह होते ही,जैसे कोई तूफान सा आता हो रात मे...-
वो गुलाल अब शरीर पर गुनगुना सा हो गया है
रंगीन पसीना मेरा यू उसके शरीर पर गिरता,
रोशनी मे चमक्ता है सीप सा, मेरा बदन जैसे लहरो सा,और वो एक तट इंतजार मे बौछारो का..
उन करहाती चीखों का और खाट की चाल का,
अब एक ताल सा हो रहा है,
इस दोपहर बहुत कुछ उस चदर पे लाल सा हो रहा है, उसके आलिंगन मे अब एक राग सा हो रहा है..
हाफती तंडी सांसे उसकी मेरी कमर पे,
रोंगटे खडे कर रही है, मै उस झुरझुरी से उत्तेजित हो खाट पर यू बरसती हूं जैसे बादल फटता हो एकाएक,
वो भी बेसुद उस लय मे बिजली सा मुझे जकडता है, कलाई मेरी मरोड यू कसके मुझे भर लेता है,
संगम हो जैसे विपक्षी चुमंबको का...
यूही हम एक दूजे मे बसे रहते है कुछ देर
मै भी टांगो से उसकी टांगो को गिऱफत मे लिए,
एक दुजे को रोके रहते है कुछ देर
जैसे मानो सदियों की तडप हो मिटी,
इस बीरिश के बाद फिर सुखा होना है
यही शायद सोच,
इस लम्हें को गिरफत हम करे रहते है हम कुछ देर...
और नही बताउंगी उसके बारे मे,
गुलाल ही तो था कोई पक्का रंग थोडी,
जो चढा रहेगा,चंद लम्हे की बात थी,
चंद दिनो के लिए सना रहा...-